- October 3, 2017
हास्य और अनुराग तुम्हीं थे, तानसेन का राग तुम्हीं थे-कवि चेतन नितिन खरे ,मोहोबा
*कायस्थों के अस्तित्व और स्वाभिमान
सूर्य रश्मियाँ जब भी बोझिल हुईं अंधेरी रातों से,
सदा मिली है ताकत इनको कागज कलम दवातों से,
तुम वंशज हो चित्रगुप्त के जग में शान तुम्हारी है,
कागज कलम दवात सदा से ही पहचान तुम्हारी है,
सकल श्रृष्टि के निर्माता तुम ब्रम्हा जी के प्यारे हो,
प्रखर प्रवर्तक बुद्धि लिए माँ शक्ति के भी दुलारे हो,
धर्मराज बन स्वयं न्याय की रेखा रखने वाले हो,
सारे जग के ही कर्मों का लेखा रखने वाले हो,
सम्मानित हो पूज्यनीय हो थाह दिखाने वाले हो,
अन्धकार में भी प्रकाश की राह दिखाने वाले हो,
दुनिया भर में निज संस्कृति का गान कराने वाले हो,
बुद्धिमान को बुद्धिमता का भान कराने वाले हो,
तुम भारत के गौरव हो तुम राष्ट्र के खातिर डटे रहे,
जातिवाद में नहीं पटे पर राष्ट्रवाद पर अटे रहे,
श्वेत चन्द्र आभास तुम्हीं हो सूरज का प्रकाश तुम्हीं हो,
धरती व आकाश तुम्हीं हो गौरवमयी इतिहास तुम्हीं हो,
खड्गों की टंकार तुम्हीं हो पावन गंगा धार तुम्हीं हो,
जलता इक अंगार तुम्हीं हो ठाकरे की हुँकार तुम्ही हो,
पुष्पों के मकरंद तुम्हीं हो कवि चेतन के छंद तुम्हीं हो,
ये भगवा स्वछन्द तुम्हीं हो स्वामी विवेकानन्द तुम्हीं हो,
*स्वतंत्रता की आश तुम्हीं थे दुनिया भर में ख़ास तुम्हीं थे,*
*आजाद हिन्द करवाने वाले नेता वीर सुभाष तुम्हीं थे,*
मोहक चन्दन बाग़ तुम्हीं थे होली वाली फाग तुम्हीं थे,
हास्य और अनुराग तुम्हीं थे तानसेन का राग तुम्हीं थे,
राष्ट्रपति के भी सुर तुम थे, संविधान के भी उर तुम थे,
धूल चटा दे जो दुश्मन को, शाश्त्री लाल बहादुर तुम थे,
प्रेमचन्द गोदान तुम्हीं थे महादेवी पहचान तुम्हीं थे,
वृन्दावन सी शान तुम्हीं थे संपूर्णानंद की जान तुम्हीं थे,
*ऊँच नीच पे कहर तुम्हीं थे गीत गजल की बहर तुम्हीं थे,*
*सोई सरकार जगाने वाली जयप्रकाश की लहर तुम्हीं थे,*
अपना अतीत अपना गौरव कहीं और ना खो जाए,
बुद्धिजीवियों की बिसात बिल्कुल बौनी ना हो जाए,
आपस की बस खींचतान में हम पिछड़े ना रह जायें,
औरों के घर को सीच सींच न मकाँ हमारे ढह जायें,
कुशाग्र बुद्धि वालों के कलमें कहीं सुप्त न हो जायें,
बदले बदले इस मिजाज में हम विलुप्त न हो जायें,
इसीलिये हे कायस्थ बन्धुओं शक्ति की पहचान करो,
तुम वंशज हो चित्रगुप्त के मिलकर के आह्वान करो,
एक सूत्र में बंधो कलम की धारें आज मिला दो तुम,
सागर की गहराई में पतवारें आज मिला दो तुम,
स्वयं तरक्की करो साथ में सबका ही उत्थान करो,
जितना भी हो सके देश के लोगों का कल्याण करो,
अपने हित के लिए लड़ो पर धर्म एक है ध्यान रहे,
हिन्दू -हिन्दू भाई -भाई हिन्दू अपनी पहचान रहे,
अपना गौरव नहीं रहा है केवल बस तलवारों से,
आर्याव्रत था विश्वगुरु कृपाण कलम की धारों से,
*कलम चलाओं धर्म सनातन की तुम पूर्ण सुरक्षा में,*
*वक्त पड़े तो शीश कटा देना भारत की रक्षा में,*
रचनाकार-
कवि ‘चेतन’ नितिन खरे
महोबा, बुन्देलखण्ड, मो.- +91 9582184195