- November 18, 2015
बिजली क्षेत्र में “उदय “समस्या का समाधान नही – विनोद कुमार गुप्ता
1. बिजली बोर्ड का 75 फीसदी घाटा राज्य को झेलना होगा ।
2. 25 फीसदी घाटे के लिए बोर्ड बॉन्ड जारी ।
3. डिस्कॉम कंपनियों के कर्ज के 75 फीसदी हिस्से का अधिग्रहण ।
4. चोरी, भ्रष्टाचार और मुफ्त बिजली वितरण के कारण निगम रसातल में ।
5. डिस्कॉम लगभग 64,000 करोड़ रुपये की वार्षिक घाटे में ।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बिजली मंत्रालय द्वारा पेश की गई नई योजना “उदय ” को अपनी मंजूरी दे दी है। सरकार के अनुसार “उदय ” पूरे बिजली क्षेत्र भर में सुधार की प्रक्रिया को तेज करेगा और बिजली सभी के लिए सुलभ सस्ती और उपलब्ध सुनिश्चित करेगा। पर लगता है यह सब ‘नई बोतल में पुरानी शराब’ डालने का प्रयास किया जा रहा है।
इस स्कीम का मकसद 3 साल से घाटे में चल रहे राज्य बिजली बोर्डों को फायदे में लाना है। नई स्कीम के तहत बिजली बोर्ड का 75 फीसदी घाटा राज्य को झेलना होगा जबकि बाकी 25 फीसदी घाटे के लिए बोर्ड बॉन्ड जारी कर पाएंगे। राज्य 30 सितंबर 2015 तक के डिस्कॉम कंपनियों के कर्ज के 75 फीसदी हिस्से का अधिग्रहण कर लेंगे। डिस्कॉम कंपनियों के कर्ज का 50 फीसदी हिस्सा 2015-16 में लिया जाएगा तथा 25 फीसदी हिस्सा 2016-17 में लिया जाएगा।
सरकार के अनुसार “उदय ” डिस्कॉम कंपनियों को अगले दो से तीन वर्ष में नुकसान से उबरने का अवसर देने का तरीका है। इस में डिस्काम की संचालनगत कुशलताओं को बेहतर बनाना, बिजली की लागत में कमी, डिस्कॉम कंपनियों की ब्याज लागत में कमी एवं राज्य वित्तों के साथ समन्वय के जरिये डिस्कॉम कंपनियों पर वित्तीय अनुशासन थोपना शामिल है ।
बिजली मंत्रालय बिजली वितरण कंपनियों के 4 लाख करोड़ रुपये के ऋण के साथ निपटने के लिए एक वित्तीय पुनर्गठन के साथ बाहर आ गया है। ऋण का 70% भार आठ राज्यों, अर्थात्, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, झारखंड, बिहार और तेलंगाना में डिस्कॉंम कंपनियों द्वारा लिया गया है।
डिस्कॉम लगभग 64,000 करोड़ रुपये की वार्षिक घाटे में चल रहे हैं और कैश की कमी का सामना कर रहे हैं । इस घाटे का करीब 40 फीसदी हिस्स तकनीकी और वाणिज्यिक घाटों की वजह से है जबकि शेष इसलिए कि उनका टैरिफ बिजली की बढ़ती लागत से कदमताल नहीं कर सका।
सितंबर, 2012 में भी UPA सरकार ने डिस्कॉम के लिए एक वित्तीय पुनर्गठन योजना कि घोषणा की थी और कुछ राज्यों ने इस वित्तीय पुनर्गठन योजना को चुना। लेकिन उनके प्रदर्शन पर नजर रखने के लिए जगह में कोई व्यवस्था नहीं थी। इस लिए सभी राज्यों की वित्तीय हालत फिर खराब हो गयी है।
ये राज्य डिस्कॉम फिर से एक और राहत पैकेज लेने के लिए तैयार कर रहे हैं। काबिले जिक्र है की आठ राज्यों के डिस्कॉम जिनका ऋण सब से अधिक था उन राज्यों का पिछले कुछ वर्षों में टैरिफ वृद्धि उम्मीद के अनुसार नहीं की गई है। आज भी औसत टैरिफ की लागत और आपूर्ति के बीच वर्तमान औसत अंतर प्रति यूनिट 90 पैसे के आसपास है।
बिजली सुधार को लागू कर केंद्र से वित्तीय मदद हासिल करने वाले राज्यों को वर्ष 2018 तक बिजली चोरी से होने वाली हानि घटाकर 15 फीसद करनी होगी। यह कई राज्यों के लिए काफी चुनौतपूर्ण सबक होगा। बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में ट्रांसमिशन व डिस्ट्रीब्यूशन से 35 फीसद से ज्यादा की बिजली की हानि होती है। बिजली सुधार के एजेंडे के मुताबिक केंद्र की स्कीम को स्वीकार करने वाले राज्यों को बिजली की दरों को नियमित अंतराल पर बढ़ाना होगा। इसके बाद ही उन्हें वित्तीय मदद मिलेगी।
