होली वर्जन – सुयश मिश्रा

होली वर्जन  – सुयश मिश्रा

सामाजिक सद्भाव और प्रेम का पर्व है- होली। यद्यपि होली को पौराणिक संदर्भों के अनुसार भक्त प्रहलाद और उनकी बुआ होलिका के संदर्भ में व्याख्यायित किया गया है किन्तु वास्तव में यह कथा बुराई की पराजय और अच्छाई की विजय का प्रतीकार्थ देती है। अत्याचारी शासक हिरण्यकश्यप अपनी विपरीत विचारधारा वाले अपने ही पुत्र प्रहलाद को अपनी बहन होलिका के माध्यम से जला डालना चाहता है किंतु ईश्वरीय कृपा बुराई की प्रतीक होलिका को जलाकर प्रहलाद की रक्षा कर लेती है। इससे स्पष्ट होता है कि होली बुराई के विनाश और अच्छाई के संरक्षण का त्यौहार है। यह सत्यमेव जयते का संदेश भी है।

होली के पर्व पर रंगों का खेल मौसम के अनुरूप मानसिक उल्लास की अभिव्यक्ति है। बसंत का मादक परिवेश तन और मन– दोनों को प्रफुल्लित करता है। यही प्रसन्नता रंग और गुलाल के माध्यम से सामाजिक धरातल पर व्यक्त होती है, जहां सवर्ण-असवर्ण, धनी-निर्धन, विद्वान और सामान्य– सब मिलकर परस्पर रंग खेलते हैं। एक दूसरे को बधाई देते हैं। एक दूसरे के घर आते-जाते हैं और वर्ष भर के लड़ाई-झगड़े, गिले-शिकवे भूल कर गले लगते हैं। सामाजिक सद्भावना का यह पर्व सर्वथा अनूठा है।

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