बंगाल में राष्ट्रपति शासन के हालात—–सुरेश हिन्दुस्थानी

बंगाल में राष्ट्रपति शासन के हालात—–सुरेश हिन्दुस्थानी

पश्चिम बंगाल में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राजनीति को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे वे उलटा चोर कोतवाल को डाटे वाली राजनीति कर रही हैं।

बंगाल में जारी हिंसा को लेकर यह खबरें भी आ रही हैं कि यह हिंसा बांग्लादेशी घुसपैठिए और रोहिंग्याई मुसलमानों द्वारा की जा रही है। लेकिन सरकार इन पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही करने के बजाय बाहरी तत्वों पर आरोप लगाकर अपना बचाव कर रही हैं। चलिए एक बार यह भी मान लेते हैं कि यह हिंसा बाहरी तत्वों द्वारा की जा रही है तो फिर प्रशासन उनके विरोध में कार्यवाही करने से क्यों कतरा रहा है? ममता बनर्जी जिस प्रकार से अपना रुप प्रदर्शित कर रही हैं, उससे तो ऐसा लगता है कि वे हिंसा करने वालों का बचाव कर रही हैं। अगर हिंसा करने वाले बाहरी तत्व होते तो क्या सरकार कार्यवाही नहीं करती।

वास्तव में सरकार अगर कठोर कार्यवाही करने का मन बनाती तो यह हिंसा रुक सकती थी। हिंसा ग्रस्त क्षेत्रों में प्रशासन कफ्र्यू लगाने के लिए क्यों नहीं तैयार हो रहा? कुल मिलाकर पश्चिम बंगाल में हिंसा के लिए राज्य सरकार जिम्मेदार है। हिंसा को नहीं रोक पाना राज्य सरकार की नाकामी ही है। आज बंगाल में जिस प्रकार की स्थिति है, वह राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए पर्याप्त कहा जा सकता है।

बंगाल में यह भी दिखाई दे रहा है कि वहां की जनता जय श्री राम का नारा लगाकर ममता बनर्जी को चिढ़ा रही है। सवाल यह है कि जब स्वयं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी देश के आराध्य भगवान राम के नाम से चिढ़ रही हैं, तब आम कार्यकर्ता कैसा सोच रखता होगा, यह समझा जा सकता है। भगवान राम पूरे देश की पहचान हैं और सबके लिए पूजनीय हैं, फिर ममता बनर्जी देश की पहचान के साथ क्यों जुडऩा चाह रही हैं।

सवाल यह भी आता है कि क्या ममता बनर्जी को देश के मानबिन्दुओं से कोई सरोकार नहीं है? जय श्री राम का नारा तो भारत का स्वागत संबोधन है, यह कोई भाजपा ने प्रारंभ नहीं किया, बल्कि देश में सनातन काल से चला आ रहा है। भाजपा की स्थापना को तो अभी लगभग तीन दशक ही हुए हैं, लेकिन भगवान श्री राम देश की शिराओं में विद्यमान है। जब जनता की तरफ से इस नारे को बुलंद किया जाता है तो वह भाजपा की ओर से किया गया है, ऐसा प्रामाणिक रुप से नहीं कहा जा सकता। ममता बनर्जी को जन भावना को समझने का प्रयास करना चाहिए। अगर वह राम का विरोध करेंगी तो वह निश्चित ही भारत का विरोध ही माना जाएगा। और भारत विरोध किसी भी दृष्टि से क्षम्य नहीं है।

अभी हाल ही में सुनने में यह भी आया कि ममता बनर्जी ने तानाशाही दिखाते हुए भारतीय जनता पार्टी के विजयी जुलूसों पर रोक लगा दी। ऐसा लगता है कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांगे्रस के कार्यकर्ताओं को अभी तक भारतीय जनता पार्टी की जीत पच नहीं रही है। तृणमूल कांगे्रस के कार्यकर्ता राज्य सरकार के संरक्षण में जिस प्रकार से भाजपा कार्यकर्ताओं पर आघात कर रहे हैं, वह निश्चित रुप से पश्चिम बंगाल की हालत का बखान कर रहे हैं।

