- February 14, 2021
गरीब का ध्यान, उद्यमियों का सम्मान
बिजनेस स्टैंडर्ड ——- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस महीने पेश बजट को ‘पूंजीपतियों का बजट’ कहने वाले विपक्ष को आज आड़े हाथों लिया और उसके आरोप को बेबुनियाद करार दिया। राज्यसभा में बजट 2021-22 पर चर्चा का जवाब देते हुए सीतारमण ने कहा कि सरकार की प्राथमिकता और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा समाज के सबसे निचले तबके के लोगों का कल्याण करने और संपत्ति सृजक तथा करदाताओं का भी ख्याल रखने की है।
पिछले कुछ वर्षों में गरीबों के लिए किए गए सरकार के उपायों का जिक्र करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि उन्हें लगता है कि भारत के उद्यमियों का सम्मान होना चाहिए न कि उन पर तमाम तरह के नियम और लाइसेंस का बोझ लादा जाना चाहिए। उन्होंने सीधे कांग्रेस का नाम नहीं लिया लेकिन उनका इशारा स्पष्ट तौर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बयान की ओर था। राहुल ने सरकार की नीतियों को ‘सांठगांठ वाले पूंजीवाद’ और ‘हम दो हमारे दो’ को बढ़ावा देने वाला बताया था।
सीतारमण ने कहा कि 2021-22 का बजट आत्मनिर्भर भारत के लिए है और सरकार दीर्घावधि में टिकाऊ विकास पर ध्यान दे रही है। उन्होंने कहा, ‘आनन-फानन में थोड़े समय के लिए इलाज करने के बजाय हम मध्यम से दीर्घ अवधि तक टिकने वाले विकास पर ध्यान दे रहे हैं, जो भारत को विकास के पथ पर बनाए रखेगा और दुनिया में इसे सबसे तेजी से बढऩे वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल कराएगा।’
विवादास्पद कृषि कानूनों पर किसानों के विरोध-प्रदर्शन को ध्यान में रखते हुए सीतारमण ने कहा कि सरकार ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) का बहीखाता दुरुस्त किया है, जिससे न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद में मदद मिलेगी। एफसीआई पर राष्ट्र्रीय लघु बचत कोष का बकाया कर्ज मार्च अंत तक 3.39 लाख करोड़ रुपये से घटकर 1.19 लाख करोड़ रुपये रह गया है और अगले वित्त वर्ष तक यह 58,000 करोड़ रुपये रह जाएगा। सरकार ने एफसीआई में 2,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त पूंजी निवेश किया है, ताकि वह खरीद और भंडारण को बेहतर तरीके से जारी रख सके।
वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार को कर से मिलने वाले पैसे के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए। इसीलिए बजट को ज्यादा पारदर्शी बनाया गया है। खाद्य सब्सिडी इसका अनूठा मामला है। बजट में कुछ छिपाया नहीं गया है, सब कुछ पारदर्शी है।
कुछ वित्त मंत्रियों ने बजट के आंकड़ों को ‘संदिग्ध’ बताया था, जिस पर सीतारमण ने कहा कि 2007-08 में पूंजीगत व्यय को कृत्रिम तरीके से बढ़ाकर दिखाया गया था। उन्होंने कहा कि सरकार राजकोषीय घाटे के ऊंचे आंकड़ों को स्वीकार करती है और वृद्घि को प्रभावित किए बगैर इसे कम करने का खाका भी उसने दिया है। केंद्र का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 9.5 फीसदी के बराबर है, जबकि संशोधित अनुमान में इसे 3.5 फीसदी तक सीमित करने का लक्ष्य था। अगले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 6.8 फीसदी तक रह सकता है।
उन्होंने कहा कि महामारी के बाद पूंजी का सृजन करने वाले व्यय को प्रोत्साहन देना बजट की मुख्य विशेषता है। सुधार और ढांचागत सुधारों के लिए प्रोत्साहन से देश को वृद्घि मिलेगी, कारोबार में सुगमता आएगी तथा देश में उद्यमिता बढ़ेगी।