- September 24, 2016
उरी में मारे गए कथित आतंकियों के शवों को दफनाने में जल्दबाजी क्यों
लखनऊ 24 सितम्बर 2016। रिहाई मंच ने भारतीय सेना द्वारा कथित तौर पर उरी में मारे गए 4 आतंकियों के शवों को दफनाने में की गई जल्दबाजी पर सवाल उठाते हुए कहा है कि ऐसी जल्दबाजी सेना के दावों पर संदेह उत्पन्न करती है। सरकार को चाहिए कि वो रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल कपिल काक द्वारा इस बाबत उठाए गए सवालों पर अपना पक्ष रखे।
मंच ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा भारत सरकार के खिलाफ दक्षिणी सुडान और कांगो में संयुक्त राष्ट्र के मिशन के तहत मौजूद भारतीय दल के सैनिकों को घटिया और इस्तेमाल न किए जाने योग्य युद्धास्त्र और सामान दिए जाने के कारण भारत पर जुर्माने के बतौर 338 करोड़ रूपए की कटौती को देश को शर्मसार करने वाला बताते हुए कहा है कि यदि मोदी में थोड़ी भी शर्म बची होती तो अब तक उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए था।
मंच ने मांग की है कि इस मसले पर रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर के खिलाफ भारतीय जवानांे को घटिया सामान देकर मौत की मुंह मंे धकेलने का षडयंत्र रचने के अपराध में भारतीय दंड विधान के तहत राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कर उन्हें तत्काल गिरफ्तार किया जाए।
रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के महसचिव राजीव यादव और प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा है कि किसी भी आतंकी हमले में मारे गए हमलावरों का शव तब तक सुरक्षित रखा जाता है जब तक कि उसके शिनाख्त और उसके स्वीकार किए जाने के सारे विकल्प खत्म नहीं हो जाते। जोकि शत्रु माने जाने वाले देश के खिलाफ अपनाया जाने वाला एक कूटनीतिक दाव होता है। लेकिन अपनी इस कूटनीतिक परम्परा से हटते हुए उरी मामले में सेना ने अतिसक्रियता दिखाते हुए चारों लाशों को दूसरे दिन ही दफना दिया।
पठानकोट हमले में कथित तौर पर हमलावर बताए जाने वालों के शव 4 महीने तक रखे गए थे, संसद हमले में मारे गए लोगों के शव 1 महीना और मुम्बई हमले के लोगों के शवों को करीब एक साल तक रखे गए थे। इस दरम्यान भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार पर इन लाशों को वापस लेने का दबाव बनाने के लिए उसे उनके पाकिस्तानी नागरिक होने के सबूत भी दिए थे।
लेकिन उरी मामले में ऐसा न करके भारत के दावे को कमजोर कर दिया गया है जिस पर अब खुद रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल कपिल काक ने अपनी प्रतिक्रिया में सवाल उठाया है। जिसका जवाब सेना और मोदी को देना चाहिए।
रिहाई मंच नेताओं ने कहा कि उरी मामले में सेना ने जिस जल्दबाजी में शवों को दफना दिया वो सेना के दावे पर सवाल खड़ा कर देता है कि जो मारे गए वो पाकिस्तानी आतंकी थे भी या नहीं। उन्होंने कहा कि इसकी आशंका इससे भी बढ़ जाती है कि विदेशी आतंकियों का शव परम्परागत तौर पर उरी के ही जिस किचामा इलाके में स्थित कब्रिस्तान में दफनाया जाता है वहां उन्हें दफनाने के बजाए उत्तरी कश्मीर आर्मी कैम्प में दफनाया गया।
रिहाई मंच नेता राजीव यादव और शाहनवाज आलम ने प्रेस विज्ञप्ति में आगे सम्भावना व्यक्त की है कि ऐसा सेना ने माचिल फर्जी मुठभेड़ मामले में हुई बदनामी से सबक सीखते हुए किया है ताकि शवों को स्थानीय लोगों की पहुंच से दूर रखा जाए और उनके निकाल कर किसी प्रकार की जांच कराए जाने की सम्भावना को खत्म कर दिया जाए।
गौरतलब है कि पिछले साल अदालत ने 6 सैनिकों को माचिल में 2010 में हुए फर्जी मुठभेड़ मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई थी। सेना ने ये फर्जी मुठभेड़ थिम्पू में सार्क शिखर सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात के दूसरे दिन अंजाम दिया था जिसमें उसने तीन स्थानीय युवकों को पाकिस्तानी आतंकी बता कर मार दिया था। जिसपर उठे सवाल के बाद शवों को कब्रों से निकाल कर उनका डीएनए जांच करवाया गया था। रिहाई मंच नेताआंे ने कहा है कि जब फर्जी मुठभेड़ों के मास्टरमाइंड मोदी प्रधान मंत्री होंगे तो सेना भी अपने ही लोगों को आतंकी बताकर फर्जी मुठभेड़ करने लगे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
राजीव यादव और शाहनवाज आलम ने कहा कि वहीं सेना का यह दावा कि उसने दूसरे दिन उरी में घुसपैठ कर रहे 8 पाकिस्तानी आतंकियों को मार डाला, भी संदिग्ध है। क्योंकि उरी में हुए हमले के तत्काल बाद वहां पर सेना का जमावड़ा पहले से कई गुना बढ़ गया था। ऐसे में यह मान लेना कि आतंकियों ने दुबारा दूसरे दिन भी उसी जगह उरी में ही घुसपैठ की कोशिश की होगी अस्वाभाविक ही नहीं हास्यास्पद है।
उन्होंने कहा कि भारतीय सेना के कश्मीर में फर्जी मुठभेड़ों के इतिहास को देखते हुए इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि उसने अवैध तरीके से उठाए गए पर्दशर्नकारियों को ही फर्जी मुठभेड़ में मार कर देश में सरकार और सेना की आतंकी हमले रोक पाने में विफलता के कारण बढ़ रहे गुस्से को कम करने की कोशिश हो।
मंच ने कहा है कि अपनी कश्मीर नीति के चलते पूरी दुनिया में भारत की बदनामी करवाने वाली मोदी सरकार को परवेज खुर्रम जैसे प्रतिष्ठित मानवाधिकार कार्यकर्ता को अदालत द्वारा अपनी अवैध कस्टडी से तत्काल रिहा करने के आदेश के बावजूद बिना किसी आधार के हिरासत में रख कर अपनी बदनामी करवाने की मूर्खता बंद करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि परवेज खुर्रम कश्मीर की जनता की आवाज हैं जिसे दबाकर भारत अपने को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहने का भ्रम नहीं पाल सकता। मंच ने छंत्तीसगढ़ के पत्रकार पवन दहात और प्रभात सिंह को भी सरकार और काॅरपोरेट माफिया के खिलाफ लिखने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा प्रताड़ित किए जाने की निंदा की है।
शाहनवाज आलम
प्रवक्ता रिहाई मंच
9415254919