- November 27, 2020
—–यूनिसेफ का शिक्षा पर प्रकाशित रिपोर्ट और navsancharsamachar॰com का सर्च आउट रिपोर्ट —-
भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में अनगिनत उपलब्धियां हासिल की हैं। 70 मिलियन (7 करोड़) से अधिक बच्चे प्री-प्राइमरी स्कूल में शामिल होते हैं और, उच्च प्राथमिक (निम्न माध्यमिक) में बच्चों के नामांकन की भागीदारी में लगातार वृद्धि हो रही है।
भारत सरकार के शिक्षा के अधिकार अधिनियम लागू होने की वजह से 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों में स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों आउट ऑफ स्कूल चिल्ड्रन (OOSC) की संख्या में कमी आई है, जो 2006 में 13.46 मिलियन की तुलना में 2014 में घटकर 6 मिलियन रह गई। 6 मिलियन बच्चों में, जो अभी भी स्कूल से बाहर हैं, उनमें से अधिकांश अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों सहित वंचित समुदायों।
100 छात्रों में से 29 प्रतिशत लड़कियां और लड़के प्राथमिक शिक्षा का चक्र पूरा करने से पहले स्कूल से बाहर निकल जाते हैं, और इनमें सबसे ज्यादा वंचित समुदाय के बच्चे होते हैं।
चुनौतियां बनी हुई हैं क्योंकि अधिकांश बच्चे जो स्कूल में हैं, वे अपनी कक्षाओं के स्तर के अनुरूप नहीं सीख रहे हैं। खराब गुणवत्ता वाले शिक्षण और सीखने की परंपरा के परिणाम स्वरूप स्कूलों में कम उपस्थिति होती है साथ ही बाल-विवाह, बाल-श्रम या हिंसा या शोषण के कारण बच्चे समय से पहले ही स्कूल छोड़ देते हैं । मौसमी प्रवासन, गरीबी, सामाजिक सुरक्षा के अभाव और जागरूकता की कमी के कारण भी बच्चे स्कूल जाना बंद कर देते हैं।
प्रारंभिक बाल – शिक्षा की उपलब्धता में असमानता: भारत में 3-6 वर्ष की आयु के बीच के लगभग 20 मिलियन (2 करोड़) बच्चे हैं, जो प्री – स्कूली शिक्षा से वंचित हैं। यह मुख्य रूप से बुनियादी ढांचे की कमी, प्रारंभिक कक्षाओं में अयोग्य शिक्षक और उपयुक्त शिक्षण सामग्री की कमी के कारण है। सरकार द्वारा संचालित आंगनवाड़ी केंद्रों (AWCs) के साथ-साथ निजी प्री-स्कूलों में बच्चों ज्ञानात्मक और भाषा कौशल के स्तर काफी कम है।
स्कूल न जाने वाले बच्चों आउट ऑफ स्कूल चिल्ड्रन (OOSC) की बड़ी संख्या: भारत के स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों की संख्या करीब छह मिलियन (60 लाख) के करीब है। 100 छात्रों में से 36 प्रतिशत लड़कियां और लड़के प्राथमिक शिक्षा का चक्र पूरा करने से पहले स्कूल से बाहर निकल जाते हैं, और इनमें सबसे ज्यादा वंचित समुदाय के बच्चे होते हैं। स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों (OOSC) का बहुमत (75 प्रतिशत) छह राज्यों उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में है।
स्कूल में रहकर भी कुछ सीखना नहीं: सर्वेक्षण और आकलन के आधार पर देखा गया है कि प्राथमिक शिक्षा के आठ साल के बाद भी बच्चों की पढ़ाई का स्तर काफी खराब था. इसका एक प्रमुख कारण प्रारंभिक शिक्षा के समय शिक्षा का नींव का कमजोर होना है। योग्य और प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी की वजह से भी शिक्षा के स्तर में गिरावट आया है. चयन के उपरांत भी शिक्षकों का अनुपस्थित रहना कमजोर शासन व्यवस्था का परिचायक है |
100 छात्रों में से 36 प्रतिशत लड़कियां और लड़के प्राथमिक शिक्षा का चक्र पूरा करने से पहले स्कूल से बाहर निकल जाते हैं, और इनमें सबसे ज्यादा वंचित समुदाय के बच्चे होते हैं।
समाधान
यूनिसेफ भारत सरकार, नागरिक समूहों और निजी क्षेत्र के साथ मिलकर 17 राज्यों में काम कर रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 2022 तक सभी बच्चे, विशेषकर सबसे वंचित समुदाय के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा का लाभ मिल सके.
इसका उद्देश्य सभी लड़कों और लड़कियों के लिए बचपन से प्रारंभिक गुणवत्ता पूर्ण ग्रेड-उपयुक्त (कक्षा के अनुरूप) शिक्षा सुनिश्चित करना है। यह सभी स्तरों पर सरकार के तंत्र को मजबूत करने और शैक्षिक कार्यक्रम के प्रभावी समन्वय, कार्यान्वयन और निगरानी के माध्यम से किया जाता है।
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सरकार के खोखले दावे पर यूनिसेफ का पर्दा हटाते हुए navsancharsamachar॰com का सर्च आउट रिपोर्ट —-