• August 29, 2018

संविधान के संदर्भ में सवर्ण गरीबों का आरक्षण औचित्यहीन

संविधान के संदर्भ में  सवर्ण गरीबों का आरक्षण औचित्यहीन

सवर्ण गरीब के आरक्षण पर प्रतिक्रिया, आंकड़ें प्रस्तुत
***********************************
पट्ना ——- श्री रजक नें कहा कि बड़े विनम्रतापूर्वक कहना है कि आज सवर्ण गरीब के आरक्षण की वकालत की जा रही है। परंतु संविधान के संदर्भ में कहना औचित्यहीन नहीं हो सकता। कुछ बुद्धिमान साथियों का मतभेद है परंतु निम्न आंकड़ा देख कर और समझ कर अपनी बात इस संदर्भ में वकालत करें तो उचित होगा।

श्री रजक नें आंकड़ें प्रस्तुत करते हुए कहा कि देश के उच्च सरकारी पदों पर भी दलित प्रतिनिधित्व की भारी कमी है। केन्द्रीय मंत्रालयों में अवर सचिव से लेकर सचिव व निदेशक स्तर के 747 अफसरों में महज 60 अफसर एससी और 24 अफसर एसटी समुदाय के हैं। अर्थात उच्च सरकारी पदों पर दलितों का प्रतिनिधित्व महज 15 फीसदी है। जबकि सामान्य वर्ग से करीब 85 फीसदी अफसर इन पदों पर कार्यरत हैं।

केंद्र सरकार में सचिव रैंक के 81अधिकारी हैं, जिसमें केवल 2 अनुसूचित जाति के और 3 अनुसूचित जनजाति के हैं। 70 अपर सचिवों में केवल 4 अनुसूचित जाति के और 2 अनुसूचित जनजाति के हैं। 293 संयुक्त सचिवों में केवल 21 अनुसूचित जाति और 7 अनुसूचित जनजाति के हैं। निदेशक स्तर पर 299 अफसरों में 33 अनुसूचित जाति और 13 अनुसूचित जनजाति के अधिकारी हैं।

केंद सरकार की ग्रुप A की नौकरियों मे अनुसूचित जाति की भागीदारी का प्रतिशत 12.06 है, पिछड़ा वर्ग की भागीदारी 8.37 जबकि सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी 74.48 है। ग्रुप B की नौकरियों मे अनुसूचित जाति की भागीदारी का प्रतिशत 15.73 है, पिछड़ा वर्ग की भागीदारी 10.01 जबकि सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी 68.25 है। ग्रुप C की नौकरियों मे अनुसूचित जाति की भागीदारी का प्रतिशत 17.30 है, पिछड़ा वर्ग की भागीदारी 17.31 जबकि सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी 57.79 है। वहीं केंद सरकार के उपक्रमों की नौकरियों मे अनुसूचित जाति की भागीदारी का प्रतिशत 18.14 है, पिछड़ा वर्ग की भागीदारी 28.53 जबकि सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी 53.33 है।

उसी प्रकार शिक्षा जगत के उच्च पदों पर दलित प्रतिनिधित्व की कमी है या यूँ कहें कि सामान्य जाति का वर्चस्व इसकी वजह है। इसलिए जबतक विश्विद्यालयों में कुलपति जैसे उच्च पदों पर दलितों की नियुक्ति नहीं होगी स्थिति में सुधार संभव नहीं है।

यूजीसी के आरटीआई द्वारा से मिले जवाब के मुताबिक, देश भर में कुल 496 कुलपति हैं। इन 496 में से केवल 6 एससी, 6 एसटी, और 36 ओबीसी कुलपति हैं। इसके अलावा बाकी बचे सभी 448 कुलपति सामान्य वर्ग के हैं। मतलब देश की 89 फीसदी आबादी (एससी, एसटी और ओबीसी) से 48 कुलपति और 11 फीसदी आबादी (सामान्य) से 448 कुलपति।

वहीं बिहार में उच्‍च शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्‍वपूर्ण पदों पर सामान्य वर्ग के लोगों का वर्चस्व है। राज्‍य के 18 विश्‍वविद्यालयों के पदस्थापित कुलपतियों में 12 सामान्य हैं। जबकि यहाँ दलितों की कोई हिस्सेदारी नहीं है। ये कैसी बराबरी है?

