- August 7, 2015
‘अपना-अपना आकाश’ : भरतचन्द्र शर्मा का कहानी संग्रह विमोचित
उदयपुर, 7 अगस्त/बांसवाड़ा के मशहूर साहित्यकार भरतचन्द्र शर्मा के कहानी संग्रह ‘अपना-अपना आकाश’ का विमोचन शुक्रवार को मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के हिन्दी सभागार में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. आई.वी. त्रिवेदी ने किया।
समारोह की अध्यक्षता जाने-माने आलोचक एवं समीक्षक प्रो. माधव हाड़ा ने की जबकि सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं सूर्यमल्ल मिश्रण पुरस्कार से सम्मानित डॉ. जयप्रकाश पण्ड्या ‘ज्योतिपुंज’ विशिष्ट अतिथि थे।
इस अवसर पर डीन डॉ. फरीदा शाह, डॉ. सीमा मलिक, पत्रकारिता विभाग के प्रभारी डॉ. कुंजन आचार्य डॉ. नवीन नंदवाना, डॉ. आशीष सिसोदिया सहित तमाम प्रबुद्धजनों ने कहानी संग्रह की सराहना की।
इस अवसर पर मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आई.वी. त्रिवेदी ने कहानीकार भरतचन्द्र शर्मा को कहानी संग्रह के लिए बधाई देते हुए उनके कृतित्व को अनुपम बताया।
इस अवसर पर प्रो. त्रिवेदी ने भरतचन्द्र शर्मा को नई संभावनाओं का अनुभवी कहानीकार बताया और कहा कि उनकी कहानियों में आँचलिकता का पुट परिवेशीय बिम्बों को साकार कर कहानी को पूर्ण जीवन्तता देता है।
प्रो. त्रिवेदी ने शोधार्थियों से कहा कि वे शर्मा के कहानी संग्रह ‘ अपना-अपना आकाश’ तथा काव्य संग्रह ‘सुनो पार्थ!’ का अध्ययन कर कविता और कहानी प्रक्रिया की अंतरंगता को अपने शब्दों से व्यवस्थित करें।
समारोह का संचालन करते हुए साहित्यकार प्रो. माधव हाड़ा ने हिन्दी साहित्य में आलोचना और समीक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान रेखांकित किया और साहित्य परिपुष्ट और परिमार्जित होता है।
जाने-माने साहित्यकार डॉ. जयप्रकाश पण्ड्या ‘ ज्योतिपुंज’ ने रचनाकार भरतचन्द्र शर्मा की रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डाला और कहा कि भरतचन्द्र शर्मा लम्बे समय से सतत लेखन में सक्रियता से जुड़े हुए हैं। साहित्य यात्रा की निरन्तरता के साथ विविध विधाओं में उनका जबर्दस्त दखल रहा है और अब लघु कथा तथा व्यंग्य के क्षेत्र में भी उनकी कृतियों का विमोचन अपेक्षित है। ज्योतिपुंज ने साहित्य में आंचलिक महत्त्व को रेखांकित किया।
ज्योतिपुंज ने विमोचित कृति ‘ अपना-अपना आकाश’ को मिट्टी से जुड़ी रचनाओं का संग्रहणीय एवं प्रेरक दस्तावेज बताया और कहा कि शर्मा की कहानियों में ग्राम्य लोक जीवन और आंचलिक संस्कृति को खूबसूरती के साथ उभारा गया है।
आरंभ में कृतिकार भरतचन्द्र शर्मा ने अपने कहानी संग्रह ‘अपना-अपना आकाश’ पर विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि इसकी भूमिका विख्यात कथाकार डॉ. सूर्यबाला ने लिखी है। उन्होंने कहा कि हिन्दी कहानी का मूल तत्व संवाद है जो प्राचीनकाल से कथा, वार्ता और जनश्रुतियों के माध्यम से सशक्त विधा के रूप में परिलक्षित होता है।
उन्होंने कहा कि कहानी की विधा समयातीत है और उन्हें कहानी लेखन की प्रेरणा प्रसिद्ध साहित्यकार पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी से प्राप्त हुई। शर्मा ने बताया कि इससे प्रेरित होकर लिखी गई कहानी ‘अपना-अपना आकाश’ मासिक पत्रिका जाह्नवी में प्रकाशित हुई।
समारोह के अन्त में आटर््स कॉलेज की डीन डॉ. फरीदा शाह ने आभार प्रदर्शन किया।