- February 23, 2016
युग प्रवर्तक सिद्ध संत मावजी महाराज :- श्री राजेन्द्र पंचाल सामलिया
जब जब धर्म की हानि हुई और अधर्म का बोलबाला बढ़ा तब भगवान ने भारतवर्ष में स्वयम् या अपना अंशावतार पृथ्वी पर प्रकट किया ।
गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है ~
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ४)
वैसा ही हुआ इस प्रदेश में जब 700 वर्षो की लंबी गुलामी में मुसलमानों, ईसाइयो और अंग्रेजो ने हमारे देश में धर्म और संस्कृति को नष्ट कर बलात् धर्म परिवर्तन करने का कार्य किया गया । जिसमें उन्हें कई क्षेत्रो में सफलता मिली पर वागड़ क्षेत्र में वो अभियान असफल रहा। क्योंकि
भगवान ने वागड़ को अपने अंशावतार के लिये चुना । भगवान वही प्रगट होते है जहाँ ज्ञान , भक्ति और वैराग्य का संगम हो ।
अरावली की गोद में बसे सोम, माही और जाखम की कलकल करती सरिताओं के इस वाक् वर प्रदेश वागड़ की पुण्यमय धरा बेणेश्वर के निकट साबला गाँव में सुनैया पहाड़ी की तलहटी में सिद्धसंत, त्रिकालदर्शी , धर्मरक्षक और श्री कृष्णावतार पूज्य मावजी का प्रागट्य वि. सम्वत् 1784 में माघ शुक्ला ११ को हुआ ।
(तदनुसार 28 जनवरी 1715 को )
आपका जन्म उच्च कुल के दालम ऋषि के घर हुआ था जो जाति से ब्राहम्ण थे और माता का नाम केसर बाई था ।
आप को ज्ञान अपने पिता से विरासत में मिला था।( पर कुछ विद्वान् आपको अनपढ़ भी मानते है।) आपका घर का वातावरण ज्ञान और भक्तिपूर्ण था ।पिताजी से बचपन में ही शास्त्रज्ञान , अद्वैत वेदांत , वैष्णव भक्ति का बीजारोपण किया गया था ।
जन श्रुति व चौपड़ो के अनुसार मावजी महाराज द्वापर युग की अधूरी रासलीला को पूर्ण करने के लिये यहाँ पर उन भक्तो का पुनर्जन्म हुआ जो भगवान के भक्त होने के बाद भी वो गोकुल की लीला से वंचित रह गये थे उन्हें रास लीला करा कर श्री कृष्ण की ही भाँति भक्ति और ज्ञान का दीप जलाया । साथ ही रास लीला और ज्ञान के दीप की लो को अखण्ड बनाये रखने हेतु आज भी आपके हस्त लिखित चोपड़े और आपकी गुरु गादी न केवल वागड़ बल्कि पूरे माव भक्तो का मार्गदर्शन करते है साथ ही रास की परम्परा आपके भक्त बखूबी अब तक निभाते है ।
प्रारम्भ में मावजी को लोगो ने पागल समझा । और वागड़ी में गांड़ा कहा गया ।
“मावजी तो गाडो कैवाय माहराज ”
और मावजी महाराज बचपन से कई सारे चमत्कार करते हुये लोगो को अपनी और आकर्षित करते गये । आपने 750 छोटे बड़े वागड़ी भाषा में ग्रन्थ लिखे । इनके द्वारा रचित 5 बड़े ग्रन्थ है जिन्हें चोपड़े कहां जाता है जिसमे मुख्य है साम सागर । जिसका हिंदी अनुवाद भी हो चूका है। इसमें भगवान कृष्ण की तरह ही मावजी महाराज की लीलाओ का वर्णन उसी प्रकार किया गया है। आपने कई सारी भविष्यवाणियां की है जो 300 वर्षो बाद भी आज उतनी ही सार्थक है ।
“डोरिये दिवा बरेंगा ”
भावार्थ – डोरी पर दीपक जलेगा । मतलब आजकल तारो द्वारा बिजली जलती है।
” परिये पानी विसायेगा ”
पानी को नाप कर बेचा जायेगा ।
