• January 28, 2025

सुप्रीम कोर्ट : कानून (RPwD अधिनियम 2016) : नियम 15 रद्द

सुप्रीम कोर्ट : कानून (RPwD अधिनियम 2016) : नियम 15 रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने नियम 15 को क्यों रद्द किया ?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार ने जो नियम (RPwD नियम 2017) बनाए थे, उनमें यह लिखा था कि अलग-अलग मंत्रालय और विभाग ‘चाहें तो’ दिव्यांग लोगों के लिए सुविधाएं दे सकते हैं. जबकि कानून (RPwD अधिनियम 2016) में साफ-साफ लिखा है कि सरकार को ऐसा करना ही होगा. नियम और कानून में यह अंतर ही सबसे बड़ी समस्या थी.

RPwD अधिनियम में यह भी कहा गया है कि सरकार को सोशल ऑडिट करके यह देखना होगा कि उसकी योजनाएं दिव्यांगजनों के लिए सही हैं या नहीं. लेकिन नियमों में सोशल ऑडिट करने का कोई साफ तरीका नहीं बताया गया था, जिससे कई तरह की समस्याएं हो रही थीं. सुप्रीम कोर्ट ने नियम 15 को इसलिए रद्द किया क्योंकि यह कानून के खिलाफ था और दिव्यांग लोगों के अधिकारों की रक्षा नहीं कर रहा था.

नियम 15 के खिलाफ फैसला आने का मतलब है कि इस नियम के तहत बनाए गए सभी दिशानिर्देश अमान्य हो गए. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को तीन महीने का समय दिया है नए दिशानिर्देश बनाने के लिए, जिनमें यह स्पष्ट रूप से लिखा हो कि सभी क्षेत्रों में दिव्यांग लोगों के लिए कौन-कौन सी सुविधाएं देना अनिवार्य है. कोर्ट ने यह भी कहा कि नए दिशानिर्देश कुछ खास सिद्धांतों पर आधारित होने चाहिए ताकि सभी दिव्यांगजनों को बिना किसी भेदभाव के समान अवसर मिल सकें.

‘पहुंच’ का असली मतलब क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने ‘पहुंच’ और ‘उचित सुविधा’ के बीच के अंतर को समझाया है. दोनों ही चीजें संविधान में दिए गए समानता के अधिकार से जुड़ी हुई हैं, लेकिन थोड़ी अलग हैं. ‘पहुंच’ का मतलब है कि दिव्यांगजनों के लिए हर जगह आने-जाने और सभी चीजों का इस्तेमाल करने में कोई बाधा न हो. यह उनका अधिकार है, जैसे संयुक्त राष्ट्र के दिव्यांगजनों के अधिकारों पर कन्वेंशन में भी कहा गया है. ‘उचित सुविधा’ का मतलब है कि अगर किसी दिव्यांग व्यक्ति को किसी खास जगह पर कोई खास दिक्कत आ रही है, तो उसके लिए अलग से इंतजाम किया जाए.

कोर्ट ने कहा कि ‘पहुंच’ और ‘उचित सुविधा’ एक-दूसरे की मदद करते हैं. ‘पहुंच’ से शुरुआत से ही सभी के लिए बराबर की सुविधाएं सुनिश्चित होती हैं, जबकि ‘उचित सुविधा’ से उन लोगों की खास जरूरतों का ख्याल रखा जाता है जिन्हें किसी विशेष स्थिति में कुछ अतिरिक्त मदद की जरूरत हो.

उदाहरण से समझिए, एक भवन में व्हीलचेयर के लिए रैंप होना ‘पहुंच’ का उदाहरण है, जबकि किसी दृष्टिबाधित व्यक्ति के लिए किसी खास दस्तावेज को ब्रेल लिपि में उपलब्ध कराना ‘उचित सुविधा’ का उदाहरण है. इस तरह ‘पहुंच’ और ‘उचित सुविधा’ मिलकर दिव्यांग लोगों को समाज में पूरी तरह से भाग लेने और अपना जीवन जीने में मदद करते हैं.

दिव्यांगजनों का अधिकार अधिनियम 2016 (RPwD Act) क्या है ?
दिव्यांगता किसी व्यक्ति की कमी नहीं, बल्कि समाज की कमी है. यह बात दिव्यांगजनों का अधिकार (RPwD) अधिनियम 2016 के मूल में है. यह कानून दिव्यांगजनों के अधिकारों की रक्षा करता है और उन्हें समाज में समान अवसर प्रदान करता है.

यह कानून कहता है कि किसी भी दिव्यांग व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता. उन्हें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा आदि में बराबर का हक है. यह कानून संयुक्त राष्ट्र दिव्यांगजनों के अधिकारों पर कन्वेंशन (UNCRPD) के अनुसार बनाया गया है, जिस पर भारत ने भी हस्ताक्षर किए हैं. इस कानून को अच्छे से लागू करने के लिए RPwD नियम भी बनाए गए हैं, जो इसकी प्रक्रिया को स्पष्ट करते हैं.

दिव्यांगजनों के अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने RPWD नियमों के नियम 15 को क्यों रद्द किया?

