- March 15, 2015
राष्ट्रीय पार्टी को क्षेत्रीय दल से कडा मुकाबला -राजकुमार अग्रवाल
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का लोकसभा चुनाव में 543 में से 44 सीटों पर सिमट जाने का संदेश साफ है कि राष्ट्रीय पार्टी को क्षेत्रीय दल से कडा मुकाबला है। लोकसभा और विधान सभा चुनाव गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़, गोवा व झारखंड में भाजपा स्पष्ट बहुमत में है,। पंजाब, महाराष्ट्र और जम्मू कश्मीर में भी भाजपा की बेहतर भागीदारी है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला, जबकि भाजपा को 70 में से 3 क्षेत्रों में ही जीत हासिल हुई थी। बहुजन समाज पार्टी सीपीआई और सीपीएम लंबे समय से राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त किए हुए है, मगर अब उनकी मान्यता पर भी ग्रहण लगने के आसार नजर आने लगे है और जल्द ही यह भी क्षेत्रीय पार्टियों की कतार में लग सकती है। बसपा, सीपीआई और सीपीएम का जनाधार भी तेजी से सिकुड़ता जा रहा है। पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरल से सीपीआई और सीपीएम का अस्तित्व हाशिए पर पहुंच गया है और इन तीनों राज्यों में इनकी उपस्थिति राष्ट्रीय पार्टी का तगमा सुरक्षित नहीं रख सकती।
लोकसभा में सीपीएम के नौ तथा सीपीआई का एक सांसद है। क्षेत्रीय पार्टियों का बढ़ता आंकड़ा जिस प्रकार से बढ़ रहा है, भविष्य में देश की राजनीति पर भारी पड़ सकता है। भारतवर्ष में विधेयक लोकसभा के साथ साथ राज्यसभा से भी पारित करवाना होता है और राज्यसभा के सदस्य राज्यों की विधानसभाओं से चुनकर आते है। लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में मतदाताओं का नजरिया अलग-अलग होता है,जिसकी पुष्टि दिल्ली में हुए लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव के परिणाम करते है।
मतदाताओं ने स्पष्ट कर दिया कि आवश्यक नहीं जिस पार्टी की सरकार केंद्र में हो, प्रदेशों में भी उसकी परचम लहराया जाए। लोकसभा में बहुमत हासिल हो और राज्यसभा में भी, ऐसा जरूरी नहीं है, क्योंकि राज्यसभा में प्रत्येक दो वर्ष उपरांत एक तिहाई नए सदस्य चुनकर आते है।
अब यदि राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सरकारें होगी, तो जाहिर है कि राज्यसभा में भी उनके प्रतिनिधि दस्तक देंगे। ऐसी स्थिति में लोकसभा में बहुमत पाकर भी सरकार अपनी मर्जी मुताबिक कानून बनाने में सफल नहीं हो सकेगी, क्योंकि क्षेत्रीय दलों की दबदबे वाली राज्यसभा सेे विधेयक पारित करवाना उसके लिए आसान नहीं रहेगा।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की शानदार विजय से ऐसी संभावनाएं व्यक्त की जाने लगी थी कि इसका उभार भी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में हो सकता है, मगर “आप” की मौजूदा स्थिति संभावनाओं को खारिज करती है। आम आदमी पार्टी से जो लोगों को उम्मीदें थी, उन पर ग्रहण लगता दिखाई देने लग गया है और यह भी एक क्षेत्रीय दल तक ही सिमट कर रह जाएगी।
देश के कई राज्य उड़ीसा, तमिलनाडू इत्यादि में क्षेत्रीय दल विजयी परचम लहराए हुए है। राष्ट्र का मौजूदा राजनीतिक मानचित्र दर्शाता है कि भविष्य मे देश की राजनीति में क्षेत्रीय दलों की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।