- January 8, 2015
शैक्षिक मंथन:’कैसी हो बढ़ते भारत की शिक्षा नीति – शिक्षा राज्य मंत्री
जयपुर – शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी ने कहा है कि भारतीय शिक्षा में मूलरूप से जो परिवर्तन आने चाहिए, वह अभी परिवर्तन की प्रतीक्षा में है। उन्होंने कहा कि आधुनिक समय में क से कबूतर, ख से खरगोश की बजाय क से कम्प्यूटर, ख से खगोल और ग से गणेश पढ़ाए जाने की शिक्षा विद्यार्थियों को दिए की जरूरत है। साथ ही भारतीय संस्कृति के बारे में संक्षेप में बालकों को कैसे ज्ञान दिया जाए, इस पर भी शिक्षा नीति में विचारे जाने की जरूरत है।
श्री देवनानी बुधवार को यहां भारती भवन में ‘शैक्षिक मंथन; संस्थान द्वारा ‘शैक्षिक मंथन; पत्रिका ‘बढ़ते भारत की कैसी हो शिक्षा नीति ? विशेषांक के लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि देश की चीजों को विद्यार्थी युगानुकूल और युग की चीजों को देशानुकूल यदि शिक्षा में कर पाते हैं, तभी उसकी सार्थकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारतीय संस्कृति की शिक्षा के संस्कार विद्यालयों में कैसे दिए जाएं, इस पर गंभीरता से विचारा जाए।
शिक्षा राज्यमंत्री ने कहा कि जरूरी यह है कि शिक्षा में इस बात पर अधिक विचार जाए कि देश के बच्चों को कैसा बनाया जाए, उन्हें कैसे इस प्रकार की शिक्षा दी जाए कि वे भविष्य में देश के अच्छे नागरिक बन सकें। उन्होंने मैकाले की शिक्षा के विकल्प पर भी विचार किये जाने और उसका प्रारूप तैयार करने के लिए भी कार्य किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अच्छे संस्कार प्रदान कर अच्छे नागरिक बनाने की शिक्षा विद्यालय दें। इसके लिए यदि शिक्षा नियामक आयोग भी बनाया जाता है तो उस पर भी विचार किए जाने की जरूरत है। उन्होंने शिक्षा के साथ पढ़ाने वाले तंत्र पर भी गंभीरता से विचार किए जाने पर जोर दिया।
श्री देवनानी ने कहा कि इस समय देश की शिक्षा में शैक्षिक वातावरण का अभाव दिखता है, इस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का मूल भाव बच्चों की प्रतिभा को निखारकर आगे लाना होना चाहिए। इस समय की जो शिक्षा है वह व्यक्ति निर्माण की नहीं, व्यक्ति को आजीविका के लिए तैयार करने की दी जाती है। जरूरी यह है कि शिक्षा बालक के मन, शरीर और बुद्घि को विकसित करने वाली हो। इन सबको पाठ्यक्रम में समावेशित करेंगे तभी शिक्षा की सही मायने में सार्थकता होगी।
इस मौके पर मुख्य वक्तत्व देते हुए श्री हनुमानसिंह राठौड़ ने कहा कि कैसी की जगह कैसे हो भारत की शिक्षा नीति, इस पर हमें विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वास्तव में देश की धारा कैसे बदले, इस पर शिक्षा में गंभीरता से विचार हो। उन्होंने स्पष्ट किया कि पश्चिम का जो भी है, वह आधुनिक नहीं है।
वर्तमान परिस्थिति में गुरूकुल का वातावरण प्रत्येक विद्यालय में यदि हम दे पाते हैं, तो वह आधुनिकता है। इस पर शिक्षा नीति में विचार किये जाने की जरूरत है। उन्होंने शिक्षा के उद्देश्य पर विचार किये जाने पर जोर देते हुए कहा कि विडम्बना यह है कि शिक्षा को पेट भरने का साधन बना दिया गया है, इसी से शिक्षा अनैतिक हो गई है। उन्होंने साफ कहा कि भोगवाद से आगे बढेंग़े तो उसे परिणाम भुगतने ही होंगे।
‘शैक्षिक मंथन’ विशेषांक की रूपरेखा पर चर्चा करते हुए राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष और शिक्षाविद् प्रो. विमलप्रसाद अग्रवाल ने कहा कि यही वह वक्त है जब देश की शिक्षा नीति पर वृहद स्तर पर चिंतन किए जाने की जरूरत है। उन्होंने पत्रिका में सम्मिलित विषयों की चर्चा करते हुए कहा कि बढ़ते भारत में शिक्षा की आवश्यकता और तदनुरूप शिक्षा के लिए सभी स्तरों पर विचार जाने की जरूरत है।
इस अवसर पर ‘शैक्षिक मंथन’ पत्रिका के संपादक प्रो. संतोष पांडे ने शिक्षा नीति कैसी हो, इस पर विषय प्रवर्तन करते हुए भारतीय शिक्षा के संबंध में विचार रखे। सभी का आभार श्री महेन्द्रकपूर ने जताया। कार्यक्रमें बड़ी संख्या में शिक्षाविदों ने भाग लिया।