जल बना जंजाल, फैला सियासी जाल—– सज्जाद हैदर
वाह रे सियासत तेरे रूप हजार। सत्ता का लोभ एवं कुर्सी की चेष्टा किस स्तर तक जा सकती है इसकी
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