- December 31, 2014
स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाने के लिए कृतसंकल्प
शिमला (हि०प्र०) – प्रदेश सरकार राज्य के सभी लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाने के साथ-साथ किसानों के लिए सिंचाई सुविधा को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान कर रही है। सभी जनगणना गांवों को पेयजल सुविधा उपलब्ध करवाई गई है, और अब शेष बची बस्तियों को पेयजल सुविधा उपलब्ध करवाने के लक्ष्य को गति प्रदान की गई है। हिमाचल प्रदेश देश के चुनिन्दा राज्यों में शामिल है, जहां सभी जनगणना गांव को पेयजल सुविधा उपलब्ध करवाई जा चुकी है।
प्रदेश में 53 हजार 604 बस्तियां हैं, जिनमें से 32 हजार 416 बस्तियों को पहले ही मार्च, 2014 तक पेयजल सुविधा उपलब्ध करवा दी गई है। वर्ष 2014-15 में 2509 बस्तियों को पेयजल सुविधा उपलबध करवाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिसमें सेे 1328 बस्तियों को 31 अक्तूबर, 2014 तक पेयजल सुविधा उपलब्ध करवा दी गई है। राज्य सरकार प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों कोे प्रतिदिन 70 लीटर पानी प्रति व्यक्ति उपलब्ध करवा रही है, जबकि 12वीं पंचवर्षीय योजना में 55 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन का लक्ष्य रखा गया था।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल प्रदेश के 95.5 प्रतिशत परिवारों को नल के माध्यम से स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाया जा रहा है, जबकि वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार 84.1 प्रतिशत लोगों को नल के माध्यम से पेयजल उपलब्ध करवाया जा रहा था। हिमाचल प्रदेश में 83.9 प्रतिशत नल के माध्यम से उपलब्ध करवाया गया उपचारित पेयजल उपलब्ध करवाया जा रहा है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर केवल 32 प्रतिशत को ही उपचारित पेयजल उपलब्ध करवाया जा रहा है।
आवश्यकता के अनुसार हैंडपंप उपलब्ध करवाये जा रहे हैं, जिसके तहत पेयजल कमी वाले क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। प्रदेश में मार्च 2014 तक 30 हजार 978 हैंडपंप स्थापित किये गये हैं। चालू वित्त वर्ष के दौरान सितंबर, 2014 तक 379 हैंडपंप स्थापित किये गये हैं। इसके अतिरिक्त प्रदेश के महत्वपूर्ण गंतव्यों पर 6 जल एटीएम स्थापित किये गये हैं। प्रदेश के धर्मशाला, मण्डी, कुल्लू, मनाली, कांगड़ा, नगरोटा बगवां तथा रामपुर की पेयजल योजनाओं के संवर्धन तथा सोलन जिला के बद्दी और नालागढ़ नगरों की मल-निकासी योजना के लिए तथा छोटे एवं मध्यम शहरों के लिए शहरी अधोसंरचना विकास योजना के तहत 247 करोड़ रूपये स्वीकृत किए गए हैं तथा इनका निर्माण कार्य प्रगति पर है।
प्रदेश के कुल 5.83 हेक्टेयर क्षेत्र में से 3.35 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को अश्योर्ड सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध करवाना सुनिश्चित बनाया गया है, और 2.60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कमांड सिंचाई योजना के अंतर्गत लाया गया है। तीन हजार हेक्टेयर भूमि को वर्ष 2014-15 के तहत सूक्ष्म सिंचाई योजना के तहत लाने का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें से 31 अक्तूबर, 2014 तक 1999 हेक्टेयर क्षेत्र सिंचाई योजना के तहत लाया गया है। कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए सिंचाई का विशेष महत्व है। कृषि उत्पादन प्रक्रिया में पर्याप्त तथा समय पर सिंचाई की पूर्ति की जरूरत उन क्षेत्रों में हैं, जहां वर्षा बहुत कम तथा अनियमित होती है।
कृषि योग्य भूमि को बढ़ाया नहीं जा सकता, इसलिए उत्पादन में तीव्र वृद्धि के लिए बहुविध फसलों तथा प्रति यूनिट क्षेत्र में अधिक फसल पैदावार उगाने के लिए सिंचाई पर निर्भर रहना पड़ता है। राज्य योजना में सिंचाई की संभावना तथा उसके अनुकूल उपयोग के सृजन पर विशेष बल दिया जा रहा है। प्रदेश की 2.31 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के रूप में चिन्हित की गई है। 22.647 हैक्टेयर क्षेत्र सरंक्षित किया गया है, जबकि अनेक बाढ़ सरंक्षण कार्य प्रगति पर हैं। वर्ष 2014-15 के दौरान बाढ़ से 500 हेक्टेयर भूमि के सरंक्षण का लक्ष्य रखा गया है, जबकि अक्तूबर 2014 तक 337 हेक्टेयर क्षेत्र का बाढ़ से सरंक्षण सुनिश्चित बनाया गया है।
वर्ष 2013-14 में 500 हेक्टेयर भूमि के सरंक्षण के लिए 4.942 लाख रूपये उपलब्ध करवाये गये हैं। ऊना जिले में 922.48 करोड़ रुपये की स्वां नदी तटीकरण परियोजना का कार्य प्रगति पर है। इसके अंतर्गत, 73 खड्डों को चैनेलाइज कर 7163.49 हेक्टेयर क्षेत्र को कृषि योग्य बनाया जाएगा। इसके अतिरिक्त, ब्यास नदी पर पलचान से औट तक 1155.15 करोड़ रुपये की तटीयकरण परियोजना तथा पब्बर नदी पर 191 करोड़ रुपये की परियोजना केंद्र सरकार को बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम के अंतर्गत स्वीकृति के लिए भेजी गई है।
कांगड़ा जिले की इंदौरा तहसील में 180 करोड़ रुपये की लागत से छौन्छ खड्ड के तटीकरण का कार्य प्रगति पर है। प्रदेश सरकार ने वर्ष 2013 के दौरान राज्य जलनीति-2005 को संशोधित कर स्वीकृति प्रदान की है। वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान प्रदेश में सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य क्षेत्र में 1500 करोड़ रुपये व्यय किए जा रहे हैं।