- April 23, 2015
बुरे हाल में साथ न छोड़ें देंगे साथ किसानों का – सतीश सक्सेना
15 से 19 अप्रैल 2015 यवतमाळ जिला में आनंद ही आनंद और भारतीय शांति परिषद के संयुक्त तत्वावधान में गाँव गांव पैदल जाकर किसानों से मिलने का दुर्लभ मौका मिला जहाँ पिछले कुछ वर्षों से सर्वाधिक किसान आत्महत्या करते हैं ! पूरे विश्व में भारत की शानदार संस्कृति और बौद्धिकता के झंडे उठाये लोगों के देश में, सीधे साधे किसान आत्महत्या करें इससे शर्मनाक और कुछ नहीं हो सकता ! सन 2012 में हमारे देश में 14000 किसानों ने आत्महत्या की है , और हमारे राजनेता बिना इन अनपढ़ों की चिंता किये अगले इलेक्शन की तैयारी में जन लुभावन घोषणाएं करते रहते हैं !
किसान हमारी प्राथमिकताओं में कहीं नहीं आता , भारतीय किसानों के बारे में टसुये बहाने वालों को यह भी नहीं मालुम कि साधारण किसान की सामान्य दिनचर्या क्या है वह किन समस्याओं से जूझ रहा है और शायद इसकी जरूरत भी नहीं है क्योंकि इलेक्शन के समय यह फटेहाल भोला व्यक्ति अपने दरवाजे पर आये, अपने ही गांव के प्रमुख लोगों से घिरे, इन महामहिमों को निराश करने की हिम्मत नहीं कर पाता और उसे अपने पूरे कुनबे खानदान के साथ वोट इन्हीं खद्दर धारी दीमकों को देना पड़ता है !
यह पदयात्रा युवा आचार्य विवेक के आह्वान में पूरी हुई जिनकी मीठी वाणी और मोहक व्यक्तित्व से लगता है कि स्वामी विवेकानंद का पुनर्जन्म हो चुका है , शिवसूत्र उपासक विवेक पिछले कई वर्षों से , अपनी विदेशी नौकरी और विवाह त्याग कर, अध्यात्म साधना पथ पर चल रहे हैं , सुखद आश्चर्य है कि दिखावटी महात्माओं, बाबाओं के देश में, खादी का कुरता पैंट पहने यह सहज सरल युवा आचार्य,जनमानस पर अपनी छाप छोड़ने में समर्थ रहा है ! आचार्य विवेक के पीछे चलने वालों में सब के सब विभिन्न समुदायों के लोग जिनमें वयोवृद्ध पुरुष, नवजवान और महिलायें शामिल थे, अपने कार्य छोड़कर इस कड़ी धूप में किसानों के साथ दुःख बांटने को तत्पर दिखे और यह विशाल साधना कार्य बिना किसी अखबार , टेलीविजन न्यूज़ चैनल्स को बिना दावत पार्टी दिए , रोटी दाल खाते हुए बड़ी सादगी से किया गया !
विवेक जी के इस कथन पर कि आनंद ही आनंद किसी राजनीतिक प्रतिबद्धता से नहीं जुड़ा है और न हम इसके कार्यक्रमों में किसी राजनीतिक दल को शामिल करेंगे, हम जैसे बेआशीष फक्कड़ और मस्त मौला ने भी किसानों के दर्द में जाने का फैसला किया था और इस राह में विवेकजी के आध्यात्मिक आयोजनों में भी, मैंने यही पाया यह मेरे लिए एक बड़े संतोष और राहत का विषय था !
इस दौरान हमने विवेक जी के शिष्यों की गाड़ियों में लगभग 400 km यात्रा की जिसमें लगभग ६५ किलोमीटर की दूरी तेज धूप में पैदल चलकर तय की गयी ! पदयात्रा के रास्ते में आचार्य बिनोबा भावे का पवनार आश्रम एवं महात्मा गांधी के सेवाग्राम के दर्शन सुखद रहे ! उससे भी सुखद यह था कि एक आध्यात्मिक फ़क़ीर के पीछे कवि , साहित्यकार , डॉक्टर , इंजीनियर , सॉफ्टवेयर इंजीनियर , व्यापारी , किसान , मजदूर , चार्टर्ड एकाउंटेंट ,महिलायें , गृहणी और उनके बच्चे सब शामिल थे ! महिलायें न केवल कार चला रहीं थी बल्कि पैदल यात्रिओं के लिए भोजन पानी की व्यवस्था इस ४० डिग्री तेज धूप में पैदल चल कर , कर रही थीं और शामिल लोग इतनी विविधिता लिए थे कि उनसे बात करके थकान का नाम नहीं रहता ! ६० वर्षीय राजेश पारेख जो कि नागपुर के बड़े ज्वैलर्स में से एक हैं, ऐसे ही एक आदर पुरुष थे !
