75वें स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश— राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द

75वें स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश— राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द

मेरे प्यारे देशवासियो,

नमस्कार!

देश-विदेश में रहने वाले सभी भारतीयों को स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं! यह दिन हम सभी के लिए अत्यंत हर्ष और उल्लास का दिन है। इस वर्ष के स्वाधीनता दिवस का विशेष महत्व है क्योंकि इसी वर्ष से हम सब अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष में आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। इस ऐतिहासिक अवसर पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई!

स्वाधीनता दिवस हमारे लिए पराधीनता से मुक्ति का त्योहार है। कई पीढ़ियों के ज्ञात और अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष से हमारी आज़ादी का सपना साकार हुआ था। उन सभी ने त्याग व बलिदान के अनूठे उदाहरण प्रस्तुत किए। उनके शौर्य और पराक्रम के बल पर ही आज हम और आप आज़ादी की सांस ले रहे हैं। मैं उन सभी अमर सेनानियों की पावन स्मृति को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।
अनेक देशों की तरह हमारे राष्ट्र को भी, विदेशी हुकूमत के दौरान बहुत अन्याय और अत्याचार सहने पड़े। परंतु भारत की विशेषता यह थी कि गांधीजी के नेतृत्व में हमारा स्वाधीनता आंदोलन सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित रहा। उन्होंने तथा अन्य सभी राष्ट्र-नायकों ने भारत को औपनिवेशिक शासन से मुक्त करने का मार्ग तो दिखाया ही, साथ ही राष्ट्र के पुनर्निर्माण की रूपरेखा भी प्रस्तुत की। उन्होंने भारतीय जीवन-मूल्यों और मानवीय गरिमा को पुनः स्थापित करने के लिए भी भरपूर प्रयास किए।

अपने गणतन्त्र की विगत 75 वर्षों की यात्रा पर जब हम नजर डालते हैं तो हमें यह गर्व होता है कि हमने प्रगति पथ पर काफी लंबी दूरी तय कर ली है। गांधीजी ने हमें यह सिखाया है कि गलत दिशा में तेजी से कदम बढ़ाने से अच्छा है कि सही दिशा में धीरे ही सही लेकिन सधे हुए कदमों से आगे बढ़ा जाए। अनेक परम्पराओं से समृद्ध भारत के सबसे बड़े और जीवंत लोकतन्त्र की अद्भुत सफलता को विश्व समुदाय सम्मान के साथ देखता है।
प्यारे देशवासियो,

