- March 11, 2022
उपभोक्ता धारणा मेँ पाँच प्रतिशत की सुधार
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
बिजनेस स्टैंडर्ड ———- फरवरी 2022 के दौरान उपभोक्ता धारणा में पांच प्रतिशत तक का खासा सुधार हुआ है। यह जनवरी में धारणा में दर्ज चार प्रतिशत सुधार से आगे निकल आया। इस तरह, वर्ष 2022 के पहले दो महीनों के दौरान भारतीय उपभोक्ता धारणा में 9.2 प्रतिशत की बढिय़ा संचयी वृद्धि रही।
मार्च के शुरुआती दिनों में भी धारणा में सुधार जारी रहा है। 6 मार्च को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान धारणा सूचकांक में चार प्रतिशत तक का असाधारण इजाफा दिखा। 6 मार्च तक उपभोक्ता धारणा सूचकांक का 30 दिवसीय चल औसत फरवरी के औसत से लगभग 1.4 प्रतिशत अधिक था।
वर्ष 2022 के शुरुआती महीनों के दौरान धारणा में यह सुधार वस्तुत: उन परिवारों के अनुपात में इजाफा दर्शाता है, जो मानते हैं कि उनकी मौजूदा पारिवारिक आय एक साल पहले के मुकाबले बेहतर है। दिसंबर 2021 में 8.3 प्रतिशत परिवारों ने माना था कि उनकी आय एक साल पहले के मुकाबले ज्यादा थी। यह अनुपात अप्रैल 2020 से दिसंबर 2021 के दौरान एक अंक में रहा। जनवरी 2022 में यह अनुपात उछलकर 11.4 प्रतिशत हो गया और फरवरी में यह और अधिक बढ़कर 12.1 प्रतिशत हो गया। मार्च में समाप्त हुए पहले सप्ताह में 13.1 प्रतिशत परिवारों ने माना कि उनकी आय एक साल पहले की तुलना में अधिक थी।
यह बात भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है कि अपनी आय एक साल पहले की तुलना में कम मानने वाले परिवारों का अनुपात दिसंबर 2021 के 42.6 प्रतिशत से गिरकर फरवरी 2022 तक 35.6 प्रतिशत तथा 6 मार्च को समाप्त हुए सप्ताह में 31.5 प्रतिशत रह गया। एक साल पहले के मुकाबले अपनी आय में गिरावट दर्ज करने वाले परिवारों का अनुपात अप्रैल 2020 के बाद से फरवरी 2022 में सबसे कम रहा। इस प्रकार आय में वृद्धि दर्ज करने वाले परिवारों के अनुपात में इजाफा तथा आय में गिरावट दर्ज करने वाले परिवारों के अनुपात में कमी एक साथ रही।
उन परिवारों के अनुपात में समान वृद्धि दिख रही है, जो मानते हैं कि आने वाले साल में उनकी आय अधिक हो जाएगी तथा उन परिवारों के अनुपात में कमी दिख रही है, जिनका मानना है कि एक साल में यह बदतर हो जाएगी। पहले वाला अनुपात दिसंबर 2021 के 8.1 प्रतिशत से बढ़कर जनवरी 2022 में 9.1 प्रतिशत हो गया तथा इसके बाद फरवरी में 11.9 प्रतिशत हो गया। फरवरी में यह उछाल विशेष रूप से अधिक है और शायद उपभोक्ता आशावाद का बेहतरीन संकेत है। जिन परिवारों का मानना है कि उनकी आय बदतर हो जाएगी, उनका अनुपात दिसंबर 2021 के 42.3 प्रतिशत से गिरकर फरवरी 2022 में 36.5 प्रतिशत रह गया है।
उम्मीद है कि अपनी मौजूदा और संभावित आय के संबंध में परिवारों की धारणा में बेहतरी के लिहाज से यह बदलाव भारतीय अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सकल घरेलू उत्पाद के निजी अंतिम उपभोग व्यय घटक की रफ्तार में परिवारों का व्यय और योगदान बढऩे की उम्मीद है। गैर-जरूरी चीजों पर खर्च करने के लिए परिवारों की प्रवृत्ति में सुधार पहले से ही नजर आ रहा है।
