- May 13, 2016
सूरज को दोष न दें गलती सारी अपनी है – डॉ. दीपक आचार्य
संपर्क – 9413306077
www.drdeepakacharya.com
उफ्फ ये गर्मी। रहा नहीं जाता। गर्मी सही नहीं जाती।
पता नहीं कब तक यों ही झुलसाएगी।
बहुत हो चुका है अब।
ये सूर्यदेवता भी रहम नहीं करते, पता नहीं क्या करेंगे।
इतनी भीषण गर्मी तो पहली बार पड़ रही है, अभी तो मई करीब-करीब आधा ही हुआ है, पता नहीं जून में क्या होगा।
हर जगह यही सब चर्चा चारों तरफ है। सब लोग अपने आपको हैरान-परेशान महसूस कर रहे हैं।
सबको लगता है कि अब तो पानी बरस ही जाना चाहिए ताकि थोड़ी ठण्डक तो मिले वरना तो हालत खराब ही है, हाय राम, क्या होगा इस भीषण गर्मी में।
जिधर देखों उधर कोई पसीना पोंछ रहा है, कोई ठण्डा तलाश रहा है, कोई देशी-विदेशी शीतल पेय पीने को तरसा हुआ है, कोई बर्फ के गोले चूस रहा है।
एयरकण्डीशण्ड कमरों और गाड़ियों में रहने और घूमने वाले लोगों को यों तो गर्मी का पता नहीं चलता, इन्वर्टर में दम हो, अपन-पराये जनरेटर चलें तब तक तो ठीक है, वरना बिजली चली जाए और सारे फेल हो जाए तब अभिजात्य, वीआईपी और श्रेष्ठीजन भी ऎसे हैरान हो जाया करते हैं कि जैसे पगला गए हों, बेचारों की जिन्दगी में कुछ ही अवसर आते हैं कि जब उन्हें आम आदमी जैसी पीड़ाओं का अहसास होता है, वरना सभी इन्द्र-इन्द्राणियों की तरह रूबाब झाड़ते नज़र आते हैं।
भीषण गर्मी और लू के थपेड़ों से दो-चार होते हम सभी इंसानों के लिए तो अपने पास घर है लेकिन उन दरख्तों का क्या, उन वन्य जीवों और दूसरे पशुओं का क्या, जिनके आशियानों और बसेरों पर हम इंसानों ने कब्जा कर उन्हें बेदखल कर दिया है।
कहाँ जाएं बेचारे वे, जंगल के जंगल हमने काट डाले, छाया का नामोनिशान तक मिटा डाला। कहीं रहने का न ठौर है न कोई ठिकाना।
जीवन बचाने के लिए वे जिस तरह संघर्ष कर रहे हैं उसकी हम लोग कल्पना भी नहीं कर सकते।
हमारी बस्तियों की तरफ घुस आएं तो हम उन्हें या तो भगा देते हैं या उनकी जान लेने को आमादा हो जाते हैं।
इन पशुओं में इंसान की आवाज होती तो बस्तियों में आ आकर दिन-रात हमें गालियां बकते और चीखकर हमारी सारी पोलें खोल देते। हमारे कान पका देते।
हमारी सारी असलियतें सबके सामने होती और हमें आत्मचिन्तन को मजबूर होना पड़ता, हमें लज्जा भी आती और अपनी बेशर्मी पर रोना भी । तब हमारे सामने सर पीटने के सिवा कुछ न होता।
हमें न पक्षियों के जीवन की परवाह है न और किसी की।
सारा दोष हमारा है। सूरज देव क्या करें।
पेड़ हमने काटे, फिर लगाए तक नहीं। जंगल हमने साफ किए, फिर पनपाए नहीं।
प्रकृति के साथ छेड़छाड़ और शोषण के दोषी हम ही हैं।
अब भी नहीं सुधरे तो आने वाला समय बिना पानी के सूरज की तपन में देह को जलाकर समाप्त करने का न्यौता देने आ रहा है। संभल जाएं तो ठीक वरना सृष्टि का खात्मा होते अब देर नहीं।