पुस्तक समीक्षा : ‘धूप की छांव’

पुस्तक समीक्षा : ‘धूप की छांव’

एक आदमी की ईमानदार छटपटाहट

सीधी ( विजय सिंह )- आकाशवाणी के पूर्व निदेशक, कवि, समीक्षक राजीव शुक्ला की राय में सोमेश्वर सिंह की कविताएं सन्नाटे को तोड़ती हैं। उन्होंने कहा सोमेश्वर सिंह सीधी के वरिष्ठ साथी हैं। प्रगतिशील लेखक संघ के आंदोलन में मैं उन्हें बहुत दिनों से देखता आया हूं।

जब वे तरुण थे और मैं भी तरुण था। उनकी कविताओं में एक जद्दोजहद है उसे ज द्दोजहज से हम सब गुजरे हैं। प्रगतिशील संघ से जुड़कर कविता की समझ बनती है। कविता कैसी हो, इसका उद्देश्य क्या हो, कौन से विषय चुने जाएं, प्राणवान तत्व लेकर कविता कैसे आगे बढ़े। इस तरह से हम सब ने धीरे-धीरे अपने रास्ते निकालने की कोशिश की। सोमेश्वर सिंह की कविताओं में अनेक रंग रूप में कविता कर्म देखने को मिला।
उन्होंने अपने कविता में एक बहुत ही खूबसूरत पद का इस्तेमाल किया है- ‘यह मन गीली मिट्टी का’ यह बिल्कुल एक नया प्रयोग है। ऐसे में मुझे राजेश रेड्डी की कविता याद आती है जिसमें उन्होंने कहा- यहां हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है,

खिलौना हेलो मिट्टी का फना होने से डरता है।

मिट्टी के साथ जुड़ाव प्रगतिशीलता की बुनियादी शर्त है। आज जब शब्दों का अपहरण हो रहा हो, शब्द अपने रूप बदल रहे हो, अर्थ बदल रहे हो तब भी सोमेश्वर सिंह की कविता सन्नाटे को तोड़ती है। कविता का प्रमुख उद्देश्य भी यही है कि वह सन्नाटा तोड़ती हो। खास तौर से तब जब शब्द अपने अर्थों को भुलाकर कुछ और कह रहे हों।

सोमेश्वर सिंह की कविताएं एक सहयात्री की तरह ऊष्मा साथ लेकर चलती है।प्रगतिशील विचारधारा का उद्देश्य भी सबको साथ लेकर चलने का है। यही ऊष्मा सबको साथ लेकर चलने की ताकत देती है।
अंग्रेजी के प्राध्यापक समीक्षक डॉक्टर मंजुल शर्मा ने कहा कविता साहित्य की सबसे कठिन विधा है
कविता का जब हम कई बार पाठ करते हैं तब कविता का सही मूल्यांकन कर पाते हैं। कविता साहित्य की सबसे कठिन विधा है। कविता किसी इमारत की तरह तैयार की जाती है। जिसके लिए विचार ,भाषा मजबूत होनी चाहिए।

कुछ कविताएं एक बार पढ़ने से आसानी से समझ में नहीं आती और जब समझ में आ जाते हैं तो वह आदमी को भीतर से हिला देती है।

सोमेश्वर सिंह की कुछ कविताएं छंदबद्ध है जिसमें एक कविता है ‘किताब’ जिसमें कहते हैं- किताब जो बाहर है वही भीतर/ लेकिन अंदर कुछ बाहर कुछ/ अलग अलग होता है आदमी/ हवाओं का रुख देख आदमी पीठ फेर लेता है/ किताब हवाओं से लड़ती है आंखें तरेर कर बात करती है/ पन्ने फड़फड़ाती है/ आदमी किताब बन जाए तो दुनिया बेहतर हो जाए/ पता नहीं आदमी कब बनेगा किताब।

उनकी कुछ कविताएं कबीर से प्रेरित है, जैसे-‘ मिट्टी’ यह मन गीली मिट्टी का/ गढ़ लो जैसा जी चाहे /यह काया है मिट्टी की/ यह माया है मिट्टी की/ आज लबों से छू लो मुझको/ कल मुझ में ही मिल जाना है/सोमेश्वर सिंह की कविताओं में धार भी है मार भी है और दुलार भी।

प्रगतिशील लेखक संघ मध्य प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राजेंद्र शर्मा ने कविता संग्रह धूप की छांव की समीक्षा करते हुए कहा कविता संग्रह एक छटपटाते आदमी की ईमानदार छपटाहट है ।सोमेश्वर सिंह जी जैसा कहते हैं “कवि ना होऊं ना कवी कहाऊं” कवि होने की आकांक्षा भी नहीं पालते। वे पत्रकार रहे हैं।

सीधी के सामाजिक राजनैतिक जीवन को करीब से देखा है। इसीलिए ऐसा लगता है कि वह कुछ जिम्मेदारियों से बचने के लिए कविता के माध्यम से कह देना चाहते हैं। क्योंकि उन्हें बार-बार राइज करना पड़ता है। उनकी कविताओं को एक ईमानदार आदमी के छटपटाहट के बयान के रूप में देखा जाना चाहिए।

कविता के माध्यम से सोमेश्वर सिंह अपने आप को अभिव्यक्त करने के लिए लिखते हैं। और कविता के माध्यम से उन बातों को कह देना चाहते हैं।

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