- May 12, 2019
जदयू का घोषणा पत्र —-मुरली मनोहर श्रीवास्तव
• जदयू ने आखिर क्यों जारी नहीं किया घोषणापत्र ?
• राम मंदिर और धारा 370 पर मतभेद के लगाए जा रहे कयास ?
• जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने पर है बीजेपी-जेडीयू विवाद-सूत्र
• जदयू ने किसी भी चुनावी मंच पर अपनी सहमति नहीं व्यक्त की है
• जदयू घोषणापत्र जारी करती है तो मतभेद एक बार फिर सामने आ सकता है ?
• जदयू 14 अप्रैल को ही अपने घोषणा पत्र को जारी करने वाली थी
• भाजपा के घोषणापत्र को जदयू नेतृत्व की मौन स्वीकृति है- राजद
लोकसभा चुनाव में छह चरण के चुनाव संपन्न हो चुके हैं और अब तक जदय़ू ने अपने घोषणापत्र का ऐलान नहीं किया है।हलांकि चुनाव में आगे-पीछे ही सही लेकिन सभी पार्टियों ने घोषणापत्र जारी तो कर दिया, लेकिन बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी पार्टी का घोषणापत्र अभी तक जारी नहीं कर पायी है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर अब तक क्यों नहीं जारी हो पायी है जदयू का घोषणापत्र।
राजनीतिक गलियारे में इसको लेकर चर्चाओं का बाजार गरम है कि आखिर अब तक विकास की राह पर चलने वाली नीतीश सरकार की जदयू ने क्यों नहीं की घोषणापत्र की घोषणा। कोई भी दल चुनाव के शुरु होने से पहले अपने मुद्दों के आधार पर घोषणापत्र बनाकर चुनाव लड़ती है। मगर जदयू के नहीं जारी किए जाने से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस बार के चुनाव में जदयू ने खुद को भाजपा के घोषणापत्र को ही अपना आधार बना लिया है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि भाजपा के कई ऐसे मुद्दे हैं जिस पर भाजपा औऱ जदयू में मतभेद है। अब ऐसे में चौथा चरण चुनाव का गुजर जाने के बाद भी घोषणापत्र का नहीं आना जदयू को भी सवालों के घेरे में खड़ा करता है।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो एक तरफ अयोध्या में राम मंदिर और जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के मुद्दे पर जदय़ू की भाजपा से मतभेद है। अगर जदयू घोषणापत्र जारी करती है तो मतभेद एक बार फिर सामने आने का भय बना हुआ है। ऐसे में भाजपा का वोट जो जदयू को मिलने वाला है, उसका नुकसान जदयू को उठाना पड़ सकता है। शायद यही कारण है कि जदयू घोषणापत्र जारी नहीं कर रहा है।
जदयू का मानना है कि अनुच्छेद 370, 35A और समान नागरिक संहिता लागू करने के मुद्दे पर सभी पक्ष से बातचीत होनी चाहिए उसके बाद ही कोई फैसला लेना चाहिए। राम मंदिर के मुद्दे पर भी जदयू का पक्ष यही है कि इस पूरे मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान होना चाहिए। सूत्रों के हवाले से ये भी खबर आ रही है की जदयू 14 अप्रैल को ही अपने घोषणा पत्र को जारी करने वाली थी, मगर अचानक से दिन का टलना उपर के सारे तथ्यों पर मुहर जरुर लगा रहा है।
भाजपा ने 8 अप्रैल को ही अपना घोषणापत्र जारी किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि सत्ता में दोबारा लौटने पर जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35A को खत्म किया जाएगा और समान नागरिक संहिता को लागू किया जाएगा। भाजपा के घोषणापत्र में जो भी विवादास्पद मुद्दे हैं, उस पर जदयू नेतृत्व द्वारा अब तक किसी भी चुनावी मंच पर अपनी सहमति नहीं व्यक्त की गई है। इससे ये साफ हो जाता है कि कहीं न कहीं जदयू की भाजपा के घोषणापत्र को जदयू की जरुर हरी झंडी मिली है। जबकि इस मसले पर जदयू का कहना है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश का मानना है कि हमने बिहार का विकास किया है इसलिए घोषणाओं की कोई जरूरत नहीं है।
वहीं दूसरी तरफ राजद नेता ने चितरंजन गगन ने जदयू के घोषणा पत्र जारी नहीं किए जाने पर कहा है कि जदयू की ओर से घोषणा पत्र जारी नहीं करना यह साफ संकेत देता है कि भाजपा के घोषणापत्र के आधार पर ही वोट मांग रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा के घोषणापत्र में जो भी विवादास्पद मुद्दे हैं, उस पर जदयू नेतृत्व द्वारा अब तक किसी भी चुनावी मंच पर अपनी सहमति नहीं व्यक्त किया गया है। उनका मानना है कि भाजपा के घोषणापत्र को जदयू नेतृत्व की मौन स्वीकृति जरुर प्राप्त है।
भाजपा और जदयू बिहार में एकजुट होकर चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन दोनों में कई मुद्दों को लेकर राय एक-दूसरे से इतर है। इसका डर दोनों ही पार्टियों को सता रहा है। यही कारण है कि चार चरणों में मतदान होने के बावजूद अभी तक जदयू ने अपना घोषणापत्र जारी नहीं किया है। अब ऐसे में देखने वाली बात ये है कि आखिर जदयू आगे अपने घोषणापत्र को जारी करेगी या फिर भाजपा के समर्थकों को अपने पक्ष में लेकर अपने वोट को बढ़ाने की कवायद में जुटी हुई है।
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लेखक सह पत्रकार, पटना
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