• February 12, 2016

63 किलोमीटर का प्रवाह सरस्वती हमारी प्राचीन संस्कृति का हिस्सा है, जिसे हमें सहेजना है-उपायुक्त श्री निखिल गजराज

63 किलोमीटर का प्रवाह सरस्वती हमारी प्राचीन संस्कृति का हिस्सा है, जिसे हमें सहेजना है-उपायुक्त श्री निखिल गजराज
कैथल -(राजकुमार अग्रवाल)———————— उपायुक्त श्री निखिल गजराज ने कहा कि सरस्वती हमारी प्राचीन संस्कृति का हिस्सा है, जिसे हमें सहेजना है। हमें सरस्वती की जानकारी को जन-जन तक पहुंचाना है, ताकि लोगों को पवित्र  सरस्वती नदी के बारे में जानकारी हासिल हो सके।DSCN0050
इस नदी का जिला में 63 किलोमीटर का प्रवाह रहा है। प्रदेश सरकार द्वारा हरियाणा राज्य सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड का गठन किया गया है। उपायुक्त श्री निखिल गजराज सरस्वती   महोत्सव के अवसर पर स्थानीय भाई उदय सिंह किला परिसर में सरस्वती पर आधारित प्रदर्शनी का उद्घाटन तथा अवलोकन करने के उपरांत उपस्थितगण से बातचीत कर रहे थे।
उन्होंने सांस्कृतिक संध्या की शुरूआत दीप प्रज्ज्वलन से की  तथा सरस्वती वंदना में भी शामिल हुए। इस मौके पर पुलिस अधीक्षक श्री कृष्ण मुरारी, अतिरिक्त उपायुक्त श्री जितेंद्र कुमार, उपमंडलाधीश श्रीमती मनदीप कौर, नगराधीश श्री नवीन आहुजा, भाजपा के जिलाध्यक्ष श्री सुभाष हजवाना, श्री  रणधीर गोलन, श्री रवि भूषण गर्ग, राजपाल तंवर, संजय भारद्वाज, सतीश शर्मा, जिला राजस्व अधिकारी श्री दलेल सिंह, तहसीलदार श्री ओपी बिश्रोई सहित विभिन्न विभागों के उच्चाधिकारी मौजूद रहे। इससे पूर्व अतिरिक्त उपायुक्त श्री जितेंद्र  कुमार ने थाना गांव में सरस्वती प्रचार यात्रा का स्वागत किया, जो प्रदर्शनी स्थल पर आकर रुकी।
यह यात्रा 12 फरवरी को कलायत के लिए रवाना होगी।उपायुक्त श्री निखिल गजराज ने कहा कि भाई उदय सिंह किला परिसर में आयोजित  सरस्वती प्रदर्शनी में सिंधु-सरस्वती एवं गंगा नदी घाटियों में अवस्थित कुछ उत्खनित स्थलों को मानचित्र में दर्शाया गया है। सिंधु-सरस्वती तथा गंगा क्षेत्र से वैदिक संस्कृति का विस्तार संपूर्ण भारत में होना भी इस प्रदर्शनी में दर्शाया गया है।
ऋग्वेद में सरस्वती की प्रशंसा अम्बिमे, नदीत मे, देवीतमे अर्थात माताओं में उत्तम, नदियों में उत्तम तथा देवियों में उत्तम एवं सात सहयोगियों वाली, तीन स्त्रोतों से निकली हुई नदियों में सबसे विशाल एवं प्रभावशाली कह कर की गई है, परंतु  महाभारत काल में सरस्वती नदी के निरंतर न बहने का विवरण मिलता है।
इसरो द्वारा लिए गए रिमोट सैंसिंग इमेजिज सरस्वती नदी समूह के प्रवाह, पलायन तथा लोप के पुष्टीकारक वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध करवाती हैं। कैलाश मानसरोवर  झील से सरस्वती नदी की उपनदी सतलुज का उद्गगम, शिवालिक पर्वत श्रंखला में सिरमौर क्षेत्र से सरस्वती नदी का आदिबद्री से उद्गम तथा हिमनदी गढ़वाल से होती हुई सरस्वती नदी में मिलने के तीन स्त्रोतों की पहचान की गई है।
सरस्वती  नदी समूुह एक ओर गंगानदी एवं उसकी सहायक नदियों तथा तथा दूसरी सिंधू नदी समूह से घिरा हुआ है, जिसका वेदों में वर्णन मिलता है।उन्होंने कहा कि ऋग्वेद के एक से 9 मंडलों तक सरस्वती ही सर्वाधिक वंदनीय नदी रही हैं। उत्तर  ऋग्वैदिक साहित्य में गंगा का विवरण सर्वाधिक पवित्र नदी के रूप में हुआ है, जबकि सरस्वती नदी का लगभग लोप हो गया। केवल वर्षा ऋतु में घग्घर एवं हाकड़ा जैसी इसकी कु छ प्राचीन वाहिकाएं पुनर्जीवित हो जाती है।
वस्तुत  हरियाणा, राजस्थान तथा गुजरात के कई स्थानों पर इन वाहिकाओं का भूमीगत जल से संबंध भी स्थापित किया जा चुका है। इस प्रदर्शनी में सरस्वती से जुड़ी जिला कैथल की जानकारियां भी प्रदर्शित की गई है। इसमें थेह पोलड़ में प्राचीन सरस्वती के प्रवाह को दर्शाने के साथ-साथ थेह पोलड़ के समीप उत्खनन से प्राप्त पशु मुर्तियां, मोहरें एवं उसकी छाप प्रदर्शित की गई है। कलायत में कपिलमुनि मंदिर तथा च्यवन गिरि कुंड का सैटेलाईट से मानचित्र दर्शाया गया है।
कलायत  में प्राचीन ईंटों से बने मंदिर का विहंगम दृश्य भी प्रदर्शनी में दर्शाया गया हैी निखिल गजराज ने कहा कि इस प्रदर्शनी में सरस्वती नदी के उद्गम स्थल यमुनानगर के मुगलवाली/आदीबद्री में पानी के जमाव को दर्शाया गया है, जहां से यह  नदी पेहवा, कुरूक्षेत्र, कैथल, फतेहबाद से होते हुए गुजरात के रण मेें प्रवाह दर्शाया गया है।
प्रदर्शनी में आदिबद्री में सरस्वती एवं सोमनदी से उत्खनन से प्राप्त अवशेष, स्तूप का माध्य भाग तथा कर्मकांडीय स्थल दर्शाया गया है। पेहवा के सधौली में उत्खनन से प्राप्त घाट की सीढियों को भी दर्शाया गया है। प्रदर्शनी में मारकंडा तथा अन्य नदियों के प्रवाह को सैटेलाईट के माध्यम से मानचित्र पर दर्शाया गया है।

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