तृणमूल कांगे्रस द्वारा इस प्रकार के हिंसक व्यवहार से संभवत: ऐसा ही लगता है कि यह राज्य भी कश्मीर के पद चिन्हों पर कदम बढ़ा रहा है। पश्चिम बंगाल में हिन्दू समाज पूरी तरह से दमन का शिकार हो रहे हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि यह हिंसा घुसपैठिए ही कर रहे हैं। यहां एक सवाल यह भी आ रहा है कि जो हिंसा का शिकार हो रहे हैं, उनको न तो सरकार ही सुरक्षा प्रदान कर रही है और न ही प्रशासन ही राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित हिंसा के विरोध में कार्यवाही कर रही है। इसका सीधा अर्थ यही निकाला जा सकता है कि राज्य सरकार अपने अलावा किसी और राजनीतिक दल का प्रभाव देखना नहीं चाहती।

इस प्रकार का भाव लोकतंत्र के लिए खतरा ही कहा जाएगा। पश्चिम बंगाल में लगातार बढ़ती जा रही हिंसा को देखते हुए केन्द्र सरकार ने सक्रियता दिखाई है, लेकिन ममता बनर्जी ने कई बार केन्द्र सरकार के विरोध में जिस प्रकार से द्वेष पूर्ण बयान दिए हैं, उससे ऐसा लगता है कि वह किसी भी प्रकार से केन्द्र की बात नहीं मानेंगी। वास्तव में होना यही चाहिए कि जब राज्य सरकार हिंसा को रोकने में असमर्थ साबित हो रही है, तक उसे केन्द्र से सहयोग मांगना चाहिए, लेकिन ममता बनर्जी की कार्यशैली को देखते हुए ऐसा लगता नहीं है कि वह हिंसा को रोकने के लिए केन्द्र की मदद लेंगी। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि ममता बनर्जी की सरकार हिंसा को बढ़ावा देने वाले असामाजिक तत्वों को संरक्षित ही कर रही हैं।

राज्य सरकार चाहे तो हिंसा रुक सकती है, परंतु लगता है कि राज्य सरकार इस प्रकार की हिंसा को और बढ़ाना चाह रही है, जिससे प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बने और राज्य में दंगा हो जाए। केन्द्र सरकार ने हिंसा ग्रस्त क्षेत्रों में तैनात अधिकारियों के खिलाफ भी कार्यवाही करने की बात कही, लेकिन उन दोषी अधिकारियों के विरोध में अभी तक किसी प्रकार की कार्यवाही न होना कहीं न कहीं राज्य सरकार के संरक्षण को ही उजागर कर रहा है।

बंगाल में घुसपैठियों के अलावा यह भी सामने आ रहा है कि वामपंथी दलों के कार्यकर्ता भी इस प्रकार की हिंसा में शामिल हैं। यह कार्यकर्ता भी भाजपा को निशाने पर ले रहे हैं। जब सरकार ही बाहरी तत्व कहकर अपना बचाव करती दिखाई देती है, तब यह स्वाभाविक ही है कि वह हिंसा को रोकने के लिए किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं करेगी।

बंगाल में चुनाव के पहले से ही शुरू हो गई राजनीतिक हिंसा जिस प्रकार से रुकने का नाम नहीं ले रही, उससे प्रदेश ही नहीं देश की भी बदनामी हो रही है। देश में यही एक अकेला ऐसा राज्य बचा है जहां राजनीतिक हिंसा का वीभत्स रूप देखने को मिल रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो हिंसा करने वालों के हौसले बुलंद ही होंगे और फिर हिंसा लगातार बढ़ती ही जाएगी। ऐसे में बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए। इसके अलावा अब और कोई उपाय नहीं है।

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