- February 21, 2022
दिल्ली में निगाहें पंजाब पर निशाना।–सज्जाद हैदर—- (वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्र चिंतक)
राजनीति के क्षेत्र में न ही कोई अस्थाई मित्र होता है न ही कोई स्थाई विरोधी। राजनीति का अध्याय एक ऐसा अध्याय है जिसे थ्योरी के रूप में पूरे तरह से नहीं समझा जा सकता। यदि राजनीति को समझना है तो प्रैक्टिकल की प्रयोगशाला में झाँककर देखना ही होगा। क्योंकि राजनीति का पूरा खेल समीकरण पर ही आधारित होता है। कोई भी सियासी पार्टी किसी से भी सियासी पार्टी से गठबंधन कर सकती है बस उद्देश्य सिद्ध होना चाहिए। यही एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका दृश्य अनवरत दिखाई देता रहता है। कोई भी राजनेता किसी भी मंच से उछलकर दूसरी पार्टी के मंच पर कूद पड़ता है। बस नेता का अपना जनाधार होना चाहिए। मजे की बात तो यह है कि वही नेता जब दूसरे दल में रहता है तो उसपर अनगिनत आरोप लगाए जाते हैं। और जैसी ही वह अपना पाला बदल लेता है तो उसके सारे पाप धुल जाते हैं। अजब दृश्य है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री और पंजाब के मुख्यमंत्री के बीच जुबानी जंग शुरू है। चरणजीत चन्नी ने कहा अरविंद केजरीवाल झूठे हैं मेरे खिलाफ उन्होंने कई आरोप लगाने की कोशिश की लेकिन एक भी आरोप सच नहीं थे उन्होंने राज्यपाल से भी मेरे खिलाफ शिकायत की जिसके बाद उन्होंने जांच के आदेश दिए चमकौर साहिब विधानसभा क्षेत्र में अवैध खनन के आरोप में रोपड़ जिला प्रशासन और पुलिस ने कांग्रेस के मुख्यमंत्री उम्मीदवार चन्नी को क्लीन चिट दे दी। पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले चन्नी ने केजरीवाल और आप नेताओं की तुलना ब्रिटिश शासन से करते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी पंजाब को लूटने आई है चन्नी ने कहा अंग्रेज भारत को लूटने आए थे वैसे ही केजरीवाल और उनका दिल्ली परिवार जैसे राघव चड्ढा और अन्य बाहरी लोग पंजाब को लूटने आए हैं लेकिन पंजाब उन्हें उनकी जगह दिखाएगा जैसे उसने अंग्रेजों को दिखाई थी। इससे पहले अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी पर अवैध रेत खनन को लेकर निशाना साधते हुए कहा था कि उनसे पंजाब के बेहतर भविष्य की उम्मीद कैसे की जा सकती है। सियासत का वाजिब समय है तो राजनीति होनी ही है। बयानबाजी तो होनी ही है। लेकिन जनता का फैसला क्या होता है यह देखने की बात होगी।
पंजाब के चुनाव में मौजूदा सरकार जहाँ अपनी जमीन बचाने की कोशिश में लगी हुई है वहीं भाजपा अपने सियासी समीकरण को बहुत ही तेजी के साथ साधने में लगी हुई है इसका एक रूप दिल्ली में दिखाई दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आवास पर सिख समुदाय के कई प्रमुख लोगों की मेजबानी की और उनकी सरकार द्वारा समुदाय के लिए किए गए कार्यों को रेखांकित किया। राजनीति के जानकारों का मानना है कि पंजाब के विधानसभा चुनाव में अपनी जमीन को और अधिक मजबूत करने की जुगत में यह मुलाकात हुई है। भारतीय जनता पार्टी राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस तथा अकाली दल के सुखदेव सिंह ढींढसा धड़े के साथ गठबंधन करने के साथ ही सिख समुदाय को लुभाने में जी जान से जुटी है। बात तो यहाँ तक आ गई कि हम हर दिन समुदाय के लिए काम करना चाहते हैं पर अफसोस है कि पिछली सरकारों ने करतारपुर साहिब जैसे सिखों के पवित्र स्थलों को भारतीय क्षेत्र में लाने के मौके गंवा दिए। सियासी खींचतान यहीं तक नहीं रूकी वह 1947 तक पहुँच गई। धार्मिक पवित्र करतारपुर साहिब को भारत में होने की बात तक सामने लाई गई। चूँकि चुनाव है तो राजनेताओं के द्वारा अपने-अपने समीकरणों को बखूबी मजबूत किया जाना स्वाभाविक है। यदि सियासी बयानों के पन्नों को पलटकर देखते हैं तो पूर्व में कैप्टन ने प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करते हुए पहले ही सिद्ध कर दिया था। आने वाले समय में ऊँट किस करवट बैठेगा। कैप्टन ने प्रधानमंत्री मोदी के फैसले की प्रशंसा करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने पुनः साबित कर दिया है कि वह जनता की राय पर ध्यान देते हैं। अपने संबोधन में उन्होंने किसानों के लिए उनकी सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों के बारे में बताया। यह किसी शर्त के साथ या चरणबद्ध वापसी नहीं थी प्रधानमंत्री मोदी ने दृढ़ निर्णय लिया है। यह फैसला जीत या हार के किसी राजनीतिक सोच-विचार के बिना यह फैसला लिया गया।