और इस भक्ति भावना का प्रभाव ग्रामीणों पर भी पड़ा , शुरू में किसान पदयात्रा के उद्देश्य से शंकित थे क्योंकि पहले गांव में काफिला सिर्फ महामहिमों का आता था और ढेर सारे वादे देकर जबरन वोट ले जाता था मगर जब उन्हें यह कहा गया कि हमारा वोटों से कोई लेना देना नहीं , हम भाषण देने नहीं, आपको सुनने आये हैं तब राहत की सांस लेते किसानों ने अपना दर्द खुल कर बताया ! उनके कष्ट अवर्णनीय हैं, उनके अपने उपजाए देसी बीज, खाद , कीटनाशक छीन लिए गए और उन्हें बाज़ार का प्रोडक्ट खरीदने को मजबूर करने के कानून बना दिए गए यही नहीं उनकी फसल की कीमत भी खरीदार तय करेंगे, यह कानून बना दिया गया ( फसल का रेट सरकार तय करती है ) !
इस देश में आज किसान अपने आपको हारा और बंधुआ मज़दूर मानने को मजबूर है और शायद ही कोई नेतृत्व उन्हें दिल से प्यार करता हो सब के सब इन भेंड़ों से अपनी रुई लेने आते हैं और यह झुण्ड अपना बचाव भी नहीं कर पाता ! इनकी पूरे साल की कमाई (उत्पादन ), सरकार की मदद से, अपनी मनमर्जी का पैसा देकर, कुटिल शहरी व्यापारी ले जाकर खरीद की मूल्य से आठगुने, दसगुने भाव पर बेंच कर अपनी तिजोरी भरते हैं और इलेक्शन के समय राजनेताओं को मदद के बदले धन देते हैं ताकि वे अगले ५ वर्षों के लिए दुबारा सत्ता में आ जाएँ और फिर इन्हें नोचते रहें , उनकी खुशकिस्मती से यह असंगठित भेड़ें भी करोड़ों की संख्या में हैं , सो कोई समस्या दूर दूर तक नहीं ! दैहिक, मानसिक शोषण और प्रताड़ना की यह मिसाल, पूरे विश्व में अनूठी व बेमिसाल है ! यही एक देश है जहाँ मोटे पेट वाले बेईमान सबसे अधिक भारत माता की जय बोलते नज़र आते हैं !
अनपढ़ों के वोट से , बरसीं घटायें इन दिनों !
साधू सन्यासी भी आ मूरख बनायें इन दिनों !
झूठ, मक्कारी, मदारी और धन के जोर पर ,
कैसे कैसे लोग भी , योद्धा कहायें इन दिनों !
मेरा यह दृढ विश्वास है कि हर क्षेत्र में हमारी ईमानदारी, पतन के गर्त तक पंहुच चुकी है , हम कोई भी काम बिना फायदे के नहीं करते , निर्ममता से अपनी छबि निर्माण के लिए कमजोरों को सिर्फ धोखा देते हैं और शक्तिशालियों से धोखा खाते हैं ! पूरा देश बेईमानों का गढ़ बन गया है अब यहाँ जीने के लिए और धनवान बनने के लिए राष्ट्रप्रेम के नारे के झंडे के साथ अपनी पीठ पर और गले में मालिक (राजनीतिक दल ) की पट्टी आवश्यक है ! लोग आपको देख भयभीत होकर आदर देते दुम हिलाएंगे ही !
इस बेहद खराब माहौल में ” चला गांवां कडे ” का नारा दिया है आचार्य विवेक ने , इस नारे को सार्थक बनाने के लिए एक ऑफिस खोला गया है जिसका कार्य गाँव की समस्याओं का अध्ययन करना है ! विदर्भ के विभिन्न गांवों से वर्तमान व्यवस्था से व्यथित युवाओं और स्वयं सेवकों ने ग्राम प्रतिनिधि का कार्य करने को अपना नाम दिया है ! मैनेजमेंट के बेहतरीन जानकार, विवेक ने अपना कार्य बड़ी सादगी और शालीनता से किया है, पूरी यात्रा में इस नवयुवक आचार्य के चेहरे पर थकान, विषाद का एक भाव नज़र नहीं आया हर वक्त एक आत्मविश्वास से सराबोर प्रभावशाली स्नेही प्रभामंडल नज़र आता था जिसे उसके प्रशंसक एवं शिष्य हर समय घेरे रहते ! उनके कई मजबूत समर्पित शिष्य उनके हर आदेश को मानने को तत्पर रहते थे !
विवेक जहाँ जहाँ जा रहे थे , महिलाओं और पुरुषों ने ,घर से निकल निकल उनका तिलक लगाकर अभिनन्दन किया ! मेरा विश्वास है कि मध्य भारत क्षेत्र में, आने वाले समय में तेजी से बढ़ती उनकी लोकप्रियता निश्चित ही स्वयंभू नेताओं और मठाधीशों को चौंकाने के लिए काफी होगी !
