- June 24, 2015
माॅ की अद्म्यम क्रूरता तीन मासूमों की हत्या
सीधी-(म०प्र०) विंध्य प्रदेश के सीधी व शहडोल जिले में घटी जल समाधि की दो घटनाओं ने सामाजिक संरचना को झिझोंड़ दिया। दोनों ही घटनायें जून माह की हैं व हृदय विदारक हैं। सामूहिक आत्म हत्या में कारण प्रेम प्रसंग है। लेकिन तीन बच्चों को पानी डुबाकर मारने वाली माॅ की कहानी में अतिशयोक्ति है।
शहडोल जिले के गोहपारू थाना अंतर्गत् मलमाथर गांव के आदिवासी परिवार ने प्रेम प्रसंग में असफल गर्भवती पुत्री के प्रेमी संग विवाह में असफल होने पर 18 जून की रात समीपी तिरकी बांध में आत्म हत्या कर ली। क्षेत्र के उप पुलिस अधीक्षक शिव कुमार सिंह के मुताबिक मलमाथर के खेतिहर मजदूर परिवार राम भरत सिंह की 11 वीं कक्षा में पढ़ने वाली किशोरी बालिका का प्रेम प्रसंग गांव के ही भीमसेन पिता दौली सिंह गोंड़ के साथ चल रहा था, वह गर्भवती हो गई। परिजनों को जब तक पता चलता तो काफी देर हो चुकी थी। 8 माह की गर्भवती पुत्री का प्रेमी भीमसेन के साथ विवाह हेतु राम भरत ने पंचायत बुलाई। प्रेमी व उसके पिता ने विवाह से इंकार कर दिया।
लोकलाज व सामाजिक प्रताड़ना के भय से राम भरत सिंह (45) ने 18 जून की रात अचानक पत्नी प्रेमबाई(42), पुत्र विनोद (14), पुत्री सविता (19) परिवर्तित नाम, तथा पुत्र संतोष (15) को जगाया और चलने के लिये कहा। सभी लोग जब तिरकी बांध पहुंचे तो राम भरत ने साथ लाई रस्सी से आपस में बांध कर बांध में कूदने की बात कही, ताकि सब साथ में मरें, कोई बचे नहीं। संतोष ने अपने को छुड़ा लिया व वहां से भाग आया।
संतोष ने समीप ही बसे सीता सिंह गोंड़ के घर पहुॅचा और पूरी बात बताई। सीता सिंह तत्काल ही राम भरत के पिता जबर सिंह के घर पहुॅचा व घटना की जानकारी दी। पास पड़ोस के लोगों सहित वह रात में ही बांध में पहुॅचे पर किसी का कुछ पता नहीं चला। 19 जून की सुबह गोहपारू थाने में घटना की सूचना दी गई और दोपहर बाद चारों मृतकों के शव बरामद हो गये। पुलिस ने इस हृदय विदारक हादसे को जन्म देने वाले प्रेमी भीमसेन व उसके पिता दौली सिंह गोंड़ को गिरफ्तार कर लिया है।
मलमाथर गांव में लोक लाज व सामाजिक मर्यादा के भय से सामूहिक जल समाधि की बात तो समझ में आती है, लेकिन सीधी जिले के कमर्जी थाना अंतर्गत् घोघरा देवी मंदिर के समीप रेही नदी में अपनी ही तीन संतानों को डुबाकर मारने वाली माॅ की जुबानी बताई गई कहानी अतिशयोक्ति नजर आती है, गले के नीचे उतरती ही नहीं है।
मुगल सम्राट अकबर के नौ रत्नों में से एक बीरबल का जन्म घोघरा का बताया जाता है। कहा जाता है कि घोघरा देवी के वरदान से ही उन्हें हाजिर जवाब विलक्षण बुद्धि मिली थी। घोघरा देवी मंदिर के समीप से ही बह रही रेही नदी में ग्रामीणों ने तीन बच्चों के शवों को उतराते देखा। दो तो पूरी तरह नग्न थे व एक के ऊपर अधोवस्त्र था। तीनों के कपड़े, जूता व सैंडिल वहीं पड़े मिले। सहज ही लोगों को आशंका हुई कि यह तांत्रिक क्रिया का परिणाम है। क्योंकि स्थाननीय लोगों ने बच्चों को पहचानने से इंकार कर दिया था। शवों को जिला मुख्यालय में पोस्टमार्टम के बाद नियमतः दफना दिया गया।
