- October 21, 2022
83 प्रतिशत भारतीय जनता चाहती है जलवायु परिवर्तन पर सरकारी जागरूकता कार्यक्रम
इस सर्वे में शामिल 64% लोगों का कहना है कि भारत सरकार को ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए और अधिक प्रयास करने चाहिए
लखनऊ (निशांत सक्सेना )—- एक ताज़ा सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत की 80 फीसद से ऊपर जनता ग्लोबल वार्मिंग से चिंतित है और सरकार से उसके खिलाफ अधिक कार्यवाही की मांग कर रही है।
इतना ही नहीं, सर्वे में शामिल 74 फीसद लोग मानते हैं कि उन्होने निजी तौर पर ग्लोबल वार्मिंग और बदलती जलवायु के असर को महसूस किया है।
दरअसल इन बातों का खुलासा हुआ है आज जारी येल युनिवेर्सिटी के क्लाइमेट चेंज कम्यूनिकेशन प्रोग्राम और सी वोटर इंटरनेशनल द्वारा किए गए एक सर्वे के नतीजों में। इन दोनों ही संस्थाओं ने साल 2011 में भी ऐसा एक सर्वे किया था और औजूड़ा सर्वे उसी सर्वे के सापेक्ष किया गया है।
“क्लाइमेट चेंज इन द इंडियन माइंड, 2022” शीर्षक वाली इस सर्वे रिपोर्ट में पाया गया कि भारत में 84% लोग कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग हो रही है (2011 से 15 प्रतिशत अधिक), 57% लोगों का कहना है कि यह ज्यादातर मानवीय गतिविधियों के कारण होता है, और 74% लोग कहते हैं कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से इन प्रभावों का अनुभव किया है (2011 से +24 प्रतिशत अधिक)। साथ ही, भारत में 81% लोग ग्लोबल वार्मिंग से चिंतित हैं, जिनमें 50% लोग “बहुत चिंतित” हैं (2011 से +30 प्रतिशत अधिक) और 49% लोग सोचते हैं कि भारत में लोग पहले से ही ग्लोबल वार्मिंग (2011 से +29 प्रतिशत) का नुकसान झेल रहे हैं।
इस सब से इतर, भारत में केवल आधे लोगों (52%) का कहना है कि वे महीने में कम से कम एक बार मीडिया में ग्लोबल वार्मिंग के बारे में सुनते हैं।
इस बारे में येल विश्वविद्यालय के डॉ. एंथनी लीसेरोविट्ज़ कहते हैं, ” रिकॉर्ड स्तर की हीटवेव हो या गंभीर बाढ़ या फिर तेज तूफान, भारत पहले से ही जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों का सामना कर रहा है। लेकिन बावजूद इसके भारत में अभी भी बहुत से लोग ग्लोबल वार्मिंग के बारे में ज्यादा नहीं जानते। उन्हें बस इतना पता है कि जलवायु बदल रही है और उन्होने व्यक्तिगत रूप से उन प्रभावों का अनुभव किया है।”
सर्वे कि कुछ खास बातें:
· सर्वे में शामिल 64% लोगों का कहना है कि भारत सरकार को ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए और अधिक प्रयास करने चाहिए।
· 55% का कहना है कि देश को अन्य देशों के कार्य करने की प्रतीक्षा किए बिना अपने उत्सर्जन को तुरंत कम करना चाहिए।
· 83% सभी लोगों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग के बारे में सिखाने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए।
· 82% लोग स्थानीय समुदायों को स्थानीय जल आपूर्ति बढ़ाने के लिए चेक डैम बनाने के लिए प्रोत्साहित करने कि बात करते हैं।
· 69% लोग वन क्षेत्रों के संरक्षण या विस्तार का समर्थन करते हैं, भले ही इसका मतलब कृषि या आवास के लिए कम भूमि का उपलब्ध होना हो।
· 66% जनता कहती है कि अब आवश्यकता है ऐसी आटोमोबाइल तकनीकों की जो अधिक ईंधन कुशल हों, भले ही इससे कारों और बस किराए की लागत बढ़ जाए।
· 62% सोचते हैं कि कुल मिलाकर, ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए कार्यवाही करने से या तो आर्थिक विकास में सुधार होगा और नई नौकरियां (45%) उपलब्ध होंगी या आर्थिक विकास या नौकरियों (17%) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। केवल 19 फीसदी सोचते हैं कि इससे आर्थिक विकास कम होगा और नौकरियों की लागत घटेगी।
· 59% का मानना है कि भारत को ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग बढ़ाना चाहिए, जबकि केवल 13% का मानना है कि भारत को जीवाश्म ईंधन के उपयोग में वृद्धि करनी चाहिए।
इस संदर्भ में ऑकलैंड विश्वविद्यालय के डॉ. जगदीश ठक्कर कहते हैं, “भारतीय जनता जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्यवाही का पुरजोर समर्थन करती है। और महत्वपूर्ण रूप से, अधिकांश जनता देश की बिजली आपूर्ति के लिए जीवाश्म ईंधन के मुक़ाबले रिन्यूबल एनेर्जी को अधिक महत्व देती है।”
सीवोटर इंटरनेशनल के संस्थापक और निदेशक यशवंत देशमुख कहते हैं, “ट्रेंडलाइन स्पष्ट हैं। पिछले एक दशक में, भारतीय जनता जलवायु परिवर्तन और जलवायु नीतियों को लेकर अधिक चिंतित हो गयी है और चाहती है कि भारत सरकार जलवायु परिवर्तन पर एक वैश्विक नेता बने।”
अक्टूबर 2021 से जनवरी 2022 के बीच हुए इस सर्वे में 4,619 भारतीय वयस्क (18+) शामिल थे।