बता दें कि पंजाब चुनाव में भाजपा के गठबंधन में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस और सुखदेव सिंह ढींडसा के शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) का नाम शामिल है इससे पहले पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री एवं नवगठित पंजाब लोक कांग्रेस के नेता अमरिंदर सिंह और राज्यसभा सदस्य ढींडसा ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। इनकी मुलाकात शाह के घर पर हुई थी जिसमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत बड़े नेता शामिल थे। इस बैठक में फैसला किया गया कि भाजपा कैप्टन की पार्टी और ढींडसा की पार्टी पंजाब में मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेगी।
पंजाब में प्रधानमंत्री मोदी ने जालंधर में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों को आड़े हाथों लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पर सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत माँगने पर निशाना साधा वहीं दिल्ली में आम आदमी पार्टी पर गली-गली शराब की दुकानें खुलवाने का आरोप लगाया युवा पीढ़ियों को शराब की लत से छुटकारा दिलाने के लिए उन्होंने पंजाब में डबल इंजन की एनडीए सरकार के लिए वोट माँगा। ज्ञात हो कि पंजाब में नशा सबसे मुख्य मुद्दा है इसलिए भाजपा मौके न गंवाते हुए भरपूर निशाना साधते हुए दिल्ली की शराब की दुकान का प्रचार पंजाब के चुनाव में बखूबी किया। जिससे कि पंजाब में आप के विरोध में भाजपा का मजबूत महौल बन सके। बीजेपी इस चुनाव में 65 सीटों पर चुनाव लड़ रही है वहीं 37 सीटों पर कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी के उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं और 15 सीटों पर ढींढसा की पार्टी के उम्मीदवार अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं। पंजाब की राजनीति को बेहद करीब से जानने वाले कहते हैं कि 1996 में शिरोमणि अकाली दल ने अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार का बिना शर्त समर्थन दिया था उसी समर्थन के बाद पहली बार 1997 में पंजाब में बीजेपी और अकाली दल का गठबंधन बना जो 23 साल बाद 2020 में जाकर टूटा। लेकिन एक खास बात यह है कि पंजाब की धरती पर अकाली दल के साथ बीजेपी हमेशा छोटे भाई की भूमिका में रही है परन्तु इस बार कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी के साथ गठबंधन में बीजेपी इस बार बड़े भाई की भूमिका में है छोटे भाई की भूमिका में कभी बीजेपी को पंजाब में अपने पैर को मजबूत करने का मौका नहीं मिला। जानकारों की माने तो जिन सीटों से भाजपा अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ती थी वहाँ अकाली दल का वोट बीजेपी को ट्रांसफर होता था लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह के गठबंधन में भी क्या ऐसा हो पाएगा यह देखना अभी बाकी है।
प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषणों में देशभक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा और पंजाब में विकास की बात करते हैं। ये तीनों बातें इसलिए अहम हैं क्योंकि पंजाब की सत्ता में बीजेपी जब भी रही छोटे भाई की भूमिका में रही उन्हें सीधे तौर पर कानून व्यवस्था जमीनी विकास अथवा किसानो की स्थिति जैसे मुद्दों पर घेरा नहीं जा सकता। निश्चित है कि भाजपा को इसका लाभ मिलना स्वाभाविक है। लेकिन किसान आंदोलन की नाराजगी से भाजपा कैसे निपटेगी यह देखने वाली बात है। अगर भाजपा किसान आंदोलन की नाराजगी को पाट देती है तो निश्चित ही परिणाम कुछ अलग ही दिखाई देंगे।
अगर बात कैप्टन की करें तो कैप्टन एक बड़ा चेहरा है। यह अलग बात है कि पार्टी नई है पर चेहरा किसी पहचान का मोहताज नहीं है। अब देखना यह दिलचस्प है कि कैप्टन अपने चेहरे पर कितना वोट अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं। वोट आकर्षित करने की बात इसलिए कि कैप्टन जो भी वोट आकर्षित खींचेंगे वह वोट सीधे-सीधे कांग्रेस का ही होगा। जिससे कांग्रेस को नुकसान होना स्वाभाविक हैं। अगर कैप्टन अपने चेहरे पर कांग्रेस का वोट काट लेते हैं तो परिणाम पूरी तरह से अलग होंगे। साथ ही अगर कैप्टन अपने मतों को भाजपा की ओर ट्रान्सफर कर पाते हैं तो दृश्य पूरी तरह से बदलना स्वाभाविक है। इस सियासी खींचतान में कांग्रेस और कैप्टन की जुगलबंदी ही हार जीत के भविष्य की बड़ी पटकथा लिखेगी। अगर कांग्रेस अपना वोट बिखरने से रोक लेती है तो कैप्टन का सीमित होना स्वाभाविक है। अगर कांग्रेस अपना वोट बैंक बिखरने से नहीं रोक पाती तो कैप्टन का मजबूत होना भी स्वाभाविक है। अगर कैप्टन इस चुनाव में मजबूत हो पाते हैं तो पंजाब की राजनीति का रूप रंग बदलना निश्चित है। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि आने परिणाम किस रूप में उभरकर सामने आते हैं।