- June 17, 2021
भारतीय स्टेट बैंक के लिए भविष्य की राह :: बैंकिंग साख
बिजनेस स्टैंडर्ड : मार्च 2021 की तिमाही में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने 6,451 करोड़ रुपये का अपना रिकॉर्ड तिमाही मुनाफा कमाया। पूरे 2020-21 में कमाया गया 20,410 करोड़ रुपये का मुनाफा भी एक रिकॉर्ड है।
भारत के सबसे बड़े बैंक ने तीन साल बाद प्रति शेयर 4 रुपये का लाभांश देने की घोषणा भी की है। निवेशकों ने एसबीआई को हाथोहाथ लेना शुरू कर दिया है। करीब 215 साल पुराने इस बैंक के मुखिया के तौर पर दिनेश खारा के 7 अक्टूबर, 2020 को काम संभालने के बाद से 4 जून तक एसबीआई के शेयरों में 127.46 फीसदी उछाल आ चुकी है।
इस दौरान एनएसई का बैंकिंग सूचकांक ‘बैंक निफ्टी’ इसका आधा भी नहीं बढ़ा है। बड़े बैंकों में से बैंक ऑफ बड़ौदा का शेयर 97.57 फीसदी, आईसीआईसीआई बैंक 67.85 फीसदी, पंजाब नैशनल बैंक 55.32 फीसदी और एचडीएफसी बैंक 29.19 फीसदी बढ़ा है।
आखिर एसबीआई को लेकर निवेशकों में ऐसा भरोसा क्यों देखा जा रहा है? दरअसल इस बैंक की सेहत अधिकांश मानकों पर बेहतर हो रही है। मसलन, सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) मार्च 2021 में घटकर 1.26 लाख करोड़ रुपये पर आ गया था। जबकि मार्च 2018 में यह आंकड़ा 2.23 लाख करोड़ रुपये था। वितरित कर्ज के प्रतिशत के तौर पर एनपीए महज 4.98 फीसदी रह गया है। फंसे कर्ज के लिए अलग पैसे रखने के बाद शुद्ध एनपीए भी 1.2 लाख करोड़ रुपये से घटकर 36,810 करोड़ रुपये पर आ चुका है। इसी तरह प्रावधान कवरेज अनुपात भी 66.17 फीसदी से बढ़कर 87.75 फीसदी हो चुका है।
कर्ज फंसने के नए मामले भी 2018 के 4.85 फीसदी से घटकर 1.18 फीसदी पर आ चुके हैं। बट्टे खातों में रिकवरी भी पिछले चार वर्ष में लगभग दोगुनी हो चुकी है। एसबीआई भारत का अकेला ऐसा बैंक है जो दुनिया के शीर्ष 50 बैंकों में शामिल है। पिछले साल 43वें स्थान पर रहा एसबीआई एक तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर पेश करता है। 45.3 लाख करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों के साथ एसबीआई भारत की जीडीपी के करीब 23 फीसदी हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।
इसका घरेलू बही-खाता 35 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक है जो देश के समूचे बैंकिंग उद्योग का 23.3 फीसदी है। अग्रिम में इसका बाजार हिस्सा 19.77 फीसदी है। वैसे जमा में हिस्सेदारी बरकरार रखने के साथ ही अग्रिम में उसकी हिस्सेदारी थोड़ी कम हुई है। इसके कम लागत वाले चालू एवं बचत खातों का अनुपात कुल जमाओं का 46.18 फीसदी है और इन खातों की जमा लागत भी 4.2 फीसदी है।
अब तक की कहानी अच्छी रही है लेकिन कुछ समस्याएं भी हैं। कर्ज बांटने की दर से कहीं बड़ी चुनौती लागत-आमदनी अनुपात को नीचे लाने की है जिसे किसी बैंक की सक्षमता का एक अहम पैमाना माना जाता है। फिलहाल एसबीआई के लिए यह अनुपात 53.6 फीसदी है जबकि एचडीएफसी बैंक का 36.32 फीसदी और आईसीआईसीआई बैंक का 37.2 फीसदी है। बैंक ऑफ बड़ौदा और पीएनबी का भी लागत-आमदनी अनुपात 50 फीसदी से कम ही है।