हाल ही में संपन्न टोक्यो ओलंपिक में हमारे खिलाड़ियों ने अपने शानदार प्रदर्शन से देश का गौरव बढ़ाया है। भारत ने ओलंपिक खेलों में अपनी भागीदारी के 121 वर्षों में सबसे अधिक मेडल जीतने का इतिहास रचा है। हमारी बेटियों ने अनेक बाधाओं को पार करते हुए खेल के मैदानों में विश्व स्तर की उत्कृष्टता हासिल की है। खेल-कूद के साथ-साथ जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी और सफलता में युगांतरकारी परिवर्तन हो रहे हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों से लेकर सशस्त्र बलों तक, प्रयोगशालाओं से लेकर खेल के मैदानों तक, हमारी बेटियां अपनी अलग पहचान बना रही हैं। बेटियों की इस सफलता में मुझे भविष्य के विकसित भारत की झलक दिखाई देती है। मैं हर माता-पिता से आग्रह करता हूं कि वे ऐसी होनहार बेटियों के परिवारों से शिक्षा लें और अपनी बेटियों को भी आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करें।
पिछले साल की तरह, महामारी के कारण, इस वर्ष भी स्वतंत्रता दिवस समारोह बड़े पैमाने पर नहीं मनाए जा सकेंगे लेकिन हम सबके हृदय में हरदम भरपूर उत्साह बना हुआ है। हालांकि महामारी की तीव्रता में कमी आई है लेकिन कोरोना-वायरस का प्रभाव अभी समाप्त नहीं हुआ है। इस वर्ष आई महामारी की दूसरी लहर के विनाशकारी प्रभाव से हम अभी तक उबर नहीं पाए हैं। पिछले वर्ष, सभी लोगों के असाधारण प्रयासों के बल पर, हम संक्रमण के प्रसार पर काबू पाने में सफल रहे थे। हमारे वैज्ञानिकों ने बहुत ही कम समय में वैक्सीन तैयार करने का कठिन काम सम्पन्न कर लिया। इसलिए, इस वर्ष के आरंभ में हम सब विश्वास से भरे हुए थे क्योंकि हमने इतिहास का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया था। फिर भी, कोरोना-वायरस के नए रूपों और अन्य अप्रत्याशित कारणों के परिणाम-स्वरूप हमें दूसरी लहर का भयावह प्रकोप झेलना पड़ा। मुझे इस बात का गहरा दुख है कि दूसरी लहर में बहुतेरे लोगों की प्राण रक्षा नहीं की जा सकी और बहुत से लोगों को भारी कष्ट सहने पड़े। यह अभूतपूर्व संकट का समय था। मैं, पूरे देश की ओर से, आप सभी पीड़ित परिवारों के दुख में, बराबर का भागीदार हूं।
यह वायरस एक अदृश्य व शक्तिशाली शत्रु है जिसका विज्ञान द्वारा सराहनीय गति के साथ सामना किया जा रहा है। हमें इस बात का संतोष है कि इस महामारी में हमने जितने लोगों की जानें गंवाई हैं, उससे अधिक लोगों की प्राण रक्षा कर सके हैं। एक बार फिर, हम अपने सामूहिक संकल्प के बल पर ही दूसरी लहर में कमी देख पा रहे हैं। हर तरह के जोखिम उठाते हुए, हमारे डॉक्टरों, नर्सों, स्वास्थ्य कर्मियों, प्रशासकों और अन्य कोरोना योद्धाओं के प्रयासों से कोरोना की दूसरी लहर पर काबू पाया जा रहा है।
कोविड की दूसरी लहर से हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे पर बहुत दबाव पड़ा है। सच तो यह है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं समेत, किसी भी देश का बुनियादी ढांचा, इस विकराल संकट का सामना करने में समर्थ सिद्ध नहीं हुआ। हमने स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए युद्ध-स्तर पर प्रयास किए। देश के नेतृत्व ने इस चुनौती का डटकर सामना किया। केंद्र सरकार के प्रयासों के साथ-साथ राज्य सरकारों, निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सुविधाओं, गैर सरकारी संगठनों तथा अन्य समूहों ने सक्रिय योगदान किया। इस असाधारण अभियान में, कई देशों ने, उदारता से, अनिवार्य वस्तुएं उसी तरह साझा कीं, जैसे भारत ने बहुत से देशों को दवाइयां, उपकरण और वैक्सीन उपलब्ध कराई थी। इस सहायता के लिए मैं विश्व समुदाय का आभार प्रकट करता हूं।
इन सभी प्रयासों के परिणाम-स्वरूप, काफी हद तक, सामान्य स्थिति बहाल हो गई है और अब हमारे अधिकांश देशवासी राहत की सांस ले रहे हैं। अब तक के अनुभव से यही सीख मिली है कि अभी हम सबको लगातार सावधानी बरतने की जरूरत है। इस समय वैक्सीन हम सबके लिए विज्ञान द्वारा सुलभ कराया गया सर्वोत्तम सुरक्षा कवच है। हमारे देश में चल रहे विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान के तहत अब तक 50 करोड़ से अधिक देशवासियों को वैक्सीन लग चुकी है। मैं सभी देशवासियों से आग्रह करता हूं कि वे प्रोटोकॉल के अनुरूप जल्दी से जल्दी वैक्सीन लगवा लें और दूसरों को भी प्रेरित करें।
मेरे प्यारे देशवासियो,

