- March 30, 2022
बेमियादी नाकाबंदी से मणिपुर की जीवन रेखा तो कट ही गई है
नेशनल हाईवे 2 और 53 को मणिपुर की जीवन रेखा कहा जाता है. लेकिन बीते आठ दिनों से नागालैंड के एक आदिवासी संगठन साउदर्न अंगामी पब्लिक ऑर्गनाइजेशन (एसएपीओ) ने नेशनल हाईवे दो पर वाहनों की आवाजाही ठप्प कर दी है. यह सड़क नागालैंड होकर मणिपुर को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ती है.
एनएच-2 पर वाहनों की आवाजाही ठप होने के कारण इस पर्वतीय राज्य में पेट्रोल, डीजल और दूसरी जरूरी वस्तुओं की किल्लत हो गई है. हालांकि काफी लंबे रास्ते से कुछ ट्रक राजधानी इंफाल पहुंचे हैं, लेकिन उनमें आने वाला सामान मांग के मुकाबले नाकाफी है. ज्यादातर ट्रांसपोर्ट कंपनियां मणिपुर तक आवाजाही के लिए एनएच दो को ही प्राथमिकता देती हैं. एनएच-53 असम से मणिपुर में प्रवेश करता है. लेकिन यह रास्ता काफी लंबा है.
नागालैंड मेडिकल डीलर्स एसोसिएशन (एनएमडीए) ने एसएपीओ से मानवीय आधार पर मणिपुर में आवश्यक जीवनरक्षक दवाओं के परिवहन की अनुमति देने की अपील की है. एनएमडीए के संयुक्त सचिव अरिजीत शर्मा ने एक बयान में कहा है कि मणिपुर की जीवन रेखा एनएच-2 पर नाकेबंदी ने सभी वाहनों की आवाजाही और दवाओं की सप्लाई ठप्प हो गई है.
इस बंद के विरोध में आल असम मणिपुरी यूथ एसोसिएशन ने उसी हाइवे के असम से सटे हिस्से में नाकाबंदी की अपील की है. संगठन ने कहा है कि मणिपुर सीमा पर नाकाबंदी खत्म नहीं होने तक यह नाकाबंदी जारी रहेगी.
नाकाबंदी की वजह****
उक्त आदिवासी संगठन ने विवादास्पद केजोल्त्सा वन क्षेत्र में मणिपुर के सशस्त्र सुरक्षा बलों की तैनाती और सरकारी की ओर से उस इलाके में किए जाने वाले निर्माण कार्यो के विरोध में पहले 72 घंटे का बंद बुलाया था. बाद में उसे बढ़ा कर बेमियादी नाकेबंदी कर दिया गया. संगठन की दलील है कि इस विवाद को सुलझाने के लिए संबंधित पक्षों ने वर्ष 2017 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. बावजूद इसके मणिपुर सरकार विवादित स्थल पर पक्के बैरकों का निर्माण कर रही है और उसने मौके पर सशस्त्र सुरक्षा बलों को तैनात कर दिया है. संगठन की मांग है कि वहां निर्माण कार्य फौरन रोक कर सुरक्षा बलों को हटा लिया जाए.
मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने विधानसभा में कहा है कि उक्त निर्माण कार्य मणिपुर की सीमा के सौ मीटर भीतर हो रहा है. उनका दावा है कि जुको घाटी पर मणिपुर का अधिकार है और बाकी इलाके नागालैंड की सीमा में हैं.
केजोल्त्सा नागालैंड और मणिपुर की सीमा पर जुको घाटी के पास एक जंगल वाला इलाका है. मणिपुर के सेनापति जिले के माओ नागा जनजाति और नागालैंड के साउदर्न अंगामी नागा जनजाति के बीच इस घाटी के मालिकाना हक पर लंबे समय से विवाद रहा है. दोनों इस पर अपना हक जताती रही हैं. एसएपीओ का दावा है कि केजोल्त्सा इलाका अंगामी जनजाति के पूर्वजों की जमीन है और इसे ब्रिटिश शासनकाल के दौरान गलत तरीके से मणिपुर का हिस्सा बना दिया गया था.
एसएपीओ के अध्यक्ष कोविपोडि सोफी कहते हैं, “मणिपुर सरकार जब तक विवादित इलाके से अपने सुरक्षा बलों को हटा कर वहां निर्माण कार्य बंद नहीं करती तब तक नाकेबंदी खत्म नहीं होगी.” उनका कहना था कि नागा जनजाति के लोग अपनी पारंपरिक सीमाओं का सम्मान करते हैं, राजनीतिक सीमा हमारी पारंपरिक सीमा से ऊपर नहीं है.
दूसरी ओर माओ जनजाति के एक नेता एसएपीओ की मांग को बेतुका और निराधार बताते हैं. उनका कहना है कि केजोल्त्सा इलाका मणिपुर की सीमा में हैं और हमारे पास इसका दस्तावेजी सबूत है.
केंद्र सरकार से दखल देने की अपील
मणिपुर के कई संगठनों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र भेज कर नाकाबंदी शीघ्र खत्म कराने की अपील की है. नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स एसोसिएशन यानी एनईएसओ के अध्यक्ष सैमुअल बी जीरवा ने अपने पत्र में कहा है कि एसएपीओ की ओर से बेमियादी नाकाबंदी से मणिपुर की जीवन रेखा तो कट ही गई है, आस-पास के इलाके के लोगों के जीवन और आजीविका पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ा है. संगठन ने बातचीत के जरिए शीघ्र इस विवाद को सुलझाने की अपील की है. एनईएसओ इलाके के कई राज्यों के छात्र संगठनों का प्रतिनिधि संगठन है.
मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने कहा है कि सरकार अधिकारी स्तर पर बातचीत के जरिए इस विवाद को सुलझाने का प्रयास कर रही है और इस बारे में नागालैंड के मुख्य सचिव को एक पत्र भेजा गया है. उनका कहना था कि यह विवाद मणिपुर और नागालैंड सरकार के बीच नहीं है और दोनों सरकारें इसे राज्य स्तर पर हल करने का प्रयास कर रही हैं. बीरेन सिंह कहते हैं, “अगर यह विवाद यह राज्य स्तर पर हल नहीं हुआ तो वे केंद्र से इस मामले में मध्यस्थता की अपील करेंगे.”
मणिपुर 2017 से पहले तक महीनों चलने वाली आर्थिक नाकेबंदियों के लिए कुख्यात रहा था. अब करीब पांच साल बाद उसे एक बार फिर इसका दंश झेलना पड़ रहा है.
भारत का अनोखा बाजार, जिसे केवल महिलाएं चलाती हैं
यहां सारी दुकानदार महिलाएं ही हैं
राजधानी इंफाल के बीचोबीच बने इस बाजार का नाम है, ईमा कैथल. स्थानीय मैतेई भाषा में ईमा का मतलब मां होता है. इसीलिए इस बाजार को मदर्स मार्केट भी कहा जाता है. यह बाजार महिलाएं ही चलाती हैं. यहां पुरुषों की भूमिका बस इतनी ही है कि वे खरीदारी करने आ सकते हैं. यह एशिया में महिलाओं की ओर से संचालित सबसे बड़ा बाजा
(DW.com)