नेस्ले इंडिया का दावा –90,000 गांवों तक पहुँच – कंपनियों का दौर -गांवो की ओर

नेस्ले इंडिया का दावा –90,000 गांवों तक पहुँच – कंपनियों का दौर -गांवो की ओर

बिजनेस स्टैंडर्ड ——- नेस्ले, डाबर और ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज में एक बात समान है – ग्रामीण क्षेत्र में जोरदार विस्तार। दैनिक उपभोग की वस्तुओं (एफएमसीजी) का विनिर्माण करने वाली इन बड़ी कंपनियों ने पिछले कुछ महीनों के दौरान ग्रामीण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विस्तार किया है। आने वाले महीनों में इसे जारी रखने की योजना है।

नेस्ले इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक (एमडी) सुरेश नारायणन कहते हैं कि दायरे के लिहाज से पिछले साल हमारी पहुंच करीब 45,000 गावों में थी। पिछले 12 से 18 महीने के दौरान हमने अपना वितरण दोगुना करके 90,000 गांवों तक कर दिया है। ऐसा उन थोक केंद्रों की वजह से हुआ है जिनका निर्माण हमने ग्रामीण क्षेत्रों में किया है। ये केंद्र अब बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। राष्ट्रीय स्तर पर 7,000 से लेकर 8,000 तक सेभ्भी ज्यादा केंद्रों की स्थापना की जा चुकी है।

ब्रिटानिया ग्रामीण क्षेत्र को संचालित करने वाले बड़े अवसर के रूप में देखती आ रही है। ब्रिटानिया के प्रबंध निदेशक वरुण बेरी कहते हैं कि अगली तिमाही या उसके बाद घर की खपत पूरी तरह सामान्य हो जाएगी। इसलिए हम उन क्षेत्रों पर विचार कर रहे हैं जिनमें हमें मौका मिल सके और हम उनसे ज्यादा कमाई कर सके। सबसे ज्यादा ध्यान ग्रामीण क्षेत्र पर बना हुआ है। यही वजह है कि बिस्किट बनाने वाली इस दिग्गज कंपनी ने कुछ ही महीने के दौरान अपने ग्रामीण वितरकों की संख्या 19,000 से बढ़ाकर 22,000 कर दी है। हालांकि यह 10,000 और इससे अधिक की आबादी वाले गांवों में मौजूद है, लेकिन इन बाजारों की सावधानीपूर्वक निगरानी करने और विकास के क्षेत्रों की पहचान करने की योजना है।

दूसरी तरफ डाबर अपने ग्रामीण वितरण तंत्र में लगातार गांवों को जोड़ रही है। चालू वित्त वर्ष के आखिर तक गांवों की संख्या 52,000 से बढ़ाकर तकरीबन 60,000 करने की योजना है। विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनियों द्वारा ग्रामीण भारत पर जोर दिया जाना कुछ समय तक जारी रहेगा।

इक्विनोमिक्स रिसर्च ऐंड एडवाइजरी के संस्थापक जी चोकालिंगम का कहना है कि कंपनियां हाल के समय में कभी भी अपनी नजरें ग्रामीण क्षेत्र से नहीं हटाएंगी। इस साल ग्रामीण क्षेत्रों को अच्छे मॉनसून, कुछ राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिक रहने, प्रवासियों के वापस लौटने और सरकार द्वारा गांवों में समग्र कल्याण पर जोर देने से फायदा पहुंचा है।

हालांकि क्रिसिल की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण भारत में कोविड-19 के बढ़ते मामले चिंता की बात है, लेकिन वाहन-एफएमसीजी कंपनियां शायद ही अपने ग्रामीण अभियान की गति धीमी कर रही हैं।

