“Hindi- Vindi” था। यह फिल्म

“Hindi- Vindi” था। यह फिल्म

डा. सुभाष शर्मा————-हाल ही में मैने एक फिल्म मेलबॉर्न के Crown Village cinema में देखी, जिसका नाम “Hindi- Vindi” था। यह फिल्म जाने माने हिंदी-सेवी कवि अनिल कुमार शर्मा जो मेरे घनिष्ठ मित्र हैं उनके बेटे जयंत ने बनाई है। अतः उनका अनुरोध था कि मैं फिल्म के मेलबॉर्न प्रीमियर शो में अवश्य जाऊं। स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण पहले मैं असमंजस में था कि फिल्म देखने जाऊं या न जाऊं। लेकिन जब मैने पोस्टर देखा कि इस फिल्म में मशहूर अभिनेत्री नीना गुप्ता मुंबई के मिहिर आहूजा तथा ऑस्ट्रेलिया के टीवी स्टार मशहूर अंग्रेजी गायक कानपुर में जन्मे गाय सबेस्टियन ने एक्ट किया है, गीत लिखे हैं तथा म्यूजिक भी डायरेक्ट किया है। तब  स्क्रिप्ट राइटर तथा सह फिल्म निर्माता लेखक जयंत शर्मा एवं निर्माता अनिकेत देशकर तथा डायरेक्टर सैयद अली हैं तो जिज्ञासा हुई कि एक अंग्रेजी फिल्म,  जो हिंदी पर बनी है, जिससे इतने बड़े कलाकार से जुड़े हैं, तो अवश्य देखनी चाहिए।

फिल्म देख कर लगा जैसे मैं अपनी अमेरिका में रह रही बहन के बच्चे को देख रहा हूँ। किस तरह से वह हिंदी से चिढ़ता है। मैं भी ऑस्ट्रेलिया में हिंदी सेवा से जुड़ा हूं। यहाँ भी ऐसे बहुत से परिवार देखता हूं, जो ऐसी ही मिलती जुलती समस्याओं से जूझ रहे हैं।  पर भाषा ही  एक प्रमुख कारक है, जो हमेैं अपनी संस्कृति से जोड़ती है और संस्कृति लोगों को जोड़ती है, यही इस फिल्म का सार है।

इस फिल्म में विदेश में पल रहे एक युवक की कहानी है जो भारतीय माता पिता की अकेली संतान है और मां के स्वर्गवास के बाद पिता से अलग रह रहा है। उसकी भाषा अंग्रेजी है पर संस्कृति भटकी हुई है वह न अंग्रेज है न हिन्दुस्तानी है। गायन वादन उसका शौक है यह शौक उसके क्रोध और मानसिक तनाव को कम करने का प्रयास है। जब उसकी नानी भारत से आती है। नानी और ये (धेवता)नवयुवक एक दूसरे की भाषा एक की हिंदी और दूसरे की अंग्रेजी के ज्ञान के  बिना आपस में बात करते समय कितने झुंझलाते हैं वहीं दूसरी ओर भाषा से जुड़ी अपनी संस्कृतियों से एक दूसरे को निकट लाते हैं । एक ओर युवक नानी को गूगल और सीरी का उपयोग सिखाता साथ ही पाश्चात्य गर्ल फ्रेंड, बॉय फ्रेंड और लेस्बियन कल्चर से परिचित कराया है  वहीं पीज़ा पास्ता खाने वाले बच्चे को भारतीय व्यंजनों के प्रति लालसा जगती है। 

वहीं बाप जो खुद कभी भगवान के आगे हाथ न जोड़ता होगा, वह युवक को नानी के पैर छू कर कॉन्सर्ट में जाने को कहता । वही नानी दही-चीनी खिला कर शगुन के साथ उसे एक म्यूज़िक कंपटीशन के लिए भेजती है। अंत में वह युवा जो झुंझलाहट में आकर छुप – छुपकर हिंदी सीखता रहता था। अचानक अपने स्कूल में भाषा दिवस पर टूटी-फूटी हिंदी में भाषण देता है और अच्छी तरह से हिंदी में न बोल पाने के कारण मन ही मन बहुत क्रोधित होता है और अंत में बम्बई में एक कॉन्सर्ट करता है जिसमें अपनी नानी को संपर्पित स्वयं का हिंदी में लिखा गीत सुनाकर अचंभित कर देता है।

इस प्रकार फिल्म हिंदी भाषा एवं भारतीय संस्कृति के माध्यम से परिवार, समाज और देश को जोड़ने का संदेश देती है। यह फिल्म बीच बीच में हंसाती है तो रुलाती भी है और अंत में मजबूर करती है कि भाषा को संस्कृति से जोड़ कर हम अपने परिवार को कैसे सुखमय बना सकते हैं ।

