- November 25, 2017
एमसीआई के आदेश का उल्लंघन करते जज संदेह के घेरे में
नई दिल्ली: मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया(एमसीआई) द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के बावजूद एक मेडिकल कॉलेज को राहत पहुंचाने के एक केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच के एक जज की भूमिका को संदिग्ध पाया है. इस जज ने एमसीआई के आदेश की अनदेखी करते हुए मेडिकल कॉलेज को राहत दे दी. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ ने इस मामले को गंभीरता से लिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘प्रथम दृष्टया ये मामला न्यायिक कदाचार का लगता है. चूंकि ये मामला हाई कोर्ट के एक सिटिंग जज से जुड़ा है, तो ऐसे में उनके खिलाफ इन-हाउस इंक्वायरी ही की जा सकती है. इस संबंध में संभवतया आदेश पहले ही दे दिए गए हैं.”
यदि जांच में आरोपी जज दोषी पाए गए तो चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया उनके खिलाफ महाभियोग लाने की सिफारिश कर सकते हैं.
महाभियोग
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आरोप
—- एमसीआई ने कई मेडिकल कॉलेजों को प्रतिबंधित सूची में डालने की सिफारिश केंद्र से की थी. उसके बाद केंद्र ने ऐसे कॉलेजों को प्रतिबंधित कर दिया था. इस आदेश के तहत 2017-19 के दौरान के दो वर्षों के लिए इन मेडिकल कॉलेजों को एडमीशन प्रक्रिया रोकने के लिए कहा गया था. ऐसी व्यवस्था के बावजूद जब मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के पास पहुंचा तो संबंधित जज ने नियमों की अनदेखी करते हुए अपनी तरफ से कम से कम दो मेडिकल कॉलेजों को छात्रों का एडमीशन लेने की छूट दे दी.
भ्रष्टाचार के मामले में हाईकोर्ट के पूर्व जज और चार अन्य गिरफ्तार
दरअसल ये पूरा मामला मेडिकल कॉलेज स्कैम से जुड़ा है. इस मामले में सीबीआई ने पिछले महीने ओडि़शा हाई कोर्ट के पूर्व जज आईएम कुद्दुसी को भी पकड़ा है. उन पर आरोप है कि उन्होंने ऐसे मेडिकल कॉलेजों के पक्ष में निर्णय दिलाने का भरोसा दिया था.
प्रवर्तन निदेशालय ने पिछले दिनों जस्टिस कुद्दुसी ओर अन्य बिचौलियों पर मनी-लॉड्रिंग का भी मामला दर्ज किया है.
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मामला
एक सितंबर को आरोपी जज ने एमसीआई और स्वास्थ्य मंत्रालय के आदेश को रद करते हुए जीसीआरजी मेमोरियल ट्रस्ट के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि निर्धारित अवधि के भीतर इस कॉलेज में छात्रों को एडमीशन दिया जाए.
हाई कोर्ट के इस जज ने सुप्रीम कोर्ट के 28 अगस्त के आदेश की अवहेलना करते हुए अपने आदेश के चार दिन बाद एडमीशन की तारीख बढ़ाकर पांच सितंबर कर दी. इसके चलते ट्रस्ट को छात्रों के एडमीशन की अनुमति मिल गई.
चीफ जस्टिस ने कहा कि कुछ संदिग्ध वजहों से इस कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए याची को छूट दी.
चीफ जस्टिस ने टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि हाई कोर्ट इस तरह का कोई आदेश जारी करने के बारे में सोच भी कैसे सकता है?