• November 24, 2015

35 वां अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेला: जीवंत कलात्मक मूर्तियां एवं कृतियां चाहिए, तो राजस्थान मंडप में आइए

35 वां अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेला: जीवंत कलात्मक मूर्तियां एवं कृतियां चाहिए, तो राजस्थान मंडप में आइए

जयपुर -नई दिल्ली के प्रगति मैदान में 14 नवम्बर से 27 नवम्बर तक चलने वाले 35वें अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में इन दिनों राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली और आस-पास के सटे राज्यों के लोगों को अपने आकर्षण में बांध रखा है।
व्यापार मेले में प्रगति मैदान के राजस्थान मंडप अपनी भव्यता और हस्तशिल्प आकर्षण के कारण सभी दर्शकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। विशेषकर मंडप में जयपुर के रेखा आर्ट एण्ड हैंण्डीक्राफ्ट निर्मित मार्बल से बनी संगमरमर के कलात्मक मूर्तियां विशेष आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
जयपुर के हस्तशिल्पी श्री रमेश कुमावत इस बार राजस्थान मंडप के शिल्प आंगन को अपनी बेजोड़ मूर्तियों से रोशन कर रहे हैं। मंडप में मार्बल निर्मित उनकी बेजोड़ कलाकृतियां सभी को बरबस ही अपनी और आकर्षित कर रही हैं।
मंडप में श्री रमेश द्वारा संचालित मार्बल की मूर्तियों के स्टॉल पर कलात्मक मूर्तियां बेच रही श्रीमती रेखा कुमावत ने बताया कि मार्बल की कलात्मक वस्तुओं की कीमत सौ रूपये से लेकर लाखों रूपये तक होती है। उनके स्टॉल पर मूर्तियां और अन्य कलात्मक कृतियां अपनी और खींच रही है।
श्री रमेश ने बताया कि मूर्ति कला के हुनर को नई पीढ़ी तक पहुचाने हेतु इस कला को सिखाने के लिए हमारे द्वारा जयपुर में ग्रामीण हस्तकला कृति विकास कमेटी के नाम से एक गैर सरकारी संगठन चलाया जा रहा है। जहां पर हस्तकला का हुनर सिखाया जाता है। वे मकराना अलवर, किशनगढ़, उदयपुर आदि से संगमरमर मंगवा कर कलात्मक मूर्तियां बनाते हैं। देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाने में उनकी विशेष रूचि और महारत हासिल है। उन्होंने बताया कि मकराना से निकाले गए प्राकृतिक पत्थर से बनायी गई मूर्तियों एवं अन्य उपयोगी सामानों पर 22 कैरेट सोना एवं मीनाकरी का काम हस्तशिल्प कारीगरों द्वारा हाथ से किया जाता है। यह राजस्थान की सालों पुरानी कला है। इस कला से निर्मित मूर्तियों को देश-विदेश के म्यूजियमों एवं शाही घरानों द्वारा खरीदा एवं बेहद सराहा जाता है। पत्थर पर की गई इस कारीगरी से निर्मित इन कलाकारों की कृतियों एवं इनके हुनर को बढ़ावा देने के लिए राजस्थान इम्पोरियम ‘राजस्थली” कलाकारों को सरकारी सहयोग भी प्रदान करता है।
उनकी कला कृतियों में गार्डन एवं भवनों में लगायें जाने वाले पिलर्स, वाटर प्लेट, फाउंटेन्स, शंख, लेडी फिगर्स, रोमन शैली के फिगर, घरेलू उपयोग की अनेक वस्तुएं आदि शामिल है।
श्री रमेश बताते हैं कि उनका पूरा परिवार मूर्ति कला के कार्य में लगा हुआ है और बड़े आकार की मूर्तियां बनाने में उन्हें छह से सात वर्ष लग जाते हैं। वे सफेद और काले रंग के संगमरमर पर अपनी बेजोड़ कला-कृतियां बना उन्हें जीवंत बना देते हैं।

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