फिल्म देखने के बाद ही मैने अपने परम मित्र अनिल शर्मा जी को फोन किया और पहली बात जो कही कि फिल्म देख कर मेरा स्वयं को हिंदी सेवी कहने पर सिर शर्म से झुक रहा है। उनका कहना था कि आपका सिर तो गर्व से ऊपर होना चाहिए ऐसी क्या बात है? मैने कहा कि आपको बधाई आप ऐसे संस्कारी पुत्र के पिता हैं जो हिंदी भाषा को लोगों तक पहुंचा रहा है। मात्र कविता लिख कर हम और आप जैसे आपस में ही एक दूसरे की पीठ ठोक कर खुश हो रहे हैं। (अनिल शर्मा जी मेरे परम मित्र है)

मैं चाहूंगा कि यह फिल्म हर भारतीय को किसी न किसी तरह चाहे वह युवा है, वयस्क है, बुजुर्ग है, नया माइग्रेंट है चाहे वह विदेश में है या उसके परिवार जन विदेश में हों सबको यह फिल्म अवश्य देखनी चाहिए ताकि आज के परिदृश्य में आधुनिकता तथा परंपराओं के विक्षेदन से जो स्थिति पैदा हो रही है उस पर भाषा के ज्ञान से कैसे नियंत्रण किया जा सके।

नए माइग्रेंट विशेष रूप से देखें, कुछ लोगों के बच्चे जब बच्चे नए अंग्रेजी स्कूल से अंग्रेजी के नए उच्चारण सीख कर आते हैं तब वे इतने अधिक उन्मादित हो जाते हैं कि अपनी ही हिंदी को स्वयं घटिया भाषा समझने लगते हैं । आज विदेश में रह रहे अधिकांश परिवार किसी न किसी रूप में ऐसी समस्याओं में उलझे हुए है । यह फिल्म ऐसे माइग्रेंट लोगों को लिए अलार्म का कार्य करेगी।

ऊपर जो लिखा है इसलिए नहीं कि मैं “हिंदी विंदी” फिल्म का प्रचार कर रहा हूं। सच यह कि यही बातें जब हम हिंदी सेवी अपने भाषणों में बताते हैं तो कोई एक या दो मिनिट से अधिक का भाषण बकवास समझ कर झेलता हैं। पर मैने जब युवा परिवारों से बात की तब उन्होंने बताया ” सर वैसे जो बात आप लोग कहते हैं वही इस फिल्म में कही गई है पर ढाई घंटे कहां चले गए पता ही नहीं चला।”  दूसरे ने कहा सर “फिल्म का एक एक पल भावुकता, उत्सुकता और कौतूहल से भरा है। इस फिल्म में हर आयुवर्ग के लिए कुछ सोचने और समझने योग्य बाते हैं । पर एक बात है सर, यूं तो आप हिंदी वाले भी यही बात बताते हैं पर फिल्म दिखाती है इसलिए बात जल्दी समझ में आती है।

मेरा अनुरोध है कि हिंदी प्रेमी इस फिल्म को देखें और समझे कि शॉल, श्रीफल, कविता, फूल माला अपनों को ही बार-बार रेवड़ी बांटने से हिंदी का उत्थान नहीं होगा। हमें हिंदी की बात उनसे करनी चाहिए, जिन्हें नहीं आती है।
हिंदी को आगे बढ़ाने के लिये अपनी संस्कृति नई पीढ़ी को सिखाने के लिये हमें इस तरह के प्रयास करने होंगे । इसके लिए एक नए दृष्टिकोण अपनाना होगा। यह फिल्म इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

फिल्म छोटी है कम बजट की है माना पर यह फिल्म हर दर्शक को बार बार हंसने और रोने को मजबूर करती है यही इसकी सफलता का माप दंड है। मनोरंजन तो फिल्म का व्यावसायिक पक्ष होता है पर समाज तक संदेश पहुंचाना एक नैतिक जिम्मेदारी। कुल मिलाकर फिल्म भरपूर मनोरंजन कराती है  पर अंत में हर आयु वर्ग के दर्शक को याद दिलाती है कि समाज में फैली विषमताओं में मेरा भी कहीं किरदार है । साथ ही विदेश में रह रहे भारतीयों को याद दिलाती है कि भाषा संस्कृति एक दूसरे की जुड़वा बहन है दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह सकती यही इस फिल्म की सफलता का जीता जागता प्रमाण है।

अनिल शर्मा जी ने हिंदी के उत्थान के लिए जो बीज जयंत के रूप में बोया था, ऋतु आने पर अब वह पल्लवित हो रहा है। जयंत शर्मा की पूरी टीम को इस विषय पर फिल्म बनाने के लिए हार्दिक बधाई।

डा. सुभाष शर्मा
sharmalog@gmail.com

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