• March 24, 2021

अगले आदेश तक किसी भी खाते को एनपीए घोषित नहीं –अंतरिम आदेश वापस —सर्वोच्च न्यायालय

अगले आदेश तक किसी भी खाते को एनपीए घोषित नहीं –अंतरिम आदेश वापस —सर्वोच्च न्यायालय

बिजनेस स्टैंडर्ड ——- सर्वोच्च न्यायालय ने आज फैसला सुनाया कि पिछले साल महामारी के दौरान ऋण मॉरेटोरियम का लाभ लेने वालों से बैंक ब्याज पर ब्याज की वसूली नहीं कर सकते। शीर्ष अदालत ने ऋण मॉरेटोरियम की समयसीमा 31 अगस्त, 2020 को बरकरार रखा और कहा कि इसके बाद कर्ज की किस्त का भुगतान नहीं करने वाले खातों को नियमानुसार गैर-निष्पादित आस्ति (एनपीए) घोषित किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि किसी के लिए भी मॉरेटोरियम की अवधि नहीं बढ़ाई जाएगी।

पिछले साल सितंबर में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि अगले आदेश तक किसी भी खाते को एनपीए घोषित नहीं किया जाए। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह के पीठ ने कहा कि संबंधित कर्जदारों के खातों को एनपीए घोषित नहीं करने का अंतरिम आदेश वापस ले लिया गया है। अदालत ने रियल एस्टेट और बिजली क्षेत्र सहित विभिन्न व्यापार संगठनों की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये बातें कहीं। इन याचिकाओं में ऋण मॉरेटोरियम अवधि बढ़ाए जाने और अन्य प्रकार की राहत की मांग की गई थी।

अदालत ने मामले का निपटारा करते हुए आदेश दिया, ‘मॉरेटोरियम अवधि के दौरान किसी भी कर्जदार से ब्याज पर ब्याज/चक्रवृद्घि ब्याज या दंडात्मक ब्याज नहीं लिया जाएगा और इस मद में अगर किसी तरह की वसूली की गई है तो उसे कर्ज की अगली किस्त में समायोजित किया जाए या वापस किया जाए।’

मूल मॉरेटोरियम मार्च 2020 में लागू हुआ था, जो तीन महीने के लिए था। लेकिन मई में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मॉरेटोरियम की अवधि को तीन महीने के लिए यानी 31 अगस्त तक बढ़ा दिया था।

31 अगस्त, 2020 तक बैंकिंग तंत्र में 45 फीसदी से कुछ ज्यादा ग्राहकों ने मॉरेटोरियम सुविधा का लाभ उठाया था, जो कुल ऋण मूल्य का 40 फीसदी था। निजी बैंकों में 34.8 फीसदी ग्राहकों ने मॉरेटोरियम का लाभ लिया और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 54.88 फीसदी ने इस सुविधा का लाभ उठाया। लेकिन लघु वित्त बैंकों में ऐसे ग्राहकों की तादाद 82 फीसदी थी। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के मामले में 26.58 फीसदी ग्राहकों ने मॉरेटोरियम का लाभ लिया था।

तीन न्यायाधीशों के पीठ ने मॉरेटोरियम अवधि बढ़ाने का आदेश देने से इनकार कर दिया। अदालत का कहना था कि यह आर्थिक नीतियों के तहत आता है, जिस पर नीति निर्माता और विशेषज्ञों को निर्णय करना उचित होगा।

आदेश में कहा गया है, ‘जब पूरे सोच-विचार के साथ मॉरेटोरियम के दौरान ब्याज माफ नहीं करने का निर्णय लिया गया है और आरबीआई कर्ज भुगतान से अस्थायी राहत देने सहित कुछ दूसरे उपाय भी अपनी तरफ से पहले ही कर चुका है तो इसमें न्यायालय का हस्तक्षेप सही नहीं होगा। बैंकों ने भी के वी कामत समिति की रिपोर्ट पर विचार कर आवश्यतानुसार राहत देने की कोशिश की है।’

क्या केंद्र सरकार और आरबीआई को अब तक किए गए राहत उपायों के अलावा कुछ अतिरिक्त उपाय भी करने चाहिए? इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि सरकार और नियामक अपनी तरफ से जो कुछ कर सकते है वह पहले ही कर चुके हैं।एक अहम टिप्पणी में न्यायाधीशों ने कहा कि बैकों को जमाकर्ताओं को ब्याज देना है और मॉरेटॉरियम की अवधि के दौरान भी उन्होंने जमाकर्ताओं को ब्याज भुगतान की उनकी जवाबदेही बनती है। न्यायाधीशों ने कहा कि कई लोग और संस्थान बैंकों से प्राप्त ब्याज पर काफी हद तक निर्भर रहते हैं। उन्होंने कहा, ‘इन बातों को ध्यान में रखते हुए मॉरेटॉरियम के दौरान जमा ब्याज माफ करने का देश की अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर होगा और बैंक एवं ऋणदाता संस्थानों पर भी इसका प्रतिकूल असर होगा।’हालांकि ग्राहकों को राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जो रकम पहले ही काट ली गई है, वह लौटाई जाएगी या कर्ज की अगली किस्त में समायोजित की जाएगी। सरकार ने अक्टूबर 2020 में 2 करोड़ रुपये तक के ऋण पर चक्रवृद्धि ब्याज माफ करने की घोषणा की थी। इससे सरकार पर 5,500 करोड़ रुपये का बोझ पड़ा था। न्यायालय ने कहा कि ब्याज पर ब्याज माफ करने का लाभ कुछ खास आकार के ऋणों तक ही सीमित रखने के सरकार के निर्णय की कोई तुक नहीं है।

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