इस महामारी का प्रभाव अर्थव्यवस्था के लिए उतना ही विनाशकारी है, जितना लोगों के स्वास्थ्य के लिए। सरकार गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लोगों के साथ-साथ छोटे और मध्यम उद्योगों की समस्याओं के विषय में भी चिंतित रही है। सरकार, उन मजदूरों और उद्यमियों की जरूरतों के प्रति भी संवेदनशील रही है जिन्हें लॉकडाउन और आवागमन पर प्रतिबंधों के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। उनकी जरूरतों को समझते हुए सरकार ने पिछले वर्ष उन्हें राहत प्रदान करने के लिए बहुत से कदम उठाए थे। इस वर्ष भी सरकार ने मई और जून में करीब 80 करोड़ लोगों को अनाज उपलब्ध कराया। अब यह सहायता दीपावली तक के लिए बढ़ा दी गई है। इसके अलावा, कोविड से प्रभावित कुछ उद्यमों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने हाल ही में 6 लाख 28 हजार करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की है। यह तथ्य विशेष रूप से संतोषजनक है कि चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार के लिए एक वर्ष की अवधि में ही तेईस हजार दो सौ बीस करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
मुझे इस बात की खुशी है कि सभी बाधाओं के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में – विशेष रूप से कृषि के क्षेत्र में – बढ़ोतरी जारी रही है। हाल ही में, कानपुर देहात जिले में स्थित अपने पैतृक गांव परौंख की यात्रा के दौरान, मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन को सुगम बनाने के लिए बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जा रहा है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच की मनोवैज्ञानिक दूरी अब पहले की तुलना में काफी कम हो गई है। मूलतः, भारत गांवों में ही बसता है, इसलिए उन्हें विकास के पैमानों पर पीछे नहीं रहने दिया जा सकता। इसीलिए, प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि सहित, हमारे किसान भाई-बहनो के लिए विशेष अभियानों पर बल दिया जा रहा है।
ये सभी प्रयास आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना के अनुरूप हैं। हमारी अर्थव्यवस्था में निहित विकास की क्षमता पर दृढ़ विश्वास के साथ सरकार ने रक्षा, स्वास्थ्य, नागरिक उड्डयन, विद्युत तथा अन्य क्षेत्रों में निवेश को और अधिक सरल बनाया है। सरकार द्वारा पर्यावरण के अनुकूल, ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों, विशेष रूप से सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के नवीन प्रयासों की विश्वव्यापी प्रशंसा हो रही है। जब ‘ईज़ ऑफ डुइंग बिजनेस’ की रैंकिंग में सुधार होता है, तब उसका सकारात्मक प्रभाव देशवासियों की ‘ईज़ ऑफ लिविंग’ पर भी पड़ता है। इसके अलावा जन कल्याण की योजनाओं पर विशेष ज़ोर दिया जा रहा है। उदाहरण के लिए 70,000 करोड़ रुपये की क्रेडिट-लिंक्ड सब्सिडी योजना की बदौलत, अपना खुद का घर होने का सपना अब साकार हो रहा है। एग्रीकल्चरल मार्केटिंग में किए गए अनेक सुधारों से हमारे अन्नदाता किसान और भी सशक्त होंगे और उन्हें अपने उत्पादों की बेहतर कीमत प्राप्त होगी। सरकार ने प्रत्येक देशवासी की क्षमता को विकसित करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं जिनमें से कुछ का ही उल्लेख मैंने किया है।
प्यारे देशवासियो,

अब जम्मू-कश्मीर में नव-जागरण दिखाई दे रहा है। सरकार ने लोकतंत्र और कानून के शासन में विश्वास रखने वाले सभी पक्षों के साथ परामर्श की प्रक्रिया शुरू कर दी है। मैं जम्मू-कश्मीर के निवासियों, विशेषकर युवाओं से इस अवसर का लाभ उठाने और लोकतांत्रिक संस्थाओं के माध्यम से अपनी आकांक्षाओं को साकार करने के लिए सक्रिय होने का आग्रह करता हूं।
सर्वांगीण विकास के प्रभाव से, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का कद ऊंचा हो रहा है। यह बदलाव, प्रमुख बहुपक्षीय मंचों पर हमारी प्रभावी भागीदारी में तथा अनेक देशों के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ बनाने में परिलक्षित हो रहा है।
प्यारे देशवासियो,