वर्तमान में मिनरल वाटर बेचा जा रहा है ।
“वायरे वात थायेगा ”
भावार्थ – हवा से बातचीत होगी ।
वर्त्तमान में मोबाइल सुविधा का होना
” भेत में भबुका फूटेगा ”
मतलब दीवार से पानी निकलेगा ।
मतलब नल सुविधा ।
” पर्वत गरी नी पाणी होसी ।”
मतलब पर्वत काट दिये जायेंगे और हम देख रहे है मनुष्य के आगे पर्वत पानी बन गये है।
ऐसी कई सारी भविष्य वाणियों का और पूर्वानुमान की बातो को बताना मावजी महाराज को भगवान का अवतार अपने आप सिद्ध करता है।
न केवल आपकी रचनाएँ एक ही विषय को इंगित नही करती है बल्कि आप को संगीत के राग का अनुभव भी था । आपको ज्योतिष व् खगोल का भी ज्ञान था , चित्रकला में आप निपुण थे ।
आपने निष्कलंक सुकनावली बनाई जिसे श्री शुभ वेला पंचांग (वागड़ से संपादित ) में हर वर्ष प्रकाशित किया जाता है । जिसे आप देख कर पूर्वानुमान और खुद का भविष्य खुद देख सकते है। 64 कोठो की यह सुकनावली अत्यंत सरल और सटीक है जिसे इस पंचांग के 100 से 103 पृष्ठ पर देख सकते है।
आपने साबला व आसपास के पूरे क्षेत्र को गोकुल~मथुरा माना है जिसे साबलपुरी कहा गया है ।
बेणेश्वर को वेणु वृन्दावन कहा है ।
आपके मार्गदर्शन से भगवान निष्कलंक अवतार के मंदिरो का निर्माण कराया गया । जो साबला, पालोदा , शेषपुर , पुंजपुर , संतरामपुर आदि जगह मौजूद है ।
आपने जाति धर्म से ऊपर उठ कर अपने शिष्यों को सभी जातियों में बनाये । आपके अधिकांश शिष्य आदिवासी , वनवासी और गरीब तबकों के लोग रहे । साद , बुनकर , कलाल , दर्जी और भील आदि जन जाति व पिछड़ी जातियो को आपने शिक्षित दीक्षित किया ।
और आपने समाज में फैली नशे की प्रवृति को उपदेशो से मिटाया । आज भी आपके भक्त कोई नशा नही करते है ।
आपने जाति प्रथा का विरोध किया
और स्वयं अन्तर्जातीय विवाह किया । विधवा विवाह का समर्थन किया ।
और भविष्यवाणी की ~ ऊच नु नीच होसे नी नीच नु ऊँच होसे ।
मतलब छोटी जातियों के लोग आगे बढ़ेंगे और उन्हें प्रतिनिधित्व का मौका मिलेगा ।
आप के चमत्कार भी कम नही रहे है। आप ने डूंगरपुर के गेप सागर के पानी पर चल कर तत्कालीन राजा को विस्मित कर दिया था ।
आपने नदी के पत्थरों को नारियल , पानी को घी और रेत को शक्कर बना कर प्रसाद बना दिया और लोगो को बांटा ।
आप खुद गाये चराते थे । प्रतिदिन गायो को साबला से बेणेश्वर ले जाते थे ।
संत श्री मावजी के बारे में अभी भी लोगो और आमजन में पूर्ण रूप से प्रचार प्रसार की कमी से भगवान के इस अवतार लीला का ज्ञान कम है।
आज भी मावजी महाराज के चमत्कार देखे और सुने जा रहे है ।
आपकी शिष्य परम्परा में गुरु गादी में वर्त्तमान गादीपति पूज्यवर अच्युतानन्दजी महाराज विराजते है । जिनके मार्गदर्शन में ” महाराज पंथ ” चलता है । आपके भक्त मावभक्त कहलाते है । आपका उदगोष् जय ~ महाराज है । जो घर घर बोला जाता है । आपके धाम् बेणेश्वर पर प्रतिवर्ष पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक का विशाल मेला भरता है ।
जिसे राजस्थान का कुम्भ कहते है ।