- October 19, 2016
पहली बार गौण खनिजों की ई- नीलामी
छत्तीसगढ ————— सीमेंट ग्रेड के चूना पत्थरों और सोने की खदानों की देश में प्रथम ई-नीलामी का परचम लहराने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने गौण खनिजों की 14 खदानों की भी ई-नीलामी सफलतापूर्वक पूर्ण कर ली और संबंधित खदानों को आवंटित भी कर दिया। ये खदानें रायपुर, राजनांदगांव, बलौदाबाजार और बिलासपुर जिलों की हैं, इनमें गिट्टी, बोल्डर और ईट-मिट्टी के लिए उत्खनि पट्टा मंजूर करने की कार्रवाई ई-नीलामी के माध्यम से पूर्ण की गई।
खनिज साधन विभाग की कमान संभाल रहे मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने गौण खनिज खदानों की सफल ई-नीलामी पर विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों को बधाई दी है। खनिज साधन विभाग के सचिव श्री सुबोध कुमार सिंह ने आज यहां बताया कि केन्द्र सरकार ने जनवरी 2015 में खनिज अधिनियम में व्यापक संशोधन कर खदानों का आवंटन ई-नीलामी के जरिए करने का निर्णय लिया था, ताकि खनिज संसाधनों के आवंटन में पारदर्शिता, शीघ्रता और खनन प्रक्रिया से मिलने वाले मुनाफे में राज्यों की बेहतर हिस्सेदारी सुनिश्चित की जा सके।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के मार्गदर्शन में छत्तीसगढ़ सरकार ने गौण खनिज नियमों में 23 मार्च 2016 को संशोधन किया और गौण खनिज खदानों की ई-नीलामी के लिए प्रावधान किए गए। इस प्रक्रिया में ऑनलाईन टेंडर आमंत्रित किए गए।
प्राप्त ई-टेंडरों के अनुसार राजनांदगांव जिले में तीन साधारण पत्थर खदानों के पट्टों के लिए सर्वाधिक बोली प्राप्त हुई। इनके लिए निर्धारित रिजर्व प्राईज 20 रूपए 60 पैसे प्रति घनमीटर के विरूद्ध 83 रूपए 77 पैसे प्रति घनमीटर की अधिकतम बोली प्राप्त हुई। रायपुर जिले में पांच, बलौदाबाजार जिले में दो और बिलासपुर जिले में चार गौण खनिज खदानों की ई-नीलामी भी आज सफलतापूर्वक पूर्ण की गई।
उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार की नई खनिज नीति के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा केन्द्र सरकार के एमएसटीसी पोर्टल में राज्य के गौण खनिज ब्लॉको के लिए पिछले महीने निविदा आमंत्रण सूचना (एनआईटी) जारी की गई थी। राज्य शासन के खनिज साधन विभाग की वेबसाइट पर भी यह सूचना जारी की गई थी।
ऑनलाईन बोली लगाने की अंतिम तारीख 17 अक्टूबर तय की गई थी। राज्य की 14 गौण खदानों के लिए 50 से ज्यादा निविदाकर्ताओं द्वारा ऑनलाईन टेंडर दिए गए थे। विभाग ने एक महीने से भी कम समय में पारदर्शी तरीके से इन खदानों का आवंटन सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया, जबकि पहले इस प्रक्रिया को पूर्ण करने में एक वर्ष का समय लगता था।