एसबीआई की पूर्व प्रमुख अरुंधती भट्टाचार्य ने पांच सहायक बैंकों एवं भारतीय महिला बैंक का विलय कराया था। उनके बाद कमान संभालने वाले रजनीश कुमार ने बहीखाता दुरुस्त करने और बैंक को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने पर खास जोर दिया। मौजूदा मुखिया खारा के जिम्मे सिर्फ एसबीआई को अधिक सक्षम बनाने का काम है।
एसबीआई के 47 करोड़ ग्राहक हैं और नए ग्राहकों में से 80 फीसदी 20-40 साल की उम्र वाले हैं। हर तीन में से एक भारतीय एसबीआई से बैंकिंग सेवाएं लेता है। इसके अलावा सबसे बड़ा म्युचुअल फंड, दूसरा बड़ा क्रेडिट कार्ड कारोबार भी उसके पास है।
एसबीआई की जीवन बीमा इकाई भी काफी मजबूत है। क्या बैंक अपने ग्राहकों को अन्य उत्पाद बेचने के लिए क्रॉस-सेलिंग करता रहा है? अगर शुल्क से होने वाली आमदनी को देखें तो ऐसा नहीं लगता है। बैंक ने तकनीकी प्लेटफॉर्म को पहले ही सक्रिय कर रखा है। इसके जरिये होने वाले 93 फीसदी लेनदेन तो शाखाओं से बाहर ही होते हैं। करीब 67 फीसदी लेनदेन डिजिटल होते हैं और हरेक पांचवां ग्राहक इंटरनेट बैंकिंग का इस्तेमाल करता है। इसके मोबाइल बैंकिंग ऐप योनो के 3.7 करोड़ ग्राहक हैं। अब वक्त आ गया है कि इस पूर्व-स्थापित व्यवस्था का लाभ उठाया जाए।
पता चला है कि एसबीआई ने अपने डेटाबेस का इस्तेमाल करते हुए पिछले साल 15,000 करोड़ रुपये के व्यक्तिगत ऋण पूर्व-अनुमोदित किए थे। बैंक के आकार को देखते हुए यह एक छोटी रकम है। उसे अपने विशाल डेटाबेस का इस्तेमाल कर खुद को एक बाजार-स्थल के रूप में तब्दील करने का काम शुरू कर देना चाहिए। एक ऐसा बाजार जहां वित्तीय उत्पादों के अलावा ग्राहकों की अन्य जरूरतें भी पूरी हो सकें।
2018-21 के दौरान इसका खुदरा लोनबुक 10 लाख करोड़ से बढ़कर 13.1 लाख करोड़ रुपये हो गया जबकि कॉर्पोरेट लोनबुक 7.4 लाख करोड़ से बढ़कर 8.2 लाख करोड़ रुपये ही हो पाया। इसके कुल कर्ज में खुदरा ऋण का अंशदान करीब 60 फीसदी है। इस लिहाज से भी एसबीआई के लिए खुद को एक बाजार-स्थल के रूप में तब्दील करना बेहद जरूरी है। इसका खुदरा होम लोन भी देश में सबसे बड़ा है। इसी तरह कृषि और एमएसएमई ऋण का आकार भी करीब 5 लाख करोड़ रुपया है।
एसबीआई स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में भी विनिर्माण गतिविधियों के लिए कर्ज आवंटन बढ़ा सकता है। तकनीक की मदद से भारतीय बैंकिंग जगत के इस हाथी को पहले ही फुर्तीला बनाया जा चुका है। खारा को जरूरत बस इसके कदमताल को साधने की है।
एक वरिष्ठ बैंकर ने मुझसे कहा कि एसबीआई के भीतर व्यवस्थाएं एवं प्रक्रियाएं इतनी कठोर हैं कि कोई भी बैंकर इसके अच्छे या बुरे प्रदर्शन में सिर्फ 10 फीसदी ही फर्क डाल सकता है। न तो इससे ज्यादा और न ही कम। सांख्यिकी में इसे मानक विचलन कहा जाता है। क्या दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में शिक्षित खारा इस परंपरा को तोड़कर बड़ा फर्क पैदा कर सकते हैं?