• October 27, 2014

लंदन में पाकिस्तान की चीत्कार ‘मिलियन मार्च’

लंदन में पाकिस्तान की चीत्कार  ‘मिलियन मार्च’

मैडिसन स्क्वायर पर भारत की जयकार के बाद
लंदन में पाकिस्तान का मिलियन मार्च चीत्कार
कश्मीर पर भारत को घेरने आये पाकिस्तानी आपस में ही लड़ पड़े

कश्मीर मुद्दे पर भारत को घेरने चले पाकिस्तान का बहुप्रचारित मिलियन मार्च बुरी तरह नाकाम रहा. लंदन की सड़कों पर पाकिस्तानी गुट आपस में ही भिड़ गये, एक दूसरे के खिलाफ नारेबाजी की, Onkar Photo Blueप्लास्टिक की बोतलें फेंकी और कश्मीर का रोना रोकर लौट गये. 26 अक्तूबर 2014 को पाकिस्तान ने 26 लंदन में मिलियन मार्च का आयोजन किया था. इसकी अगुवाई पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर के पूर्व प्रधानमंत्री रहे बैरिस्टर सुल्तान मेहमूद चौधरी और बिलावल भुट्टो कर रहे थे. कहां तो इस रैली में एक मिलियन से ज्यादा लोगों को जुटाने की बात की गयी थी, लेकिन वहां बमुश्किल महज दो हजार लोग ही जुट पाये. उस पर भी सब आपस में गुत्थमगुत्था हो गये. रैली में आये इमरान खान समर्थकों ने बिलावल भुट्टो पर प्लास्टिक की बोतलें फेंकी और भाग बिल्लो भाग के नारे लगाये.

दरअसल नियंत्रण रेखा और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर भारतीय सेना के हाथों करारी मात खाने और संयुक्त राष्ट्र के इस मामले में दखल देने से इनकार के बाद बौखलाया पाकिस्तान अब ब्रिटेन और ब्रशेल्स के रास्ते भारत पर कूटनीतिक दबाव बनाने का प्रयास कर रहा है. इस मार्च के जरिये पाकिस्तान दुनिया का ध्यान जम्मू-कश्मीर मसले की ओर नये सिरे से आकर्षित करना तो चाहता ही है, साथ ही वह अपने कमजोर पड़ चुके प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की स्थिति मजबूत करने के लिए भी इस मुद्दे को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है. ब्रिटेन की रैली नाकाम होने के बाद भी अब पाकिस्तान ब्रशेल्स में भी इसी तरह के मार्च का आयोजन करने की तैयारी कर रहा है. ब्रशेल्स यूरोपियन यूनियन का मुख्यालय है और यहां कश्मीर में मानवाधिकार हनन का सवाल उठाकर पाकिस्तान यूरोपीय देशों की जनता को बरगलाना चाहता है. वैसे तो पाकिस्तान कश्मीर मसले का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने की कोशिश लगातार करता रहा है, लेकिन ये ताजा कोशिशें हाल के वर्षों में उसके द्वारा की गयी कोशिशों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण और बड़ी हैं.

 

भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली नयी सरकार ने पड़ोसी देशों से संबंध सुधारने की मंशा से ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भी अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया था. इसके साथ ही भारत ने पाकिस्तान से खुलेमन से बातचीत करने की तिथि भी तय कर दी. लेकिन इससे ठीक पहले पाकिस्तान ने नयी दिल्ली में कश्मीर के अलगाववादियों से मुलाकात कर यह जतला दिया कि उसकी नीयत कतई साफ नहीं है. भारत की कोई और पहले की सरकार रही होती तो शायद इस बात का उतना बुरा नहीं मानती. पर विशाल बहुमत से नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चुनकर आयी भारतीय जनता पार्टी की नयी भारत सरकार ने इस मामले पर कड़ा रूख अख्तियार करते हुए पाकिस्तान से निर्धारित बातचीत रद्द कर दी. पाकिस्तान को इससे बड़ा झटका लगा. पहली बार देश को लगा कि अब केन्द्र में एक खुद्दार और ताकतवर सरकार है. देश भर में मोदी के इस निर्णय से लोगों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी. पर पाक भी कहां मानने वाला था. उसने बातचीत के लिए भारत पर दबाव बनाने और अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी का ध्यान आकर्षित करने के लिए जम्मू-कश्मीर से लगी नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम तोड़ते हुए वहां और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर गोलीबारी करनी शुरू कर दी. और उल्टे भारत पर गोलीबारी करने का आरोप लगाते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कश्मीर का मसला संयुक्त राष्ट्र के मंच से भी उठाया और दखल देने की अपील भी की. पर उसकी उम्मीदों के विपरीत न तो संयुक्त राष्ट्र ने और न ही किसी अन्य देश ने उसका समर्थन किया.

