- November 5, 2015
दिवालिया कानून : छह से नौ महीनों के अंदर निपटान
दिवालिया कानून बनाने में जुटी समिति ने किसी कंपनी के परिचालन को बंद करने की इजाजत देने की प्रक्रिया को जल्द निपटाने की सिफारिश की है। समिति ने सिफारिश की है कि कंपनी के परिचालन को बंद करने या उसकी देनदारियों को सीमित करने की प्रक्रिया को छह से नौ महीनों के भीतर निपटाया जाए और मुश्किल में फंसी कंपनी के प्रबंधन का अस्थायी दारोमदार योग्य पेशेवरों के हाथ में दे दिया जाना चाहिए। समिति ने अपनी रिपोर्ट और उससे जुड़ा मसौदा विधेयक वित्त मंत्रालय का सौंप दिया है और इस पर प्रतिक्रियाओं के लिए उसे सार्वजनिक किया जाएगा।
दिवालिया कानून सुधार समिति (बीएलआरसी) ने यह भी सिफारिश भी की है कि मुश्किल में फंसी कंपनी के लिए दिवालिया प्रस्ताव को उसके कम से कम 75 फीसदी कर्जदाताओं की मंजूरी हासिल करनी होगी अन्यथा इस मामले में फैसला लेने वाली संस्था उस कंपनी की नीलामी का आदेश दे सकती है। इस 15 सदस्यीय बीएलआरसी की कमान लोकसभा के पूर्व महासचिव टी के विश्वनाथन संभाले हुए हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट के साथ ही ऋणशोधन एवं दिवालिया विधेयक,2015 का मसौदा वुधवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली के सुपुर्द कर दिया। वित्त मंत्रालय ने इस पर जनता और अंशभागियों की प्रतिक्रिया लेने के लिए उसे अपनी वेबसाइट पर लगा दिया है, जिस पर 19 नवंबर तक प्रतिक्रिया दी जा सकती है।
आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने बताया कि सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं के अलावा अंतर-मंत्रालय परामर्श के लिए दूसरे मंत्रालयों को भेजने के लिए मसौदा कैबिनेट नोट भी तैयार किया जा रहा है। जब दोनों मोर्चों पर सुझाव हासिल हो जाएंगे, तब सरकार फैसला करेगी कि उनमें से किन-किन सुझावों को शामिल करना है। दास ने बताया कि बाद की कवायद मंत्रिमंडल और संसद में की जाएगी।
इससे पहले बुधवार को ही जेटली ने कहा कि सरकार इस विधेयक के अंतिम प्रारूप को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश करने की कोशिश करेगी। समिति द्वारा तैयार विधेयक के मसौदे में सुझाव दिया गया है कि मुश्किल में फंसी कंपनी को चिह्नित करना चाहिए ताकि उसे मुश्किल से उबारने के लिए कदम उठाए जा सकें। रिपोर्ट के अनुसार, ‘इस विधेयक का मकसद कर्जदाताओं और कर्जदारों के बीच विवादों का निपटारा करना है, जिसमें आर्थिक पहलुओं पर नुकसान को भी कम करना शामिल है।’
इसमें मुश्किल में फंसी कंपनियों की गिरती वित्तीय सेहत को शुरुआत में ही भांपने और उसे जल्द पटरी पर लाने के लिए भी उचित राह का सुझाव दिया गया है। अन्य सिफारिशों में विधेयक में एक ऋणशोधक नियामक बनाने का भी सुझाव दिया है, जिसकी बागडोर ऋणशोधक पेशेवरों के हाथ में हो। विधेयक में उस संक्रमण काल के लिए भी प्रावधान किए गए हैं कि जब तक यह नियामक आकार न ले, तब तक इस मामले से जुड़ी सभी कवायदों में केंद्र सरकार कैसे शक्तियों का उपयोग कर सकती है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘संक्रमण प्रावधान इस प्रक्रिया को जमीनी स्तर पर जल्द शुरू करने में सहायक होंगे, जिसके लिए प्रस्तावित संस्था के आकार लेने तक इंतजार नहीं करना होगा।’ विधेयक में सिफारिश की गई है कि व्यक्तियों और गैर सूचीबद्घ साझेदार कंपनियों पर फैसला करने का जिम्मा ऋण वसूली पंचाट (डीआरटी) और कंपनियों और सीमित देनदार कंपनियों पर निर्णय करने का दारोमदार राष्टï्रीय कंपनी कानून पंचाट (एनसीएलटी) को सौंप देना चाहिए।