पचहत्तर साल पहले जब भारत ने आजादी हासिल की थी, तब अनेक लोगों को यह संशय था कि भारत में लोकतंत्र सफल नहीं होगा। ऐसे लोग शायद इस तथ्य से अनभिज्ञ थे कि प्राचीन काल में, लोकतंत्र की जड़ें इसी भारत भूमि में पुष्पित-पल्लवित हुई थीं। आधुनिक युग में भी भारत, बिना किसी भेद-भाव के सभी वयस्कों को मताधिकार देने में अनेक पश्चिमी देशों से आगे रहा। हमारे राष्ट्र-निर्माताओं ने जनता के विवेक में अपनी आस्था व्यक्त की और ‘हम भारत के लोग’ अपने देश को एक शक्तिशाली लोकतंत्र बनाने में सफल रहे हैं।
हमारा लोकतन्त्र संसदीय प्रणाली पर आधारित है, अतः संसद हमारे लोकतन्त्र का मंदिर है। जहां जनता की सेवा के लिए, महत्वपूर्ण मुद्दों पर वाद-विवाद, संवाद और निर्णय करने का सर्वोच्च मंच हमें उपलब्ध है। यह सभी देशवासियों के लिए बहुत गर्व की बात है कि हमारे लोकतंत्र का यह मंदिर निकट भविष्य में ही एक नए भवन में स्थापित होने जा रहा है। यह भवन हमारी रीति और नीति को अभिव्यक्त करेगा। इसमें हमारी विरासत के प्रति सम्मान का भाव होगा और साथ ही समकालीन विश्व के साथ कदम मिलाकर चलने की कुशलता का प्रदर्शन भी होगा। स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर इस नए भवन के उदघाटन को विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र की विकास यात्रा में एक ऐतिहासिक प्रस्थान बिन्दु माना जाएगा।
सरकार ने इस विशेष वर्ष को स्मरणीय बनाने के लिए कई योजनाओं का शुभारम्भ किया है। ‘गगनयान मिशन’ उन अभियानों में विशेष महत्व रखता है। इस मिशन के तहत भारतीय वायु सेना के कुछ पायलट विदेश में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। जब वे अंतरिक्ष में उड़ान भरेंगे, तो भारत मानव-युक्त अंतरिक्ष मिशन को अंजाम देने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। इस प्रकार, हमारी आकांक्षाओं की उड़ान किसी प्रकार की सीमा में बंधने वाली नहीं है।
फिर भी, हमारे पैर यथार्थ की ठोस जमीन पर टिके हुए हैं। हमें यह एहसास है कि आज़ादी के लिए मर-मिटने वाले स्वाधीनता सेनानियों के सपनों को साकार करने की दिशा में हमें अभी काफी आगे जाना है। वे सपने, हमारे संविधान में, ‘न्याय’, ‘स्वतन्त्रता’, ‘समता’ और ‘बंधुता’ इन चार सारगर्भित शब्दों द्वारा स्पष्ट रूप से समाहित किए गए हैं। असमानता से भरी विश्व व्यवस्था में और अधिक समानता के लिए तथा अन्यायपूर्ण परिस्थितियों में और अधिक न्याय के लिए, दृढ़तापूर्वक प्रयास करने की आवश्यकता है। न्याय की अवधारणा बहुत व्यापक हो गयी है जिसमें आर्थिक और पर्यावरण से जुड़ा न्याय भी शामिल है। आगे की राह बहुत आसान नहीं है। हमें कई जटिल और कठिन पड़ाव पार करने होंगे, लेकिन हम सबको असाधारण मार्गदर्शन उपलब्ध है। यह मार्गदर्शन विभिन्न स्रोतों से हमें मिलता है। सदियों पहले के ऋषि-मुनियों से लेकर आधुनिक युग के संतों और राष्ट्र-नायकों तक हमारे मार्गदर्शकों की अत्यंत समृद्ध परंपरा की शक्ति हमारे पास है। अनेकता में एकता की भावना के बल पर, हम दृढ़ता से, एक राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ रहे हैं।
विरासत में मिली हमारे पूर्वजों की जीवन-दृष्टि, इस सदी में, न केवल हमारे लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए सहायक सिद्ध होगी। आधुनिक औद्योगिक सभ्यता ने मानव जाति के सम्मुख गम्भीर चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। समुद्रों का जल-स्तर बढ़ रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं और पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है। इस प्रकार, जलवायु परिवर्तन की समस्या हमारे जीवन को प्रभावित कर रही है। हमारे लिए गर्व की बात है कि भारत ने, न केवल पेरिस