यह कानून दिव्यांगता को एक बदलती और गतिशील अवधारणा के रूप में परिभाषित करता है. पहले जहां सिर्फ 7 तरह की दिव्यांगता को मान्यता दी जाती थी, वहीं अब 21 तरह की दिव्यांगता को मान्यता दी गई है. सरकार इसमें और भी तरह की दिव्यांगता को जोड़ सकती है.

दिव्यांगजनों के अधिकार और सुविधाएं
दिव्यांगजनों के अधिकार अधिनियम 2016 के तहत सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह दिव्यांग लोगों (PwD) को दूसरे लोगों के बराबर सभी अधिकार दिलाए. अगर किसी बच्चे की उम्र 6 से 18 साल के बीच है और उसे 40% या उससे ज्यादा दिव्यांगता है, तो उसे मुफ्त में पढ़ाई करने का अधिकार है. 40% या उससे ज्यादा दिव्यांगता वाले लोगों को सरकारी नौकरियों में 4% आरक्षण और सरकारी या सरकारी सहायता प्राप्त कॉलेज और यूनिवर्सिटी में 5% आरक्षण मिलता है. ये खास सुविधाएं सिर्फ उन्हीं दिव्यांग लोगों को मिलती हैं जिनके पास 40% या उससे ज्यादा दिव्यांगता का प्रमाण पत्र हो.

RPwD अधिनियम में यह भी कहा गया है कि सभी सरकारी और प्राइवेट भवनों में दिव्यांग लोगों के लिए पहुंच होनी चाहिए. मतलब व्हीलचेयर रैंप, लिफ्ट, बड़े दरवाज़े, स्पेशल टॉयलेट जैसी चीजें होनी चाहिए ताकि दिव्यांग लोगों को आने-जाने और भवन का इस्तेमाल करने में कोई परेशानी ना हो.

इसके अलावा, दिव्यांग लोगों की शिकायतों का निवारण करने के लिए भी खास व्यवस्था है. मुख्य आयुक्त दिव्यांगजनों के कार्यालय और राज्य आयुक्त दिव्यांगजनों के कार्यालय इस काम को देखते हैं. ये RPwD अधिनियम को लागू करने का भी ध्यान रखते हैं.

भारत में दिव्यांगों की संख्या कितनी है?
भारत में दिव्यांग लोगों की संख्या को लेकर अलग-अलग अनुमान हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2000 में भारत में करीब 2.1 करोड़ लोग (करीब 2% जनसंख्या) दिव्यांग थे. यह आंकड़ा  जनगणना और राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण (NSS) से मिला था.

लेकिन विश्व बैंक की एक नई  रिपोर्ट कुछ और ही कहती है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 5 से 8% लोग (करीब 5.5 से 9 करोड़ लोग) दिव्यांग हैं. यह बहुत बड़ा अंतर है.

भारत में दिव्यांगों की शिक्षा का स्तर क्या है?
जुलाई से दिसंबर 2018 के बीच किए गए एनएसएस के सर्वे के अनुसार, भारत में 2.2% लोग दिव्यांग हैं. गांवों में यह आंकड़ा 2.3% है, जबकि शहरों में 2.0% है. महिलाओं (1.9%) की तुलना में पुरुषों में दिव्यांगता ज्यादा (2.4%) देखा गया है.

7 साल या उससे ज्यादा उम्र के 52.2% दिव्यांग लोग पढ़े-लिखे हैं. 15 साल या उससे ज्यादा उम्र के 19.3% दिव्यांग लोगों ने उच्च शिक्षा हासिल की है. 3 से 35 साल के 10.1% दिव्यांग लोगों ने प्री-स्कूल प्रोग्राम में हिस्सा लिया है. 3 से 35 साल के 62.9% दिव्यांग लोगों ने कभी ना कभी साधारण स्कूल में दाखिला लिया है. 3 से 35 साल के 4.1% दिव्यांग लोगों ने स्पेशल स्कूल में दाखिला लिया है, जो साधारण स्कूल में नहीं जाते थे या पहले जाते थे लेकिन अब नहीं जाते.

इस सर्वेक्षण में दिव्यांग लोगों को मिलने वाली देखभाल और सहायता के बारे में भी कुछ बातें पता चली हैं. 3.7% दिव्यांग लोग अकेले रहते हैं. 62.1% दिव्यांग लोगों के पास कोई है जो उनकी देखभाल करता है. 0.3% लोगों को देखभाल करने वाले की जरूरत है, लेकिन कोई नहीं है. 37.7% लोगों को देखभाल करने वाले की जरूरत नहीं है. 21.8% दिव्यांग लोगों को सरकार से सहायता मिलती है. 1.8% लोगों को किसी गैर-सरकारी संगठन से सहायता मिलती है. 76.4% लोगों को कोई सहायता नहीं मिलती. 28.8% दिव्यांग लोगों के पास दिव्यांगता का प्रमाण पत्र है.

इस सर्वेक्षण में 15 साल या उससे ज्यादा उम्र के दिव्यांग लोगों के रोजगार के बारे में भी कुछ आंकड़े सामने आए हैं. 23.8% दिव्यांग लोग कामकाजी हैं या काम की तलाश में हैं. 22.8% दिव्यांग लोग वास्तव में काम कर रहे हैं, जबकि 4.2% बेरोजगार हैं.

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