फ़िलहाल भारत सरकार द्वारा दलित पिछड़ों को 49.5 फीसदी आरक्षण प्राप्त है। इसका मतलब 85 फीसद आवादी को 49.5 प्रतिशत की सीमा में बांध दिया गया है। और 15 फीसद के आवादी को 50.5 प्रतिशत नौकरियाँ दे दी गयी। प्राप्त आरक्षित सीट को भी पूरी तरह नहीं भरा जा रहा।

ऐसे में जबतक सभी उच्च पदों पर दलितों को समान प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाएगा, तबतक सामाजिक समानता और दलित उत्थान की बात बेमानी होगी।

मेरा यह बताना किसी को अपमानित करना नहीं है।परंतु स्थिति यही सत्य है इसलिए सत्य से परिचित करना मेरा नागरिक कर्तव्य बन जाता है। दलितों के साथ कुछ ऐसी ही स्थिति देश की न्यायपालिका में भी बनी हुई है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश केजी बालाकृष्णन के 11 मई, 2010 को सेवानिवृत होने के बाद, अनुसूचित जाति के किसी भी जज को सुप्रीम कोर्ट का जज नहीं बनाया गया है। पिछले आठ साल मे सुप्रीम कोर्ट में एक भी जज दलित समुदाय से नहीं बन पाया है। यहां तक कि पूरे देश के 24 हाई कोर्ट में एक भी दलित चीफ जस्टिस नहीं है।

श्री रजक ने कहा कि आज के ग्लोबलाईजेशन एवं इंटरनेशनल ट्रेड वार के जमाने में दिन-प्रतिदिन सरकारी नौकरीयां घटती जा रहीं है। और जिसे हाल हीं में माननीय केन्द्रीय मंत्री श्री नितिन गटकरी ने भी स्वीकारा है कि आने वाले दिनों में नौकरियां घटेंगीं। ऐसे में आरक्षित वर्गो से उनके 50 प्रतिशत के कोटे को नहीं भरा जाना बाबा साहेब के आरक्षण के उद्देश्य को पुरा नहीं कर पायेगा।

उन्होंने कहा कि इसके पश्चात अगर कहीं किसी वन्धु को पीड़ा होती है तो मैं कुछ कर भी नहीं सकता। सिर्फ सच्चाई से अवगत कराना मेरा दायित्व है। मैं जान व देख रहा हूँ कि मुझे व मेरे माँ-बाप को अपमानित व अपशब्दों की वर्षा की जा रही है। वे लोग तो हमारे आदर्श बाबा साहेब को भी गाली देने से नहीं थकते। उनकी प्रतिमा को क्षतिग्रस्त करना अपना अभिमान समझते हैं। फिर मैं तो एक तुक्ष्य हूँ, मुझे इसकी कोई दुःख व पीड़ा नहीं। परंतु ईश्वर उन लोगों को माफ करें क्योंकि वह नहीं समझ रहे हैं कि वे क्या कह रहे हैं।

संपर्क —-
श्याम रजक (विधायक)
188, फुलवारी विधान सभा
राष्ट्रीय महासचिव (जनता दल युनाईटेड) National General Secretary, JD (U)
20-A, हार्डींग रोड ,पट्ना 800001
मो० – 0612- 205740, 215643
Email- shyamrajak.com@gmail.com

Related post

साड़ी: भारतीयता और परंपरा का विश्व प्रिय पोशाक 

साड़ी: भारतीयता और परंपरा का विश्व प्रिय पोशाक 

21 दिसंबर विश्व साड़ी दिवस सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”- आज से करीब  पांच वर्ष पूर्व महाभारत काल में हस्तिनापुर…
पुस्तक समीक्षा :कमोवेश सभी कहानियां गोरखपुर की माटी की खुशबू में तर-बतर है

पुस्तक समीक्षा :कमोवेश सभी कहानियां गोरखपुर की माटी की खुशबू में तर-बतर है

उमेश कुमार सिंह——— गुरु गोरखनाथ जैसे महायोगी और महाकवि के नगर गोरखपुर के किस्से बहुत हैं। गुरु…
पुस्तक समीक्षा : जवानी जिन में गुजरी है,  वो गलियां याद आती हैं

पुस्तक समीक्षा : जवानी जिन में गुजरी है,  वो गलियां याद आती हैं

उमेश कुमार सिंह :  गुरुगोरखनाथ जैसे महायोगी और महाकवि के नगर गोरखपुर के किस्से बहुत हैं।…

Leave a Reply