जलवायु समझौते का पालन किया है, बल्कि जलवायु की रक्षा के लिए तय की गई प्रतिबद्धता से भी अधिक योगदान कर रहा है। फिर भी मानवता को विश्व स्तर पर अपने तौर-तरीके बदलने की सख्त जरूरत है। इसीलिए भारतीय ज्ञान परंपरा की ओर दुनिया का रुझान बढ़ता जा रहा है; ऐसी ज्ञान परंपरा जो वेदों और उपनिषदों के रचनाकारों द्वारा निर्मित की गई, रामायण और महाभारत में वर्णित की गई, भगवान महावीर, भगवान बुद्ध तथा गुरु नानक द्वारा प्रसारित की गई, और महात्मा गांधी जैसे लोगों के जीवन में परिलक्षित हुई।
गांधीजी ने कहा था कि प्रकृति के अनुरूप जीने की कला सीखने के लिए प्रयास करना पड़ता है, लेकिन एक बार जब आप नदियों और पहाड़ों, पशुओं और पक्षियों के साथ संबंध बना लेते हैं, तो प्रकृति अपने रहस्यों को आप के सामने प्रकट कर देती है। आइए, हम संकल्प लें कि गांधी जी के इस संदेश को आत्मसात करेंगे और जिस भारत भूमि पर हम रहते हैं, उसके पर्यावरण के संरक्षण के लिए त्याग भी करेंगे।
हमारे स्वतन्त्रता सेनानियों में देश-प्रेम और त्याग की भावना सर्वोपरि थी। उन्होंने अपने हितों की चिंता न करते हुए हर प्रकार की चुनौतियों का सामना किया। मैंने देखा है कि कोरोना के संकट का सामना करने में भी लाखों लोगों ने अपनी परवाह न करते हुए मानवता के प्रति निस्वार्थ भाव से दूसरों के स्वास्थ्य और प्राणों की रक्षा के लिए भारी जोखिम उठाए हैं। ऐसे सभी कोविड योद्धाओं की मैं हृदय से सराहना करता हूं। अनेक कोविड योद्धाओं को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। मैं उन सबकी स्मृति को नमन करता हूं।
हाल ही में, ‘कारगिल विजय दिवस’ के उपलक्ष में, मैं लद्दाख स्थित ‘कारगिल युद्ध स्मारक – द्रास’ में अपने बहादुर जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए जाना चाहता था। लेकिन रास्ते में, मौसम खराब हो जाने की वजह से, मेरा उस स्मारक तक जाना संभव नहीं हो पाया। वीर सैनिकों के सम्मान में, उस दिन मैंने बारामूला में ‘डैगर वॉर मेमोरियल’ पर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। वह मेमोरियल उन सभी सैनिकों की स्मृति में बनाया गया है जिन्होंने अपने कर्तव्य-पथ पर सर्वोच्च बलिदान दिया है। उन जांबाज़ योद्धाओं की वीरता और त्याग की सराहना करते हुए मैंने देखा कि उस युद्ध स्मारक में एक आदर्श-वाक्य अंकित है: “मेरा हर काम, देश के नाम।
यह आदर्श-वाक्य हम सभी देशवासियों को मंत्र के रूप में आत्मसात कर लेना चाहिए तथा राष्ट्र के विकास के लिए पूरी निष्ठा व समर्पण से कार्य करना चाहिए। मैं चाहूंगा कि राष्ट्र और समाज के हित को सर्वोपरि रखने की इसी भावना के साथ हम सभी देशवासी, भारत को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने के लिए एकजुट हो जाएं।

मेरे प्यारे देशवासियो,

मैं विशेष रूप से भारतीय सशस्त्र बलों के वीर जवानों की सराहना करता हूं, जिन्होंने हमारी स्वतंत्रता की रक्षा की है, और आवश्यकता पड़ने पर सहर्ष बलिदान भी दिया है। मैं सभी प्रवासी भारतीयों की भी प्रशंसा करता हूं। उन्होंने जिस देश में भी घर बसाया है, वहां अपनी मातृभूमि की छवि को उज्ज्वल बनाए रखा है।
मैं एक बार फिर आप सभी को भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर बधाई देता हूं। यह वर्षगांठ मनाते हुए मेरा हृदय सहज ही आज़ादी के शताब्दी वर्ष 2047 के सशक्त, समृद्ध और शांतिपूर्ण भारत की परिकल्पना से भरा हुआ है।
मैं यह मंगलकामना करता हूं कि हमारे सभी देशवासी कोविड महामारी के प्रकोप से मुक्त हों तथा सुख और समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ें।
एक बार पुनः आप सभी को मेरी शुभकामनाएं!

धन्यवाद,

जय हिन्द!

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