- March 26, 2015
हाडौती: आस पर गिरे ओले : ” भूख है तो सब्र कर..रोटी नहीं तो क्या ! – -पुरुषोत्तम पंचोली
हाडौती के किसानों को बेवक्त की बरसात और ओलावृष्टि ने बुरी तरह झकझोर डाला है। खेतों पर लहलहाती फसलें बर्बाद हो गई हैं और “अन्नदाता” खुद भूखों मरने को विवश है।
उधर, आपदा की इस घडी में नेता राजनीति की फसल काट रहे हैं। लगता है, ओले खेतों पर नहीं, किसानों की उम्मीदों पर पडे हैं। बर्बादी के मंजर मंे एक दर्जन काश्तकारों की मौत हो चुकी है। बडे पैमाने पर फसलों की तबाही की खबर के बावजूद राजस्थान की मुख्यमंत्राी वसुन्धरा राजे चैन की नींद सोती रहीं लेकिन जैसे ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बर्बाद फसलों का जायजा लेने के लिए हाडौती के दौरे की घोषणा हुई, वसुंधरा ने तुरत-फुरत अपने गृह जिला झालावाड के किसानों से मिलने और फसलों का जायजा लेने का ऐलान कर डाला।
सोनिया 20 मार्च को कोटा पहुंची तो वसुंधरा उसके एक दिन पहले ही अपने उडन खटोले से झालावाड जिले के सेमली और सुनेल के गांवों में जाकर किसानों को हर संभव सहायता का भरोसा दे आई। वसुंधरा ने कहा कि इस आपदा से किसान संकट में हैं लेकिन राज्य सरकार संकट की इस घडी में उनके साथ खडी है।
उधर, वसुंधरा के दौरे के अगले ही दिन कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कोटा जिले के लाडपुरा क्षेत्रा के गांव मोरपा और सुल्तानपुर के गांव दरबीजी का दौरा कर खराब हुई फसलों का जायजा लिया। सोनिया ने किसानों को उकसाते हुए कहा कि “ओलावृष्टि से भारी नुकसान हुआ है पर राज्य सरकार के पास
धन भी है, साधन भी: सरकार को जल्द पर्याप्त राहत देनी चाहिए। ” सोनिया ने पुरानी मुआवजा नीति की आलोचना की और कहा कि राज्य सरकार को इस नीति में संशोधन करना चाहिए। ज्यों ही सोनिया ने मुआवजा नीति में बदलाव की मांग की तो कोटा-बूंदी के सांसद ओम बिरला ने तत्काल बयान जारी कर कहा कि पिछले लम्बे अरसे से राज्य और केन्द्र में कांग्रेस की सरकारंे रहीं, तब मुआवजा नीति में बदलाव क्यों नहीं लाया गया।
उधर, सोनिया के दौरे की हवा निकालने और इसे
” फ्लाप ” करने की खातिर केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्राी मोहन भाई कुण्डारिया आनन-फानन में हाडौती के दौरे पर आ प्रकट हुए।
जिस दिन सोनिया कोटा के इर्द गिर्द गांव वालों को प्रदेश सरकार के खिलाफ लामबंद करने में मशगूल थी, ठीक उसी वक्त केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्राी कुण्डारिया जिले के देवपुरा और कल्याणपुरा गांव में किसानों के दुखों पर मर्सिया पढ रहे थे। दरअसल, पक्ष और प्रतिपक्ष का हर नेता यहां ” भरोसे की भभूत ” तो बांटता नजर आया, पर किसानों को राहत के नाम पर अभी तक कुछ भी हासिल नहीं हो पाया।
यूं तो सरकारी तंत्रा ने रस्म अदायगी की तो कोई कमी नहीं छोडी है लेकिन हकीकत इतनी ही है कि इस मंजर को देख कर दर्जन भर किसानों की मौत हो गई है। बेहिसाब तबाही और अबूझ बर्बादी से किसानों के मुरझाए चेहरों पर मुस्कान दिलाने के खातिर कोटा-बूंदी सांसद ओम बिरला ने ” अन्नदाता की सेवा ” का अभियान शुरू कर दिया है।
इस अभियान में घर-घर से मुट्ठी भर अनाज लेकर भूखे और समस्या ग्रस्त किसानों को राहत दी जाएगी। बिरला ने कहा ” हम किसी भी किसान को हाडौती की धरती पर भूखा नहीं सोने देंगे। ”
आपदा के इस दौर में सरकारी लवाजमांे में भी राहत के गीत गाए जाने लगे हैं। कोटा जिले के प्रभारी सचिव आलोक कुमार ने 24 मार्च को जिले के दीगोद क्षेत्रा के कुछ गांवों का दौरा किया और पीडित किसानों को सरकारी सहायता मुकम्मल तौर पर पहुंचाने के लिए अधीनस्थ अमले को हडकाया। आलोक ने कहा ” हम पहली अप्रेल से ही मनरेगा के तहत किसानों को राहत सुनिश्चित कर रहे हैं। ” जिला कलक्टर जोगाराम भी पूरी मुस्तैदी से राहत और भरपाई में लगे हैं।
बहरहाल, धरती पुत्रों के मलिन चेहरों पर राहत की आभा कहीं भी दिख नहीं रही है।
बरसों से किसानों के बीच काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता और हाडौती किसान यूनियन के संयोजक दशरथ कुमार कहते हैंः ” किसानों का खमियाजा इतना ज्यादा हो गया है कि सरकारी सहायता ऊंट के मंुह में जीरा जितनी भी नहीं है। ”
इस बीच बारह किसान अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं। अपनी ही आंखों के सामने कडी मेहनत की फसल को नेस्तनाबूद होते देख दर्जन भर किसानों की मौत से हाडौती हिल उठी है। सारे परिदृश्य में राष्ट्रपिता गांधी का वही सर्वहारा किसान खडा है और सत्ता शिविरों से एक ही नसीहत उसे परोसी जा रही है –
” भूख है तो सब्र कर..रोटी नहीं तो क्या! ”