- October 28, 2015
27 साल पूर्व के फैसले पर जोर :: उच्च शिक्षण संस्थानों से सभी प्रकार के आरक्षण को हटा दें :- सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। आजादी के 68 साल बाद भी कुछ ‘विशेषाधिकारों के परिवर्तित न होने पर’ दुख जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि राष्ट्रीय हित में उच्च शिक्षण संस्थानों से सभी प्रकार के आरक्षण को हटा देना चाहिए। कोर्ट ने केंद्र सरकार से निष्पक्ष होकर इस पर फैसला लेने को कहा है।
जस्टिस दीपक मिश्रा और पीसी पंत की बेंच ने इंगित किया कि सुपर स्पेशलिटी कोर्सेस में ऐडमिशन के लिए मेरिट को पहली कसौटी बनाए जाने की बात केंद्र और राज्य सरकारों को कई बार याद दिलाने के बावजूद जमीनी स्तर पर अमल में नहीं लाई जा सकी है। ऐडमिशन के लिए आरक्षण अभी भी अपनी प्रभुता को स्थापित किए हुए है।
बेंच ने टिप्पणी की, ‘उम्मीद अभी भी उम्मीद ही है। अगर मुकाबला हो तो विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की स्थिति अभी भी नहीं बदली है। बेंच ने यह भी माना कि साल 1988 में सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों से वह पूरी तरह सहमत है।’
इन दो केसों में, मेडिकल इंस्टिट्यूशन के सुपर स्पेशलिटी कोर्सेस में आरक्षण के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वास्तव में तो ऐसी जगह आरक्षण होना ही नहीं चाहिए। देश की सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उच्चतर शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए देश हित में ऐसा जरूरी हो गया है। कोर्ट ने भारत की जनता को मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिए भी इसकी जरूरत बताई।
फैसले में कहा गया, ‘हम उम्मीद करते हैं, और विश्वास करते हैं कि केंद्र और राज्य की सरकारें इसपर बिना किसी देरी के मंथन करेंगी और गाइडलाइन को विकसित करेंगी।’
27 साल पहले दिए गए फैसले पर जोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह केंद्र और राज्य सरकारों को फिर से वहीं संदेश देने को प्रवृत्त है। कोर्ट ने आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में सुपर स्पेशलिटी कोर्स में ऐडमिशन में दी जाने वाली छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह टिप्पणी की।