- November 29, 2016
जैविक मूल्य श्रंखला विकास योजनाओं की शुरूआत की है- श्री सिंह
पेसूका ——— हालात में जैविक खेती के महत्व और उसके लाभ को ध्यान में रखकर भारत सरकार देश भर में जैविक कृषि को बढ़ावा दे रही है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने इसके लिए राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के अंतर्गत परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) और पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लिए जैविक मूल्य श्रंखला विकास (ओवीसीडीएनईआर) योजनाओं की शुरुआत की है।
उन्होंने बताया कि पहले जैविक खेती को बारानी, पहाड़ी एवं आदिवासी क्षेत्रों में बढ़ावा दिया जा रहा है क्योंकि इन क्षेत्रों में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग बहुत कम है I कृषि मंत्री ये बात आज देहरादून में सेवा भारती द्वारा आयोजित जैविक खेती सम्मेलन में कही।
कृषि मंत्री ने कहा कि जैविक कृषि न केवल वायु, जल एवं मृदा से अत्यधिक रसायनों को बाहर करते हुए पर्यावरण से विषाक्त भार कम करता है बल्कि यह लम्बी अवधि तक स्वस्थ मृदा को तैयार/पुनर्सृजन करने और जैव विविधता को बढ़ाने एवं संरक्षित करने में भी मदद करता है।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2015-16 के दौरान जंगली फसल को छोड़कर जैविक प्रमाणन के तहत वर्तमान में जैविक कृषि में कुल क्षेत्र 14.90 लाख हैक्टेयर है। गरीब एवं सीमांत किसान उच्च लागत के कारण इसे अपना नहीं रहे हैं इसलिए घरेलू जैविक मंडी विकास के लिए पीजीएस-भारत कार्यक्रम की शुरूआत की गई है।
उन्होंने जानकारी दी कि परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) पहली व्यापक योजना है जिसे एक केन्द्रींय प्रायोजित कार्यक्रम (सीएसपी) के रूप में शुरू किया गया है। इस योजना का कार्यान्वयन प्रति 20 हैक्टेयर के कलस्टर आधार पर राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।
कलस्टर के अंतर्गत किसानों को अधिकतम 1 हैक्टेयर तक की वित्तीय सहायता दी जाती है और सहायता की सीमा 3 वर्षों के रूपांतरण की अवधि के दौरान प्रति हैक्टेयर 50,000 रूपये है। 2 लाख हैक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हुए 10,000 कलस्टरों को बढ़ावा देने का लक्ष्य है।