बाजार के लिए क्यों मायने नहीं रखते जीडीपी आंकड़े?

बाजार के लिए क्यों मायने नहीं रखते जीडीपी आंकड़े?

बिजनेस स्टैंडर्ड ———–पिछले दो आलेखों में मैंने प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियों के बीच शेयर बाजार में तेजी के कारणों पर रोशनी डालने का प्रयास किया था। मैंने पहले आलेख में कंपनियों की शानदार आय को बाजार में तेजी की मुख्य वजह बताई थी। दूसरे आलेख में मैंने वृहद अर्थव्यवस्था के संदर्भ में चर्चा की थी। कहा था कि कम से कम एक दर्जन बड़े क्षेत्र- सीमेंट, रसायन, सॉफ्टवेयर, परिधान, इस्पात, इमारत निर्माण सामग्री एक साथ अति उत्साह के साथ मजबूत प्रदर्शन कर रहे हैं और हरेक क्षेत्र के लिए इसकी एक खास वजह है। इसी कड़ी में, तीसरे आलेख में वृहद हालात पर विचार करते हुए इसका जिक्र किया जाएगा कि क्या हमें इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कि आर्थिक गतिविधियां कम हो रही हैं या नहीं, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से इतर दूसरे आंकड़ों पर ध्यान देना चाहिए। खासकर, तब जब तकनीक की मदद से हम बिना अधिक देरी के अधिक से अधिक आंकड़े उपलब्ध हो पा रहे हैं।

इस वर्ष 1 अप्रैल को सरकार ने घोषणा की थी कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से प्राप्त संग्रह 1,23,902 करोड़ रुपये के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। सितंबर 2020 से मार्च 2021 तक जीएसटी संग्रह पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में हरेक महीने अधिक रहा। हालांकि पूरे वर्ष के दौरान जीएसटी संग्रह 85,314 करोड़ रुपये कम रहा। यह कमी केवल अप्रैल 2020 के कमजोर अंाकड़ों से आई जब कोविड-19 महामारी रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया गया था। उस महीने जीएसटी संग्रह 82,000 करोड़ रुपये रहा था। संक्षेप में, अगर अप्रैल 2020 के आंकड़ों को छोड़ दिया जाए तो जीएसटी संग्रह के लिहाज से वित्त वर्ष 2021 में आर्थिक गतिविधियां वित्त वर्ष 2020 की तरह ही रहीं।

31 मई को जब सरकार ने कहा कि वित्त वर्ष 2020-21 में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 7.3 प्रतिशत फिसल गया है तो टिप्पणीकारों को यह कहते देर नहीं लगी कि शेयर बाजार में बेवजह तेजी दिख रही है। उन्होंने जीएसटी संग्रह के आंकड़ों पर जरा भी गौर नहीं किया। उन्होंने अपने तर्क को सही ठहराने के लिए जीडीपी आंकड़ों, स्वास्थ्य सुविधाओं और बेरोजगारी से जुड़ी खबरों और छोटे कारोबारों की बदहाली का हवाला दिया। मेरा प्रश्न है कि आप किन आंकड़ों पर अधिक विश्वास करेंगे? मैंने किसी खास वजह से जीएसटी एवं जीडीपी आंकड़े आने की तिथियों का जिक्र किया है।

ध्यान देने की बात है कि उस महीने और उस वर्ष के जीएसटी आंकड़े वर्ष समाप्त होने के एक दिन बाद उपलब्ध हो गए थे! पूरे देश में आर्थिक गतिविधियों का हाल बताने वाले जीएसटी आंकड़े एक दिन में उपलब्ध हो गए। ये आंकड़े तेजी से एक नियमित अंतराल पर आते रहते हैं और इनमें हरेक दिन सुधार होता है। ध्यान रहे कि यह कोई अनुमान नहीं है बल्कि लेनदेन के आधार पर प्राप्त वास्तविक समय के आंकड़े हैं। जीडीपी आंकड़े के संदर्भ में किस नतीजे पर पहुंचा जाए? पहली बात तो ये जीडीपी आंकड़े काफी देर से आते हैं।

वित्त वर्ष 2021 के जीडीपी आंकड़े दो महीने बाद आए। दूसरी बात यह कि यह आर्थिक गतिविधियों का अनुमान है और मैं दावे के साथ नहीं कह सकता कि आंकड़े जुटाने में अपनाई जाने वाली विधि कितनी गुणवत्तापूर्ण है। मार्च तिमाही में जब वाहन आदि कुछ क्षेत्रों को छोड़कर कारोबार कमोबेश ठीक चल रहे थे और कंपनियों के वित्तीय आंकड़े भी शानदार रहे थे तब जीडीपी में महज 1.6 प्रतिशत वृद्धि दर्ज होने की खबर आई। जब लगभग सभी उद्योग ठीक से काम कर रहे है और सेवा क्षेत्र भी अच्छा प्रदर्शन कर रहा था तो जीडीपी के आंकड़े इतने कमजोर कैसे रहे! क्या आंकड़े संग्रह करने में कोई खामी तो नहीं है?

