- February 26, 2023
ग्रीन हाउस गैसों की मानव-प्रवृत वृद्धि जलवायु परिवर्तन का कारण बन रही है जो मानव अधिकारों के बारे में गंभीर चिंता पैदा करती है
दोहा—- राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने कहा है कि ग्रीन हाउस गैसों की मानव-प्रवृत वृद्धि जलवायु परिवर्तन का कारण बन रही है जो मानव अधिकारों के बारे में गंभीर चिंता पैदा करती है। विकासशील देशों से समान उत्सर्जन मानकों का कड़ाई से पालन करने की अपेक्षा करना अनुचित है। उन्हें अक्सर अधिक संसाधनों और प्रौद्योगिकी की आवश्यकता होती है। इसे पूरा करने के लिए, वैश्विक बिरादरी को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण क्षमता निर्माण को प्राथमिकता देनी होगी।
न्यायमूर्ति मिश्रा दोहा, कतर में जलवायु परिवर्तन और मानव अधिकार: प्रभाव और दायित्वों पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। गनहरी, संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार और यूएनडीपी के सहयोग से कतर में मानव अधिकार आयोग द्वारा दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया है।
एनएचआरसी, अध्यक्ष ने कहा कि विकसित देशों द्वारा अविकसित और विकासशील देशों को निपटान हेतु खतरनाक कचरे के परिवहन को रोकने की आवश्यकता है क्योंकि इससे पर्यावरण का क्षरण होता है और मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है। समुद्र में प्लास्टिक डंपिंग जैव-विविधता को खतरे में डाल रही है। पुन: उपयोग करने में सक्षम होने की आड़ में विकासशील देशों में ई-कचरे का अवैध परिवहन होता है, जिसका केवल 9% ही पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि एक समावेशी जलवायु परिवर्तन कार्रवाई में ऐसी नीतियां तैयार करना शामिल है जो निष्पक्ष और सुलभ और न्यायसंगत हों। इसके लिए सबसे कमजोर और सीमांत लोगों सहित सभी हितधारकों की जरूरतों और दृष्टिकोणों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापन, संपत्ति की हानि, आय और स्वास्थ्य देखभाल तथा शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुंच दुश्वार होती है, जिसके कारण कमजोर वर्ग सबसे अधिक पीड़ित होते हैं। इसलिए, इसके बारे में स्थानीय जागरूकता को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए समुदाय के नेतृत्व वाले अनुकूलन में सहायता करने के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के उचित वित्त पोषण के साथ-साथ जलवायु नीतियों और कार्यक्रमों में मानव अधिकारों के मुद्दों को शामिल करना आवश्यक है। जोखिमों को कम करने और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के लिए जलवायु अनुकूलन रणनीतियों में निवेश करना आवश्यक होगा। फिर भी, उन्होंने कहा कि हमें जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले अवसरों से लाभ भी सुनिश्चित करना है, जैसे कि पूर्व में अनुपयुक्त क्षेत्रों में फसलें उगाना।
साथ ही उन्होंने कहा कि पारंपरिक ऊर्जा संसाधनों में बदलाव के कारण हमें खनन कार्यों से जुड़े लोगों के लिए वैकल्पिक रोजगार की भी तैयारी करना होगा। वास्तव में, अंटार्कटिका जैसे नाजुक पारिस्थितिक तंत्र में खनिज निष्कर्षण को तब तक रोका जाना चाहिए जब तक कि अपरिवर्तनीय क्षति होने से पहले जलवायु पर प्रभाव का आकलन नहीं किया जाता।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने पांच लक्ष्यों की मदद से 2070 तक शून्य उत्सर्जन हासिल करने के भारत के प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन की जांच के लिए वैश्विक बिरादरी, विशेष रूप से विकसित अर्थव्यवस्थाओं से प्रतिबद्ध प्रयासों की भी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, वायु अधिनियम और जल अधिनियम के तहत प्रदूषण नियंत्रण के लिए प्रभावी और त्वरित उपचारात्मक कार्रवाई सुनिश्चित की जाती है। उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, विशेष अदालतें और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा फास्ट-ट्रैक मोड में पर्यावरणीय मामलों को निपटाया जाता है। कंपनी अधिनियम मानव कल्याण के विभिन्न मुद्दों के प्रति कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व को भी सुनिश्चित करता है, जिसमें पारिस्थितिक संतुलन, वनस्पतियों, जीवों, पशु कल्याण, कृषि-वानिकी पर चिंताओं को दूर करना शामिल है।
पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन की जांच के लिए देश द्वारा उठाए जा रहे विभिन्न कदमों का उल्लेख करते हुए, न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि बाजरा और अन्य बेशकीमती अनाजों का उत्पादन प्रकृति के अनुकूल होने तथा पुराने वाहनों के पुनर्चक्रण को ध्यान में रखते हुए उत्सर्जन को कम करने, कार्बन फुटप्रिंट और अंतर-पीढ़ी इक्विटी और सतत विकास के लिए धातुओं और खनिजों के शून्य अपव्यय को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है।