जमीनी हकीकत – बंदरबांट हुई है: करोना के कहर ने खोली पोल

जमीनी हकीकत – बंदरबांट हुई है: करोना के कहर ने खोली पोल

सीधी – ( विजय सिंह ) : – ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों को सौ दिन रोजगार देने की गारंटी दिलाने वाली योजना मनरेगा वेंटीलेटर में चली गई प्रतीत होती है। वरना यहां के मजदूरों को दिहाड़ी मजदूरी करने अन्य प्रांतों में न जाना पड़ता। जो काम हांथों से होना चाहिये, वह कर रही थीं। पंचायतीराज से संचालित मनरेगा, कमीशनखोरी की भेंट चढ़ चुकी है। जिला व जनपद पंचायतों के कर्ताधर्ता तो पहले से ही इसमें शामिल रहे हैं, बैंक व कियोस्क् संचालकों की बेजा कमाई का यह जरिया बन चुकी है।

मनरेगा के अंतर्गत् जिलें के पांच विकास खंडों में 2 लाख 21 हजार 7 सौ 61 जाॅब कार्डधारी मजदूर हैं। गत् वर्ष 40 लाख श्रम दिवस रोजगाार उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था, उसके एवज में 14 हजार 1 सौ काम भी स्वीकृत किये गये और 35 लाख 9 हजार 26 दिन का रोजगार दिया गया। जिसकी जमीनी हकीकत यह है कि अर्थ वर्क का काम जे.सी.बी. मशीनों व डम्परों ने किया।

मस्टर रोल में हाजिरी तो मजदूरों के नाम से ही लगी, किन्तु बैंक खाते में आये पैसों को सरपंच, सचिव, निर्माण एजेंसी के इंजीनियरों, मैनेजर व कियोस्क संचालकों की मिली भगत से बंदरबांट में चला गया। अंततः वास्तविक मजदूर, के हांथ में सिर्फ जाॅब कार्ड रह गया। और जिन मजदूरों ने वास्तव में काम किया है, उन्हें मजदूरी ही नहीं दी जाती है। काम की तलाश में मजदूूरों के पलायन की एक वजह यह भी है।

इस घांधली के बारे में यदि जिम्मेदारों से बात की जाय तो सरपंच, सचिव कहते हैं कि बगैर कमीशन के काम स्वीकृत नहीं होता, मशीनों से काम न करवाया जाय तो प्रोग्रेस नहीं आती, बैंक व कियोस्क में इसलिये देना पड़ता है कि मजदूरों के खाते से फर्जी तरीके से पैसा निकालते हैं। यही बात जनपद व जिला स्तर पर कही जाती है कि ऊपर तक देना पड़ता है।

करोना के कहर का असर अभी तक सीधी जिले में नहीं पड़ा, लेकिन यह तथ्य स्पष्ट हो गया कि काम के अभाव में मजदूरों का जिले से पलायन होता है। यानि साल भर में सौ दिन के रोजगार की गारंटी देने वाली योजना मनरेगा, कागजी आंकड़ों में सिमट गई है। मनरेगा के अर्थ वर्क का काम मशीनों से काम कराया जाता है, इसकी पुष्टि लाॅक डाऊन के दौरान खोले गये कार्यों में जे.सी.बी. मशीनों पर लगाये गये प्रतिबंध से होती है।

सम्पूर्ण लाॅक उाऊन के कारण बेरोजगार हुये प्रवासी मजदूरों का एक जत्था मुम्बई से सीधी के लिये रवाना होता है। यह सभी लोग सीधी जिले के सिहावल विधान सभा क्षेत्र के रहवासी हैं। तकरीबन 160 कि.मी. की दूरी तय करने के बाद इन लोगों ने महाराष्ट्र के थाणे जिला अंतर्गत कल्याण थाना के गवेली कस्बे में भोजन की तलाश करते हैं, जो सम्पूर्ण लाॅक डाऊन के कारण नहीं मिला। इन्हें मिलता है तो सिर्फ पानी। पानी पीकर भूख मिटाने की प्रत्याशा में सीधी जिले के बहरी थाना अंतर्गत तिलई (हटवा) निवासी 39 वर्षीय मोतालाल साहू बेहोश हो जाता है। समीपी ग्रामीण चिकित्सालय गवेली में उसकी उपचार के दौरान मौत हो जाती है।

मृतक की पत्नी श्यामवती साहू के अनुसार उसके तीन पुत्रियां पूजा-19 वर्ष, पूनम-17 वर्ष व आरती-14 वर्ष की हो चुकी हैं। ब्याह योगय बड़ी कन्या व अन्य पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन हेतु मोती लाल को नियमित रोजगार नहीं मिल रहा था। काम की तलाश में ही मोतीलाल, मुम्बई चला गया था और वहां दिहाड़ी मजदूरी ही करता था। शायद यहां उसे काम मिला होता तो यह दिन न देखने पड़ते।

अब कहने से क्या फायदा ? पिछले डेढ़ साल तो जिले के ही विधायक पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रहे हैं। जमीनी हकीकत जानते हुये भी उन्होंने व्यवस्था में सुधार की कोशिश के बजाय और बेपटरी करने में कोई हिचक नहीं दिखाई।

Related post

मेक्सिको और कनाडा से संयुक्त राज्य अमेरिका में आने वाले सभी उत्पादों और  खुली सीमाओं पर 25% टैरिफ

मेक्सिको और कनाडा से संयुक्त राज्य अमेरिका में आने वाले सभी उत्पादों और  खुली सीमाओं पर…

ट्रम्प ने कहा, “20 जनवरी को, अपने  पहले कार्यकारी आदेशों में से एक के रूप में,…
बाकू में COP29: जलवायु संकट और अधूरे वादों की कहानी

बाकू में COP29: जलवायु संकट और अधूरे वादों की कहानी

निशान्त——-   बाकू, अज़रबैजान में आयोजित 29वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP29) ने दुनिया भर के देशों को एक…

Leave a Reply