इन पांच दिनों में आचार्य विवेक के संगठन आनंद ही आनंद की ओर से, बिना किसी भाषण बाजी के केवल अपना और आचार्य विवेक का संक्षिप्त परिचय देकर किसानों से अपनी बात कहने का अनुरोध किया जाता था ! इन धुआंधार मीटिंगों से जो बातें सामने आयीं वे निम्न थीं !
आज तक गाँव में कोई सरकारी मदद नहीं मिली , जो घोषणाएं हुई भी हैं वे बरसों से दसियों इंस्पेक्टरों की जांच होते होते नगण्य रह जाती हैं !
- पहले किसान अपनी फसल उगाने के लिए बिना एक पैसा खर्च किये, अपने खुद के द्वारा जमा किये गए बीज ,खाद और कीटनाशकों पर निर्भर था वहीँ अब उसे हाइब्रिड बीज , विशिष्ट कीटनाशक और खाद बाहर से खरीदने पड़ते हैं जिसमें उसकी जमा पूँजी अथवा कर्ज का एक भारी हिस्सा खर्च हो जाता है , सूखा या अतिवृष्टि के कारण फसल नष्ट होने की हालत में यह कर्जा और अगले साल की भोजन की समस्या , शादी व्याह और सामाजिक दवाब उसके आगे भयावह स्वप्न जैसे खड़े नज़र आते हैं और उसकी स्थिति बदतर करने के लिए भरी रोल अदा करते हैं !
- बैंक का पैसा हर हालत में वर्ष के अंत में बापस करना पड़ता है चाहे फसल से भारी लागत लगाने के बावजूद एक रूपये का भी मुनाफ़ा न हुआ हो या सारी फसल असमय वर्षा या सूखा से खराब क्यों हुई हो !
- सरकार द्वारा निर्धारित कपास का समर्थन मूल्य, लागत से भी काम पड़ता है , यह वर्तमान में 4000 /= है जो किसानों के हिसाब से कम से कम 6000 /= पर क्विंटल होना चाहिए !
- यह विडम्बना है कि किसान अपना धन और श्रम लगाकर फसल उगाता है और उसका मूल्य निर्धारण शहरों में बैठे सरकारी दफ्तर के बाबू करते हैं , छोटे किसान जिसको लागत अधिक पड़ती है और बड़े किसान दोनों को एक सा मूल्य दिया जाता है , सरकारी व्यवस्था को, विभिन्न कारणों से फसल खराब होने अथवा जानवरों व मौसम द्वारा बर्वादी से कोई मतलब व जानकारी नहीं अतः लगभग हर किसान ने एक मत से अपनी फसल का मूल्य निर्धारण स्वयं करने की मांग की ! वे चाहते हैं कि बाजार की डिमांड के हिसाब से वे अपनी फसल को बेंचें तभी गांवों में खुशहाली आ सकती है !
- आज किसानों के बच्चे किसी हाल में किसान नहीं बनना चाहते उनका कहना था कि शहरों से सम्मान देने वाला चपरासी गाँव में टू व्हीलर से आता है जबकि हमारे पास साईकल भी नहीं होती हम कुछ भी कर लेंगे पर किसान नहीं बनना चाहते , स्वतंत्र भारत में , अपनों के द्वारा अपनों के शोषण की यह जीती जागती तस्वीर किसी का दिल दहलाने को काफी है !अनपढ़ किसानों और गृहणियों के मध्य जमकर नोट कूटता चालाक टेलीविजन मिडिया आजकल धनपतियों को सुबह शाम दो बार सलाम करता है और फिर जो माई बाप कहते हैं वही करता है ! किसानों के बारे में नीरस जानकारी देने के लिए मशहूर दूरदर्शन के दिखावटी कृषि चैनल खोलकर सरकार मस्त है लोकल खद्दरधारी दीमकों ने शेतकारी कमिटी , किसान यूनियन व अन्य किसान नामधारी संगठन बनाकर अपने शराबी चमचों को वहां अध्यक्ष और सेक्रटरी बना दिया है यह राष्ट्रप्रेमी शिष्य गण अपने दफ्तरों में भगत सिंह,चंद्रशेखर आज़ाद की तस्वीर लगाकर शाम को दारु सम्मेलनों में किसानों की समस्याओं पर चर्चा कर अपना कर्तव्य पालन कर मस्त रहते हैं !
बड़ी क्रूरता के साथ, अपनी सीधी साधी गाय मारकर, उसे परोसकर हम सिर्फ धनवानों को और ताकतवर और हृष्ट पुष्ट बना रहे हैं !पहली बार जीवन में मुझे कोई लेख लिखते समय अपने दिल में कम्युनिस्टों के प्रति आदर सम्मान की भावना जाग्रत हो रही है , मगर उन बेचारों के, मार्क्स लेनिन को अनपढ़ किसान समझे कैसे ?