- October 2, 2015
आस्था का केन्द्र है छायन का देवनारायण मंदिर – डॉ.दीपक आचार्य
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पूर्वजों, पितरों और लोक देवताओं से लेकर देवी-देवताओं के प्रति अगाध श्रद्धा और विश्वास की परंपरा के प्रतीक असंख्य देवालय व देवरे राजस्थान के मेवाड़, वागड़ और काँठल क्षेत्र में विद्यमान हैं जिनके प्रति लोक आस्था का ज्वार साल भर दिखाई देता है।
इन देव धामों पर विशिष्ट अवसरों पर लगने वाले मेलों में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और धर्म लाभ लेने के साथ ही सामाजिक समरसता और धार्मिक आस्थाओं को अभिव्यक्त करते हुए अपने आपको धन्य मानते हैं।
जन श्रद्धा का प्रतीक
इसी परंपरा में बाँसवाड़ा-प्रतापगढ़ मार्ग पर प्रतापगढ़ से कुछ पहले छायन गाँव में मुख्य मार्ग पर ही दाहिनी ओर देवनारायण का मंदिर है जो क्षेत्र के ग्रामीणों के लिये परंपरा से आस्था का केन्द्र है। इसमें देवनारायण के साथ ही हनुमान, माताजी, गणेश आदि की मूर्तियां भी हैं। मन्दिर में भौंपाजी की गादी भी है।
हरियाली बिखेरता धर्मधाम
मनोरम वातावरण में पेड़ों की छाँव का सुकून देने वाले इस मंदिर में फलाहारी महाराज के नाम से प्रसिद्ध सिद्ध तपस्वी संत ने 12 बरस तक तपस्या की और लोक कल्याण गतिविधियों को साकार किया। ग्रामीण बताते हैं कि विक्रम संवत 2011 में फलाहारी महाराज ने 40 जोड़ाें की शादी करायी थी। इसके साथ ही उन्होंने क्षेत्र में वृक्षारोपण भी कराया। इसी का नतीजा है कि आज यह धर्म धार्म प्रकृति का महिमागान करता नज़र आता है।
सरहदी क्षेत्रों को बनाया कर्मक्षेत्र
उनका जन्म चित्तौड़गढ़ जिले में हुआ तथा संन्यास प्राप्ति के उपरान्त मेवाड़, वागड़ और कांठल के आदिवासी क्षेत्रों में उन्होंने समाजसुधार तथा जनजागृति संचार के काम किए और लोगों को सच्चाई, ईमानदारी और मेहनत के साथ जीने की शिक्षा दी। रियामण, सेना, रायपुर, मायंगा, देवगढ़ और वीरपुर उनका कर्मक्षेत्र रहा। इसके अलावा समीपवर्ती मध्यप्रदेश के विभिन्न सीमावर्ती इलाकों में भी उन्होंने धर्म जागरण तथा समाजसुधार कार्य किया। यही कारण है कि उनके प्रति आज भी क्षेत्र भर में विशेष श्रद्धा भाव देखा जाता है।
चेतना जगाता है फलाहारी महाराज का अखाड़ा
देवनारायण मन्दिर में उनकी तस्वीर स्थापित है जिसमें उनके अवतरण के बारे में दोहा लिखा हुआ है – संवत् उन्नीस सौ उनसाठा, मेवाड़ नगर के बीच/भाद्रपद शुक्ला बुध पूर्णिमा, सन्त ने धरयो शरीर। इसी प्रकार उनके निर्वाण के समय को दोहे में स्पष्ट किया हुआ है – संवत् दो हजार बत्तीसा, ऎराव नदी के तीर/कार्तिक शुदी बुध नवमी, सन्त ने तज्यो शरीर। एक अन्य तस्वीर भी मन्दिर में लगी हुई है जिसमें फलाहारी महाराज के साथ ही तपस्वी संत चरणदास महाराज का चित्र है।
फलाहारी महाराज ने बरसों तक इस स्थान पर रहकर अनेक सिद्धियां पायीं और जगत कल्याण की गतिविधियों का संचालन किया। इस कारण से इसे फलाहारी महाराज का अखाड़ा भी कहा जाता है। मन्दिर की विभिन्न दीवारों पर देवी-देवताओं के रंगीन चित्र भी बने हुए हैं।
गाँवाई पूजा की परंपरा बरकरार
मंदिर में वर्ष भर श्रद्धालुओं का आवागमन बना रहता है। बरसात के मौसम से पहले एक बार सुवृष्टि की कामना से गाँव वाले मिलकर इन्द्र भगवान की पूजा व हवन करते हैं । इनमें पटेल व गुर्जर समुदाय के साथ ही क्षेत्र के सभी समुदायों के लोगों की खूब भागीदारी होती है।
भगवान देवनारायण का मन्दिर छायन और आस-पास के क्षेत्रों के लिए प्रमुख दैव धाम है जो साल भर किसी न किसी प्रकार की धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों का केन्द्र बना रहता है।
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