 इसके बाद नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तानी गोलाबारी तेज हो गयी. शायद पाक को ये लग रहा होगा कि पहले की तरह उसकी इस गोलाबारी से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान कश्मीर मसले की ओर खिंचेगा और भारत पर वार्ता शुरू करने का दबाव बनेगा. उसको ये भी उम्मीद रही होगी कि पहले की तरह भारत का जवाब सीमित और रक्षात्मक होगा. पर हुआ इसके उलट. भारत ने आक्रामक होकर जवाब दिया. भारत के करारे वार से पाकिस्तान को भारी क्षति हुई तो उसने सैन्य अभियान के महानिदेशकों की दोनों देशों के बाच स्थापित तंत्र के माध्यम से गोलीबारी रोकने और बातचीत करने की अपील की. लेकिन भारत ने साफ कह दिया कि जबतक वह अपनी तरफ से गोलाबारी बंद नहीं करता, उसे जवाब मिलता रहेगा. आखिरकार पाकिस्तानी गोलाबारी बंद तो नहीं हुई है, पर काफी कम जरूर हो गयी है. पाक को मालूम है कि वह भारत को सीधे युद्ध में कभी नहीं हरा सकता. इसीलिए वह भारत में आतंकवाद और प्रॉक्सी वार को बढ़ावा देता रहा है. पर इसमें भी उसे दोहरा नुकसान उठाना पड़ा है. एक तो पाकिस्तान आज खुद के पैदा किये आतंकवादियों का आतंक खुद झेलने को मजबूर है. दूसरे ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में शरण लेकर रहने और उसकी सरज़मीं पर मारे जाने के बाद दुनिया में उसकी साख भी मिट्टी में मिल चुकी है. दरअसल पाकिस्तान एक तरफ तो अमरीका के नेतृत्व वाले आतंकवाद विरोधी गठबंधन में शामिल होकर उसका आर्थिक, सैनिक और रणनीतिक लाभ भी उठाता रहा और साथ ही उसकी आंख में धूल झोंकते हुए अपने ही घर में लादेन जैसे आतंकियों को प्रश्रय भी देता रहा. पर उसके इस दोगले चरित्र को अब दुनिया देख चुकी है. अभी हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और भारत में करगिल घुसपैठ के मास्टरमाइंड जनरल परवेज मुशर्रफ ने एक टीवी चैनल को दिये साक्षात्कार में साफ मान लिया कि उसका देश भारत में आतंकवाद और अलगाववाद को बढ़ावा देता रहा है.

 आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला पाकिस्तान का चेहरा इस कदर बेनकाब हो चुका है कि जब कश्मीर मसले पर पाकिस्तान ने अमरीका और ब्रिटेन से भी दखल देने की गुहार लगायी तो दोनों देशों ने इस मामले में दखल देने से न सिर्फ साफ मना कर दिया, बल्कि यह भी कह दिया कि अब इस मामले में किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं है. इसीलिए अब वह ब्रिटेन और ब्रशेल्स के रास्ते कश्मीर मामले को हवा देने की कोशिश में लगा है. लंदन में मिलियन मार्च आयोजित करने की पाकिस्तान की कोशिशों का भारत ने कड़ा विरोध किया था. विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने ब्रिटेन सरकार से इस मसले पर आधिकारिक रूप से आपत्ति जतायी थी. लेकिन ब्रिटेन की सरकार ने उनके देश में अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देकर इस मार्च को रोकने से इनकार कर दिया. दऱअसल इस आयोजन के पीछे उसकी मंशा कश्मीर मसले पर दुनिया का ध्यान खींचने और भारत पर वार्ता हेतु दबाव बनाने के साथ ही अमरीका के मैडिसन स्क्वायर पर मोदी के स्वागत समारोह से भारत को मिली विश्व प्रतिष्ठा को धूमिल करने की भी थी, पर रैली में उसकी खुद की प्रतिष्ठा खाक में मिल गयी. पाक एक मिलियन लोगों को जुटाने में तो कामयाब नहीं हुआ, पर उसने जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर दुनिया का ध्यान खींचने की एक और नापाक कोशिश जरूर की है. रैली के बाद ब्रिटिश सरकार को एक ज्ञापन देकर कश्मीर में कथित मानवाधिकार हनन का मुद्दा उठाया गया और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के तहत वहां जनमत संग्रह कराने की मांग भी की गयी. इसलिए अब पाकिस्तान की ऐसी हरकतों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जवाब देने के लिए भारत को कूटनीतिक और सामाजिक सक्रियता बढ़ानी होगी. जब भारतवंशी लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वागत करने के लिए अमरीका के मैडिसन स्क्वायर पर ऐतिहासिक जनसभा का आयोजन कर सकते हैं, तो पिछले कई दशकों से आतंकवाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तान की सक्रिय भूमिका और इस क्षेत्र में लगातार अस्थिरता फैलाने की उसकी नापाक हरकतों को उजागर करने के लिए गोलबंद होकर आवाज भी उठा सकते हैं. लेकिन इसकी पहल भारत सरकार को करनी होगी. मैडिसन स्क्वायर पर भारत को मिली विश्व प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए मिलियन मार्च आयोजित करने जा रहे पाक के नापाक मंसूबों को विफल करने और उसे बेनकाब करने के लिए भारत और भारतवंशियों को एकजुट होकर जवाब देना होगा. 

 (लेखक घाटी में आतंक और कारगिल पुस्तक के लेखक और वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे editoronkar@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

संपर्क  – ओंकारेश्वर पाण्डेय
(पूर्व प्रबंधनीय संपादक  i 9 मीडिया
स्थानीय संपादक राष्ट्रीय सहारा , दिल्ली )
F-1 & S-1, 6/155, 
मीडिया एन्क्लेव सैक्टर -6
गाजियाबाद वैशाली 

मो0 – 09910150119)
यूपी – 201012,

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