• September 11, 2015

हिन्दी का महाकुंभ – भाषा के लुप्त होने पर ही उसकी महत्ता का पता चलता है

हिन्दी का महाकुंभ – भाषा के लुप्त होने पर ही उसकी महत्ता का पता चलता है
  • हिन्दी सम्मेलन को बताया हिन्दी का महाकुंभ।

  • हिन्दी भाषा की समृद्धि में मध्यप्रदेश का उल्लेखनीय योगदान है।

  • भाषा के लुप्त होने पर ही उसकी महत्ता का पता चलता है। लुप्त होने से पहले चैतन्य हो जाए।

  • हर पीढ़ी का दायित्व है कि भाषाई विरासत को सुरक्षित रखें और आने वाली पीढ़ी को प्रदान करें।

  • चाय बेचते-बेचते हिन्दी सीखी।125

  • भाषा की ताकत का अंदाजा है। हिन्दी के संवर्धन के आंदोलन गैर हिन्दी मातृभाषा वालों ने चलाये, यही बात प्रेरणा देती है।

  • जीवन की तरह भाषा में चेतना होती है।

  • भाषा जड़ नहीं हो सकती। यह हवा का ऐसा झोंका है, जो अपने साथ सुगंध समेटते चलती है।

  • भाषा अपने आप को परिष्कृत और नये शब्दों को समाहित करती है।

  • सबका प्रयास होना चाहिए कि हिन्दी भाषा समृद्ध कैसे बनें।

  • भारतीय भाषाओं के बीच कार्यशाला हो और वे एक दूसरे को समृद्ध करें।

  •   भाषाओं को जोड़ें और समृद्ध बनायें।

  • भविष्य में  हिन्दी का महत्व बढ़ने वाला है। भाषा का एक बड़ा बाजार बनेगा।

  • 21वीं सदी के अंत तक 90 प्रतिशत भाषाओं के लुप्त होने की संभावना है।

  • भाषा के दरवाजे बंद मत करो।

  • भाषा नहीं बचेगी तो अनुभव और ज्ञान का भंडार भी नहीं बचेगा।

  • डिजिटल दुनिया की मुख्य भूमिका होगी। भविष्य में अंग्रेजी, चीनी और हिन्दी का दबदबा होगा।

  • भाषा को टेक्नालाजी के अनुरूप परिवर्तित करें।

  • भाषा सबको जोड़ने वाली वाली होना चाहिये।

  • संस्कृत भाषा में ज्ञान का अकूत भण्डार है लेकिन जानकारी के अभाव में हम उसका भरपूर लाभ नहीं ले सके। धीरे-धीरे हम उससे दूर हो गए।

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