फरवरी 2022 में 9.1 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि एक साल पहले के मुकाबले यह टिकाऊ उपभोक्ता वस्तु खरीदने का बेहतर वक्त है। दिसंबर 2021 की तुलना में यह एक बड़ा इजाफा है, जब केवल 5.9 प्रतिशत परिवार ही टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं पर खर्च करने को सकारात्मक रुख दिखा रहे थे। जनवरी 2022 में यह अनुपात 7.4 प्रतिशत था। टिकाऊ उपभोक्ता वस्तु खरीदने की प्रवृत्ति में बदलाव अर्थव्यवस्था की दिशा में बदलाव करने वाला संभवत: सबसे महत्त्वपूर्ण संकेतक होता है। भारत में वर्तमान संदर्भ के लिहाज से टिकाऊ उपभोक्ता वस्तु खरीदने का इसे बेहतर वक्त मानने वाले परिवारों के अनुपात में यह निरंतर सुधार मौजूदा आर्थिक बदलाव का एक महत्वपूर्ण संकेत है।
एक साल पहले की तुलना में टिकाऊ उपभोक्ता वस्तु खरीदने के लिए इसे बेहतर वक्त कहने वाले परिवारों का अनुपात जून 2021 के बाद से आठ महीने से लगातार बढ़ता रहा है। यह बढ़ती प्रवृत्ति पिछले आठ महीनों की तुलना में काफी अच्छी है, जब यह अनुपात शुरू में धीरे-धीरे और फिर तेजी से घट रहा था। टिकाऊ उपभोक्ता वस्तु खरीदने की प्रवृत्ति में लगातार सुधार बना हुआ है और यह पहली लहर के बढिय़ा, लेकिन अल्पकालिक सुधार से अलग है।
हालांकि परिवार अपने खुद के भविष्य और गैर-जरूरी चीजों के उपभोग की चाह के संबंध में आशावादी हैं, लेकिन वे लघु या मध्य अवधि में आर्थिक तथा कारोबारी संभावनाओं के संबंध में समान रूप से उत्साही नहीं हैं। यह कुछ हैरान करने वाली बात है। पहले आर्थिक परिस्थितियों की और फिर अपने कुशल-क्षेम की संभावनाओं में सुधार की अपेक्षा करना तर्कसंगत होगा। जनवरी और फरवरी 2022 में केवल 8.8 प्रतिशत परिवारों को ही भारत में अगले 12 महीने के दौरान वित्तीय और कारोबारी परिस्थितियों में सुधार की उम्मीद थी। और अगले पांच साल के दौरान भी समान अनुपात में ही परिस्थितियों में सुधार की उम्मीद की गई।
6 मार्च को समाप्त होने वाले सप्ताह में हल्का तथा आंशिक सुधार हुआ था। आने वाले 12 महीने में वित्तीय और कारोबारी परिस्थितियों में सुधार की उम्मीद करने वाले परिवारों का अनुपात बढ़कर 9.8 प्रतिशत हो गया। लेकिन परिस्थितियां बदतर हो जाएंगी, यह मानने वाला अनुपात अधिक है तथा बढ़ गया है। फरवरी में 41.4 प्रतिशत परिवारों का मानना था कि एक साल में परिस्थितियां बदतर हो जाएंगी। यह अनुपात बढ़ा है। मार्च के पहले सप्ताह में यह अनुपात बढ़कर 42.3 प्रतिशत हो गया। इसके अलावा जो परिवार यह मानते हैं कि अगले पांच साल में वित्तीय और कारोबारी परिस्थितियों में सुधार होगा, उनका अनुपात मार्च के पहले सप्ताह में कुछ गिरकर 8.4 प्रतिशत रह गया।
एक निष्कर्ष यह हो सकता है कि उपभोक्ता धारणा में इस हालिया इजाफे को उन नीतिगत हस्तक्षेपों से सदृढ़ किया जा सकता है, जो तीव्र आर्थिक सुधार की संभावनाओं को बेहतर करते हैं।