• April 21, 2022

आपराधिक मामलों में अभियुक्तों को जमानत देने के लिए मानक/ दिशा निर्देश तय सुप्रीम कोर्ट

आपराधिक मामलों में अभियुक्तों को जमानत देने के लिए मानक/ दिशा निर्देश तय  सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामलों में अभियुक्तों को जमानत देने के लिए मानक/ दिशा निर्देश तय कर दिए हैं। शीर्ष न्यायालय ने देश की सभी उच्च अदालतों को निर्देश दिया है कि वे इनका कड़ाई से पालन करें। यदि किसी मामले में बेल दी जा रही है तो तय मानकों पर विचार किया गया है या नहीं इसे विस्तृत रूप से आदेश में लिखें। आदेश में सिर्फ यह लिखना की रिकार्ड का अवलोकन किया गया तथा केस के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए जमानत दी जा रही है, पर्याप्त नहीं होगा।

तय मानकों में प्रमुख अभियुक्त का रसूखदार, पोजीशन और साधन संपन्न होना भी है जो जमानत के लिए अयोग्यता बताई गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को लखीमपुर मामले में केंद्रीय मंत्री के पुत्र आशीष मिश्रा की जमानत इसी आधार पर रद्द की थी।

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने यह आदेश राजस्थान के मामले में दिया, जिसमें एक हिस्ट्रीशीटर कठोर अपराधी और रेप के आरोपी को नियमित जमानत दे दी गई थी। शीर्ष अदालत ने नाराजगी जताते हुए इस जमानत को निरस्त कर उसके बेल बांड रद्द कर दिए और उसे एक हफ़्ते में सरेंडर करने का आदेश दिया।

कोर्ट ने कहा कि हम देख रहे हैं कि हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 439 के तहत दायर बेल याचिकाओं पर बिना विस्तृत कारणों के गंभीर और संगीन अपराधों में अपराधियों को नियमित जमानतें दे रहे हैं। यह ठीक नहीं है।

पीठ ने कहा कि बिहार लीगल सपोर्ट सोसायटी (1986), अमरमणि त्रिपाठी (2005), प्रशांता सरकार (2010) और नीरा यादव (2014) जैसे केसों में यह व्यवस्था दी गई थी कि जमानत का आदेश विस्तृत कारणों के साथ दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि इन मानकों को एक बार फिर से दोहराया जा रहा है जिनका पालन करना जरूरी है।

क्या है मानक?
– क्या इस बात पर विश्वास करने के प्रथम दृष्टया या तार्किक आधार हैं कि अभियुक्त ने अपराध किया है।
– आरोप की गंभीरता और प्रकृति (संगीन और महिला और बच्चों के प्रति किए गए अपराध) क्या है।
– दंडित होने की स्थिति में दंड की तीव्रता/ कठोरता (सात साल से ज्यादा की सजा वाले अपराध) क्या होगी।
– जमानत दिए जाने की स्थिति में अभियुक्त के भागने की आशंका तो नहीं है।
– अभियुक्त का चरित्र, व्यवहार, साधन संपन्न, समाज में पोजीशन तथा रसूख क्या है।
– जमानत पर आने पर अपराध के दोबारा घटित होने की आशंका।
– गवाहों को प्रभावित करने की तार्किक आशंका।
– जमानत पर आने पर न्याय की प्रक्रिया को बाधित करने का खतरा।

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