• December 23, 2015

लौट के आता है सब कुछ – डॉ. दीपक आचार्य

लौट के आता है सब कुछ – डॉ. दीपक आचार्य

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हर क्रिया की उसी परिणाम में प्रतिक्रिया होती है। ऎसा कभी नहीं हो सकता कि कोई क्रिया कहीं हुई हो और उसकी कोई प्रतिक्रिया सामने न आए। चाहे वह क्रिया किसी अंधेरे कोने में हो, दुनिया भर से छिपा कर की हो, सार्वजनीन हो अथवा एकान्त,गुपचुप अथवा संसार के किसी भी कोने में छिप कर की गई हो।

एक बार कोई क्रिया किंचित मात्र भी कहीं भी हुई हो, उसकी प्रतिक्रिया होना न केवल स्वाभाविक बल्कि शाश्वत है।  क्रिया की प्रवृत्ति के अनुरूप हो सकता है वह जल्दी हो अथवा समय लगाए, एक स्थान पर न होकर दूसरे किसी स्थान पर हो अथवा कुछ वर्ष बाद हो।

लेकिन इतना अवश्य है कि जो इंसान कोई सी क्रिया करता है उसकी प्रतिक्रिया उसके जीवन काल में ही होती है, चाहे वह मृत्यु करीब आने के दिनों में हो। इसलिए हम सभी को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि जो कुछ हम कर रहे हैं उसका फल हमें ही भुगतना होगा, चाहे हम इसके लिए तैयार हो न हों।

यह स्थिति केवल भौतिक क्रिया से ही संबंध नहीं रखती बल्कि सूक्ष्म जगत में देखा जाए तब भी हमारे दिमाग से निकला हुआ हर विचार हमेशा-हमेशा के लिए ब्रह्माण्ड में स्थिर हो जाता है। इसकी तुलना हम महासर्वर से कर सकते हैं।

जो विचार हमारे दिमाग में आता है, जो कल्पनाएं उठती हैं, जो करने की इच्छा होती है वह सब किसी न किसी युग में पहले ही हो चुका होता है और इसी वजह से हमारे चित्त में बार-बार उठता है।

सामान्य लोगों के चित्त में पुरातन सूक्ष्म तत्वों और विचारों का प्रवाह बना रहता है जबकि थोड़े से ऊपर उठे हुए लोगों के लिए कल्पनाओं के नवीन आयामों का प्रकटीकरण हो सकता है क्योंकि इन लोगों को भगवान और नियंता अपना प्रतिनिधि मानता है और इनके माध्यम से कुछ करवाना चाहता है।

 कई बार किसी एक इंसान के मन में सदियों पहले कोई विचार उठा और उसकी तरंग ब्रह्माण्ड में पहुंचकर स्थिर हो गई। इसके बाद जब भी उसी किस्म का कोई इंसान बाद के  किसी युग में पैदा होगा और उस दिशा में काम करेेगा, अब तक पैदा हुए सूक्ष्म विचारों का संजाल उसके दिमाग में स्वतः आ जाता है और वह इनसे प्रेरणा पाकर आगे बढ़ता है।

हमारे जीवन में अधिकांश कल्पनाएं वे ही आती  हैं जो बीते युगों में साकार हो चुकी होती हैं। हम थोड़ा दिमाग पर जोर दें तो कभी यह कल्पना हमें क्यों नहीं होती कि दुनिया सर के बल चले और पाँव ऊपर हों। क्योंकि ऎसा बीते युग में कभी हुआ ही नहीं है।

हम अपने बारे में कुछ भी बोलें, कहें या लिखें अथवा सुनें या फिर और किसी के बारे में, सभी प्रकार के सूक्ष्म विचारों की तरंगें किसी न किसी साँचें में ब्रह्माण्ड के रिकार्डिंग रूम में जाकर संग्रहित हो जाती हैंं। इनका कभी क्षय नहीं होता, न इनकी मौलिकता में कोई परिवर्तन होता है।

इसलिए यह न समझें कि हमने जो कुछ किया व कहा है, वह कहीं संधारित नहीं है। कोई इसकी रिकार्डिंंक भले न करे,तीसरी शक्ति हर अक्षर, भाव और मुद्रा तथा इसके पीछे छिपे हुए रहस्य या उद्देश्य की हूबहू रिकाडिर्ंंग अवश्य करती है।

अक्षर ब्रह्म है और इसका कभी नाश नहीं होता। हमारे कर्मों का लेखा-जोखा, व्यक्तित्व का मूल्यांकन केवल कपड़ों और चेहरों या चमक-दमक, पद, प्रतिष्ठा, लोकप्रियता या वैभव, रुतबा या दूसरों पर प्रभाव से नहीं होता बल्कि हमारे द्वारा व्यक्त किए गए विचारों और कर्मों से होता है।

हमारा अंतिम समय पूरा हो चुकने के बाद दोनों पलड़ों को देखा जाता है और उसी के अनुरूप निर्णय किया जाता है। इसलिए कहने, सुनने, लिखने और बोलने को मात्र क्रिया समझकर बेफिक्र न हो जाएं, मन, वचन और कर्म में शुचिता भाव लाएं और सदैव अच्छे ही अच्छे विचार रखें, नकारात्मक चिन्तन को उन लोगों के लिए छोड़ रखें  जो लोग विघ्नसंतोषी, आसुरी भाव वाले और इंसान की खाल में नरपिशाच हैं।

सूक्ष्म स्तर पर सतर्कता के साथ श्रेष्ठ और सद विचारों को अपनाएँ, ब्रह्माण्ड के भण्डार यानि की सर्वर में पैशाचिक वायरसों और नकारात्मक विचारों की बजाय श्रेष्ठ विचारों को स्थापित करें।

सूक्ष्म और स्थूल दोनों ही स्तर पर वैचारिक पवित्रता, सादगी, माधुर्य और सकारात्मक भाव रखें। सकारात्मक विचारों  की चादर नकारात्मकता पर सदैव हावी हो सकती है बशर्तें की हम सब ईमानदारी से प्रयास करें।

ऎसा हम सभी कर लें तो पूरा परिवेश अपने आप बदला जा सकता है।  हम रोशनी चाहते हैं या अंधकार, यह  हम पर निर्भर है। संकीर्णताओं को त्यागें, ब्रह्माण्डाकार वृत्ति को अपनाएं और दुनिया के लिए इस प्रकार से उपयोगी बनें कि सदियों तक हमारा कर्मयोग सुगंध देता रहे, प्रेरणा संचार करता रहे।

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