समाचार पत्रों में खबर के प्रकाशन उपरांत 4 जून को पतेरी गांव के बृजमोहन मिश्रा ने कमर्जी थाने में आकर बताया कि मेरी लड़की पुष्पा 1 जून को अपनी दो पुत्रियों व पुत्र के साथ ननद के यहां मऊगंज जाने के लिये कह कर मायके से निकली थी, लेकिन वह भोपाल में अपने फूफा आदित्य तिवारी के यहां पहुॅच गई है, बच्चे उसके साथ नहीं हैं। कपड़ों से बृजमोहन ने नातिन प्रिया (9), प्रियांशी (7) व आदर्श (5) के रूप में पहचान की। बृजमोहन मिश्रा द्वारा मृतकों की पहचान उपरांत पुलिस ने हत्या की आरोपी माॅ पुष्पा पाण्डेय को भोपाल से गिरफ्तार कर कमर्जी थाना ले आई। पुष्पा ने पुलिस को अपने तीन मासूम बच्चों की हत्या का जो कारण बताया और उसने किस तरह से बच्चों को पानी में डुबाकर मारा ? वह रोंगटे खड़ा कर देता है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-27 के तहत् पुलिस को बताया कि उसका विवाह 11 वर्ष पूर्व इन्द्रमणि पाण्डेय से हुआ था। पति द्वारा बच्चों का लालन पालन सही ढंग से नहीं किया जा रहा था तथा चारित्रिक लांछन लगाता था, इसलिये बच्चों को मार डाला। विचारणीय है कि क्या महज इन कारणों से कोई माॅ, अपने ही मासूम बच्चों को क्रूरता पूर्वक मार सकती है ? पुष्पा के बयान अनुसार कि वह 1 जून को बच्चों को लेकर घोघरा मंदिर में देवी दर्शन की। मंदिर परिसर के ही एक होटल में खिलाया पिलाया और नदी ले जाकर डुबा कर मार डाली। माॅ क्या इतनी क्रूर हो सकती है ?
पुष्पा के कथन अनुसार उसने बच्चों से कहा चलो नहा लेते हैं। 5 वर्षीय आदर्श को उसने गोद में लिया और दोनो बच्चियों को तकरीबन 6 फीट गहरे पानी में ढकेल कर आदर्श समेत खुद कूद गई। आदर्श तो गोद में ही था, प्रिया व प्रियांशी ने बचने का प्रयास किया, बचाने की गुहार भी लगाई लेकिन निर्दयी मां का दिल नहीं पसीजा, तीनों जब तक डूब नहीं गये वह पानी में उन्हें डुबाती रही। इस प्रयास में पुष्पा भी पानी पी चुकी थी। बाहर निकल कर उल्टी की और फिर भाग निकली।
आरोपी पुष्पा द्वारा पुलिस को दिये गये कथन में क्या विश्वास किया जा सकता है कि पति द्वारा महज बच्चों की परिवरिश में कमी और चारित्रिक लांछन के कारण मासूमों को मार डाला ? उसने क्यों मौत को गले नहीं लगाया ? वह किसके लिये जीवित रहना चाह रही है ? लांछन तो उसके चरित्र पर था।
विंध्य के सीधी व शहडोल दोनों ही जिले आदिवासी बाहुल्य हैं। शहडोल में तो आदिवासी परिवार ने कुंआरी पुत्री की गर्भवती होने के सामाजिक लांछन के भय से आत्म हत्या की। लेकिन सामान्य वर्ग की पुष्पा ने लांछन की वजह से अपने मासूमों को मार दिया और खुद जीवित रहकर भोपाल तक चली गई ?
दोनो ही घटनाओं के कारणों के लिये हमारे देश में कानून बनाये गये हैं। क्या दोनो को कानूनी जानकारी नहीं थी ? क्या कानून पर भरोसा नहीं था ? हमारे तथाकथित सभ्य समाज के लिये दोनों ही घटनायें विचारणीय और चिंताजनक हैं।
संप्रेषक- विजय सिंह, स्वतंत्र पत्रकार
राज्य स्तरीय अधिमान्य
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