उदाहरण के लिए मारुति सुजूकी को ही लीजिए। कार बाजार की इस अगुआ ने अपने ग्रामीण प्रयासों को तेज कर दिया है। संभावित खरीदारों के लिए गांवों में योजना बनने के वास्ते इसने अपने ग्रामीण विकास बिक्री अधिकारियों (आरडीएसई) की संख्या में इजाफा किया है। इसके पास ऐसे 12,000 अधिकारी हैं, जबकि एक साल पहले 10,000 अधिकारी थे।

मारुति के कार्यकारी निदेशक (बिक्री और विपणन) शशांक श्रीवास्तव कहते हैं कि हमने यह बात अनुभव की है कि ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुंच में सुधार होने के बावजूद ग्रामीण लोग आमने-सामने के संपर्क और संवाद को महत्त्व दे रहे थे। उन्होंने कहा कि आरडीएसई ग्रामीण भारत में गहरी पैठ बनाने में कंपनी की मदद करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष विंकेश गुलाटी का कहना है कि देश में कुल वाहन बिक्री में से किसी सामान्य वर्ष के दौरान ग्रामीण बिक्री का योगदान 40 प्रतिशत रहता है। कुल बिक्री में अब यह योगदान 50 प्रतिशत तक है। गुलाटी कहते हैं पहले मांग का संचालन दैनिक यात्री खंड (100 सीसी वाले वाहन) द्वारा हो रहा था, जो अब बढ़कर 125 से 150 सीसी वाली मोटरसाइकिल की ओर चला गया है। हालांकि कंपनियों ने बाद वाले ग्रामीण इलाकों में बहुत-से उत्पादों की शुरुआत नहीं की है, लेकिन आसान वित्त पोषण से मांग बढ़ाने में मदद मिली है।

गुलाटी का कहना है कि यात्री कारों के मामले में लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण बिक्री 60 प्रतिशत के स्तर तक पहुंच चुकी है। अब यह 40 प्रतिशत पर स्थिर हो गई है। वह कहते हैं कि ग्रामीण बाजार में मांग मुख्य रूप से शुरुआती स्तर वाली कारों के लिए है। प्रतिस्थापन बाजार वह अन्य खंड है जो मांग का संचालन कर रहा है। इसका संचालन मुख्य रूप से छोटे स्पोर्ट यूटिलिटी वाहनों द्वारा होता है।

इमामी के पास मजबूत ग्रामीण केंद्र है। इसकी बिक्री का 40 से 45 प्रतिशत भाग इसी खंड से आता है। कंपनी नवरत्न (तेल और पाउडर दोनों), केश किंग शैंपू और झंडू बाम ब्रांड के छोटी इकाई वाले पैकों के जरिये इस क्षेत्र पर जोर दे रही है। इमामी के निदेशक मोहन गोयनका का कहना है कि कंपनी ने ग्रामीण और शहरी दोनों ही बाजारों में उपभोक्ताओं तक पहुंच बनाने के लिए विभिन्न बिजनेस-टु-बिजनेस चैनलों के साथ गठजोड़ किया है जिसमें ई-कॉमर्स पोटर्ल भी शामिल हैं।

आईटीसी में ग्रामीण स्टॉकिस्टों के नेटवर्क में इजाफा किया गया है ताकि थोक आपूर्ति में आने वाली रुकावटों का असर कम किया जा सके और आकस्मिक मांग को प्रभावी रूप से पूरा किया जा सके। कंपनी आस-पास के क्षेत्रों में प्रोत्साहन बढ़ाने के तौर पर अपने और अधिक शहरी उत्पादों को ग्रामीण क्षेत्रों में भी ले जा रही है।

आईटीसी के प्रवक्ता का कहना है कि कुछ सालों से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच उपभोक्ता व्यवहार का अंतर कम होता जा रहा है। प्रवक्ता ने कहा कि स्वास्थ्य, स्वच्छता और प्रतिरक्षा बढ़ाने वाली चीजें अब ग्रामीण बाजारों में भी उपभोक्ताओं की मांग में सबसे आगे रहती हैं।

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