देश का बिजली वितरण क्षेत्र की गड़बडिय़ों से मुंह फेरे रखने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार दोनों जिम्मेदार है। राजनीतिक संरक्षण में होने वाली चोरी, भ्रष्टाचार और मुफ्त बिजली वितरण, आदि ने बिजली क्षेत्र को बहुत बुरी स्थिति में पहुंचा दिया है।
निजीकरण को सही ठहराने के लिए कहा जाता है कि ‘मांग व आपूर्ति की इस खाई’ को भरने के लिए भारी निवेश की जरूरत है। सरकार भयानक वित्तीय संकट का सामना कर रही है और बिजली क्षेत्र में लगाने के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं। यह तर्क भी दिया जाता है कि सार्वजनिक क्षेत्र नाकारा है, आधुनिक तकनीक के मामले में ठन-ठन गोपाल है, बदइंतजामी का शिकार है, प्रबंध कौशल में घटिया है और भ्रष्ट है।
दिल्ली में सी.ए.जी. के मसौदे के अनुसार बिजली वितरण में शामिल कंपनियों ने उपभोक्ताओं से 8000 करोड़ रूप्ये लूट लिए हैं, इसका हश्र भी उड़ीसा बिजली नियमन आयोग के आदेश के जैसा ही होगा जिसके तहत उड़ीसा में अनिल अम्बानी की तीन कंपनियों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए थे — वितरण के क्षेत्र में प्रवेश करने वाली कंपनियां भी अपने बढ़े-चढ़े दावों को पूरा करने बूरी तरह से नाकाम रही हैं। न तो वे बिजली तक पहुंच बढ़ा पाई, न वसूली बढ़ा पाईं और न ही संचारण या वितरण के दौरान होने वाले नुकसान पर काबू कर सकीं। अलबत्ता बिजली दरों ने जरूर छलांगे लगाई।
वांछित सुधारों की विफलता के पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। टैरिफ राज्य का विषय है और सब्सिडी का अग्रिम भुगतान किया जाना चाहिए। वित्तीय समस्याओं के चलते कई राज्य सब्सिडी देरी से कर रहे हैं और यह सब डिस्कॉम की अक्षमताओं को बढ़ाते हैं।
सरकार की ओर से एक इच्छाधारी सोच रही है विधेयक पारित हो जाने के बाद बिजली क्षेत्र में सुधार के लिए भविष्य में कोई बाधा का सामना करना पड़ेगा। बिजली बिल में प्रस्तावित संशोधनों, डिस्कॉम की कार्यप्रणाली में कैसे सुधार करेंगे , किसी की कल्पना से परे है। अंत में पूरी कवायद बिजली वितरण प्रणाली के निजीकरण की सुविधा के लिए एक और प्रयास की तरह लगता है।
हर राजनेता और नौकरशाह का बिजली क्षेत्र के समक्ष आ रही समस्याओं के लिए एक अलग समाधान है। सरकार द्वारा लिये गये किसी भी निर्णयों को लागू करने के लिए इंजीनियरों और कर्मचारियों की सहयोग काफी अहमियत रखता है ।
बिजली श्रेत्र में निजीकरण का रास्ता प्रशस्त करने के लिए बिजली (संशोधन) बिल-2014 जिसमें कैरियेज और कंटेंट को भी अलग-अलग किए जाने का प्रस्ताव है, संसद के आगामी सत्र में रखना प्रस्तावित है। इसके पारित हो जाने से जहां बिजली वितरण में कार्य कर रही कंपनियां छोटे – छोटे टुकड़ों में बंट जाएंगी। विद्युत वितरण के मुनाफे वाले क्षेत्रों में निजी कंपनियों का रास्ता प्रशस्त हो जाएगा जिसका सीधा असर बोर्ड कर्मचारियों और प्रदेश के उपभोक्ताओं पर पड़ेगा।
विनोद कुमार गुप्ता
(प्रवक्ता)
अखिल भारतीय विद्युत अभियंता संघ,कुरुक्षेत्र