जीएसटी की तरह दूसरे आंकड़े भी हैं जो जीडीपी की तुलना में अधिक विश्वसनीय हैं। इसकी वजह यह है कि ये आंकड़े अनुमान नहीं बल्कि वास्तविक लेनदेन पर आधारित होते हैं और सटीक तरीके से दर्ज किए जाते हैं। मसलन आंशिक लॉकडाउन के बीच बिजली उपभोग इस वर्ष फरवरी में पिछले वर्ष फरवरी के मुकाबले अधिक रहा था। गौर करने वाली बात है कि पिछले वर्ष फरवरी में अर्थव्यवस्था पूरी तरह खुली थी। जो आंकड़े मोटे अनुमान पर आधारित होते हैं उनमें पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स, फिर भी, अधिक विश्वसनीय होता है। यह आंकड़ा एक दर्जन महत्त्वपूर्ण उद्योगों में आपूर्ति व्यवस्था के सर्वेक्षण पर आधारित होता है। इसमें उत्पादन एवं विपणन दोनों पर गौर किया जाता है। पीएमआई आंकड़ों के अनुसार अगस्त 2020 से अप्रैल 2021 में अर्थव्यवस्था का लगातार विस्तार हुआ है। यही वजह थी कि बाजार पिछले वर्ष मई से चढऩे लगा था।

वाहनों की बिक्री एक और सशक्त उदाहरण है। पहले सोसाइटी ऑफ ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सायम) पर सबकी नजरें होती थीं। इसके आंकड़े त्रुटिपूर्ण थे क्योंकि इनमें केवल यह दिखाया जाता है कि कारखानों से निकल कर कितने वाहन डीलरों तक पहुंचे हैं।

कितनी बिक्री हुई है इसका पता नहीं चलता था। अब हमारे पास वाहन पंजीकरण के आंकड़े आने लगे हैं। फेडेरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन से हमें ये आंकड़े मिलते हैं। ये आंकड़े अधिक विश्वसनीय होते हैं क्योंकि इनमें वास्तविक बिक्री का जिक्र होता है। वास्तविक बिक्री के बाद ही वाहनों का पंजीकरण शुरू होता है, इसलिए ये आंकड़े वास्तविकता हैं, न कि महज अनुमान। संक्षेप में, बाजार में कारोबारी उन आंकड़ों पर गौर करते हैं जो तेजी से उपलब्ध होते हैं, न कि जीडीपी, जिसमें अक्सर संशोधन की गुंजाइश रहती है।

अब आंकड़े जुटाने की विधि बदली है और तकनीक इसमें तेजी से हमारी मदद कर रहे हैं। हम जिस तरह आंकड़े एकत्र करते हैं उसमें तकनीक का दखल बढ़ गया है और इसी आधार पर हम तय कर पाते हैं कि कौन से आंकड़े कितने विश्वसनीय हैं। जमीनी स्तर के आंकड़े जुटाने के बाद इसे एक तय प्रारूप में खंगालकर दो महीने बाद जीडीपी वृद्धि दर के आंकड़े दिए जाते हैं।

बाद में इनमें संशोधन की गुंजाइश भी बनी रहती है। भारत जिस तरह तकनीक आधारित अर्थव्यवस्था बनती जा रही है उस इस लिहाज से यह पुरानी पद्धति हो गई है। बाजार यह पूरी तरह समझता है कि भले ही टिप्पणीकार समझें या नहीं। मैं यह बिल्कुल नहीं कह रहा हूं कि बाजार अच्छा कर रहा है इसलिए अर्थव्यवस्था को भी बुलंदियों पर रहना चाहिए। ऐसा तर्क देना उचित नहीं होगा। मैं केवल इतना कह रहा हूं कि बड़े निवेशक उन आंकड़ों पर गौर करते हैं जो उन्हें तत्काल उपलब्ध हो जाते हैं। तत्काल उपलब्ध होने वाले ऐसे आंकड़े निश्चित तौर पर मजबूत रहे हैं। जब भी ऐसे आंकड़े कमजोर रहते हैं या कंपनियों की कमाई कम होती है तो बाजार फिसल जाता है। केवल विरोधाभासी और अधूरी एवं कही-सुनी बातों से बाजार नहीं गिरता है।

(लेखक डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट मनीलाइफ डॉट इन के संपादक हैं। )

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