- July 23, 2018
जैनियों के आस्था — चंद्रावर का किला–
फिरोजाबाद (विकास पालीवाल)—– रंग बिरंगी चूडियों से चमचामाता शहर फ़िरोज़ाबाद, जिसे सुहागनगरी के नाम से भी जाना जाता है लेकिन एक समय इसी सुहागनगरी ने अपने ही शहर की महिलाओम के सुहाग को उजड़ते देखा था।
जब मोहम्मद गोरी ने चंदवार के किले पर आक्रमण किया। तब फ़िरोज़ाबाद को चंद्रगण के नाम से जाना जाता था। ये वही समय था जब अपने पराक्रम को दिखाते हुए फ़िरोज़ाबाद के राजा ने अपने मुठ्ठी भर सेनिको के साहस के साथ वीरगाथा का इतिहास रच डाला था। आज अपनी बेकदरी पर रो रही खंडहर बन चुकी चंद्रगण के किले की ये दीवारे आज भी अपनी विजयगाथा बताने को तैयार है।
इतिहास में चंद्रगण से लेकर आधुनिक फ़िरोज़ाबाद ने समय के घूमते पहिये के साथ तमाम उतार चढ़ाव देखे हैं । इसी फिरोज़ाबाद ने मुहम्मद गोरी और जयचंद का युद्ध देखा है ।
चंद्रवार के किले की मिटती जा रही विरासत फ़िरोज़ाबाद शहर से 5 किलो मीटर दूर यमुना तट पर मौजूद है। किसी समय एक सम्पन्न नगर की गाथा कहता चंद्रवार आज अपनी एतिहासिक गाथा को भी बचाने की जद्दोजहद में लगा है। फ़िरोज़ाबाद जैन समाज का भी पुराना क्षेत्र है, यहाँ के जैन विद्वानों की यह मान्यता थी कि यह शहर भगवान कृष्ण के पिता वासुदेव द्वारा भी शासित रहा है।
कहा जाता है कि चंद्रवार नगर की स्थापना चंद्रसेन ने 1392 ई0 में की । इसके बाद तमाम राजाओ ने यहाँ अपना शासन चलाया। चौहान वंश के राजा चन्द्रसेन का महल आज खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस महल के नजदीक ही राजा चंद्रसेन का किला भी है। इस किले को राजा चंद्रपाल ने अपने पिता की याद में बनवाया था।
इस किले को चंद्रवाड़ के किले के नाम से जाना जाता है। यह किला शहर से करीब सात किलोमीटर दूर यमुना किनारे स्थित है। राजा चंद्रसेन के महल से लेकर राजा चंद्रवाड़ के किले तक के इस पूरे इलाके को चंद्रवाड़ का नगर के नाम से जाना जाता है।
इतिहास की माने तो ये पूरा नगर राजपूतों का था लेकिन आज इसमें प्राचीन जैन मूर्तियां और कलाकृतियां देखने को मिलती हैं। यह स्थान अब जैनियों की आस्था का केंद्र है । राजा चन्द्रसेन कला प्रेमी होने के साथ ही जनप्रिय भी थे।
मुगल शासक मुहम्मद गौरी ने राजा चंद्रसेन पर आक्रमण कर उन्हें पराजित कर दिया और राजा के महल पर अपना अधिकार जमा लिया। इस दौरान मुहम्मद गौरी ने तोपें चलाकर राजा के साम्राज्य को नष्ट कर दिया था।
राजा चंद्रसेन के अस्तित्व को जीवित रखने के लिए उनके पुत्र चंद्रपाल ने बाद में यमुना किनारे किला बनवाया। इस किले को चंद्रवाड़ का किला कहा जाता था। विक्रम संवत 1052 में इस पूरे नगर को चंद्रवाड़ नाम से जाना जाने लगा।
कहा जाता है कि कुछ वर्षों बाद राजपूतों के ये वंशज जैन धर्म से प्रभावित हो गए और उन्होंने इस धर्म को अपना लिया था। यही कारण है कि आज इस किले में प्राचीन जैन धर्म की मूर्तियां और कलाकृतियां और अन्य अवशेष देखने को मिलते हैं। अब फिरोजाबाद में यह स्थल जैन धर्म का तीर्थस्थल बन चुका है।
देश के विभिन्न हिस्सों से जैन समाज के लोग यहां बड़ी आस्था के साथ मूर्तियों के दर्शन करने आते हैं। यह पूरा नगर आज फिरोजाबाद की धरोहर है। यहां आज भी प्राचीन सिक्कों के साथ ही अन्य कई प्राचीन अवशेष भी मिलते हैं। लेकिन पुरातत्व विभाग एवं पर्यटन विभाग इस ओर कोई ध्यान नहीं देता। यही कारण है कि आज चंद्रवाड़ नगर खंडहर में तब्दील हो चुका है।
चंद्रवार के इतिहास में चंद्रवार के तीन राजाओं का उल्लेख मुख्य रूप से है – एक चंद्रसेन, दुसरे चंद्रसेन का पुत्र चंद्रपाल और तीसरे चंद्रपाल का पौत्र जयपाल । बाबर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वह तीन वार चंद्रवार आया था। जैन धर्म में एक प्राचीन काव्य ग्रंथ है बाहुबली चरित्र । इस ग्रंथ की रचना सन 1397 मैं धनपाल द्वितीय नामक कवि ने चंद्रवार नगर में ही की थी।
कवि धनपाल को चंदवार के मंत्री तथा रास रिष्टि साहिबा सादर का अवसर प्राप्त हुआ और उनकी प्रेरणा से ही कवि ने अपने इस ग्रंथ की रचना की ग्रंथ में चंद्रवार के तत्कालीन राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रामचंद्र का भी उल्लेख है । आज से लगभग 6000 वर्ष पूर्व भी चंदबार को एक प्राचीन नगर माना जाता था ।
दिल्ली के पूजा सेठ के जैन मंदिर में विद्वान चौबीसी धातु की जैन मूर्ति की प्रतिष्ठा चंद्रवार में सन 1454 में हुई थी । चंद्रवार से मूर्ति को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया। चंद्रवार राजवंश की दूसरी शाखा भदावर राज्य में भी लोदी को लोहा लेना पड़ा था।