- March 17, 2016
छुट्टियों के हत्यारे … – डॉ. दीपक आचार्य
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संसार दो तरह के लोगों में धु्रवीकृत है। एक वे हैं जो कहते हैं कि मरने तक की फुर्सत नहीं है, दूसरे लोगों से पूछो तो कहेंगे टाईमपास कर रहे हैं। दोनों किस्मों को आदर्श नहीं माना जा सकता क्योंकि ये सारे लोग टाईम मैनेजमेंट में विफल हैं। टाईम पास करने वाले भी, और टाईम कील करने वाले भी।
मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन, व्यवहार और कर्म में संतुलन बना हुआ होने पर ही वह समय प्रबन्धन कर खुद को ढाल लेता है और आनंद के साथ जीवन जीता है। जो लोग यह संतुलन नहीं बना पाते, उनकी जिन्दगी असंतुलित रहती है। ये खुद भी तनावग्रस्त रहते हैं, अपने आस-पास के लोगों को तनाव देने में भी पीछे नहीं रहते।
इनके जीवन के किसी भी क्षण का कोई मोल नहीं होता बल्कि हर काम भार समझ कर करते हैं और दिन-रात कुढ़ते रहते हैं। कई लोगों के लिए उनका दफ्तर और बिजनैस स्थल ही प्रधान हो जाता है और इनका अधिकांश वक्त इन्हीं में गुजरने लगता है।
ऎसे लोग भले ही अपने आपको वफादार कर्मयोगी मानें लेकिन असल में ये असंतुलित मस्तिष्क वाले सनकी लोग ही होते हैं जिन्हें घर -परिवार और कर्मक्षेत्र के बीच संतुलन बिठा पाने का हुनर नहीं आता। यह जरूरी नहीं कि इस श्रेणी में वे काले अंग्रेज और हमारे कर्णधार कहे जाने वाले बड़े लोग ही आते हों जो दिन भर फाईलों के ढेर में धँसे रहने वाले, कम्प्यूटर स्क्रीन के आगे घण्टों जमे रहकर वर्क ब्यूटी निखारने वाले या फिर निन्यानवे के फेर में पोथी-बहियों में उलझने वाले।
ये लोग हर समय किसी न किसी तनाव और कमी से जूझते रहते हैं। जीवन में असंतुलन की वजह से इन्हें न घर का कहा जा सकता है न घाट का। भले ही ये घाट-घाट का पानी पीने की डींगें क्यों न हाँकें। ऎसे लोगों के जीवन में बद्दुआएं भी कोई कम नहीं होती और इनका सीधा घातक असर उनके आभा मण्डल पर पड़ता है जो बद्दुआओं से बार-बार छिंदता रहता है।
इन लोगों के लिए न तीज-त्योहार और पर्व-उत्सवों का अर्थ है और न ही किसी छुट्टी का। ‘भूतों के डेरे पीपल में’ की तर्ज पर ये सीधे भाग लेते हैं अपने कर्मस्थलों पर और फाईलों के सागर में गोते लगाते रहते हैं। ऎसे लोगों को भी दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है। कुछ तो माल बनाने को ही जीवन का एकमेव मकसद समझते हैं। ऎसे घोड़े अगर फिरेंगे नहीं तो चरेंगे क्या। इनके लिया क्या छुट्टी, क्या कोई तीज-त्योहार। मैदान बहुत बड़ा है चरने के लिए, और ऎसे में क्यों न उपयोग करें हरी-हरी घास खूब जो पसरी है।
दूसरे किस्म के ‘छुट्टिया दफ्तरी’ लोगों के लिए अजीब सी सनक उन्हें जिन्दगी भर घेरे रहती है। उनका न घर में मन लगता है, न और कहीं। सीधे अपने डेरों में घुस जाते हैं। उन्हें वहीं सुकून मिलता है। इन दोनों ही प्रजातियों के लोगों के बारे में जानना हो तो इनके मातहतों से एक बार पूछ जरूर लें। बस इनकी लोकप्रियता और आदर्श व्यक्तित्व के बारे में सारी पुराण सुनकर हर कोई मजे से मुस्कुरा उठता है।
कई लोग अपने नम्बर बढ़वाने के लिए छुट्टियों का कबाड़ा कर देते हैं जैसे कि छुट्टियों के दिनों में मातहतों को तंग करने का इन्होंने जिन्दगी भर का ठेका ही ले रखा हो। ऎसे लोग बद्दुआओं के भार से इतने दबे रहते हैं कि खोखली लोकप्रियता के सिवा इनके पास कुछ नहीं हुआ करता।
जो सनकी लोग अपने ऎसे कर्म और व्यवहार से लोगों को तंग कर बद्दुआएं लेने के आदी होते हैं उनके परिवार में कलह हमेशा बना रहता है और दाम्पत्य जीवन कलुुषित होने के साथ ही दुर्घटना या अकालमृत्यु की आशंका बनी रहती है।
आस-पास जमा ऎसे सनकियों पर नज़र घुमायें तो इससे अपने आप अंदाज लग जाएगा। इनके भीतर से संरक्षकत्व का भाव कहीं खो जाता है और उसका स्थान ले लेता है शोषक व्यक्तित्व। पर इन सभी किस्मों के लोगों को समय प्रबन्धन में विफल मानना चाहिए क्योेंकि समय प्रबन्धन की कला में कहीं भी गुस्सा, निराशा और बद्दुआओं का कोई स्थान नहीं होता।
समय प्रबन्धन में माहिर लोगों से कोई प्रताड़ित या दुःखी नहीं होता, अवकाशों का मजा ये भी आनंद से लेते हैं और दूसरों को भी मुक्तमन से लेने देते हैं। आखिर अवकाश हैं ही किसलिये? इसे ये लोग अच्छी तरह जानते हैं।
वे लोग बिरले ही होते हैं जिन्हें दूसरों के प्रति मानवीय संवेदनाओं और मर्यादाओं का बोध बना रहता है। यही वजह है कि ईश्वर की अनुकंपा से उन्हें ऎसी कोई सनक नहीं होती जो उन्हें बद्दुआओं का केन्द्र बना दे। तभी तो इनके जीवन में आनंद होता है जैसा दूसरों की जिन्दगी में कभी नज़र नहीं आता। आईये उन सभी लोगों को जीते जी भावभीनी श्रद्धान्जलि अर्पित करें जो छुट्टियों का आनंद छीनने के आदी हैं।