- April 24, 2021
स्त्री जाति के विरुद्ध सबसे जघन्य अपराध — शैलेश कुमार
मानवता और स्त्री जाति के विरुद्ध सबसे जघन्य अपराध है — कन्या भ्रूण हत्या
बेटे की इच्छा परिवार नियोजन के छोटे परिवार की संकल्पना के साथ जुडती है और दहेज़ की प्रथा ने ऐसी स्थिति को जन्म दिया है जहाँ बेटी का जन्म किसी भी कीमत पर रोका जाता है।
इसलिए माँ के गर्भ में ही कन्या की हत्या करने का सबसे गंभीर अपराध करते हैं। इस तरह के अनाचार ने मानवाधिकार, वैज्ञानिक तकनीक के उपयोग और दुरुपयोग की नैतिकता और लैंगिक भेदभाव के मुद्दों को जन्म दिया है।
गर्भ से लिंग परीक्षण जाँच के बाद बालिका शिशु को हटाना कन्या भ्रूण हत्या है।
कन्या भ्रूण हत्या परिवार द्वारा की जाती है।
कन्या भ्रूण हत्या :
कई राज्यों मे कन्या भ्रूण हत्या करने की सूचना देने पर पुरुस्कार दिये जाने का प्रावधान हैं:
मुखबिर योजना पुरस्कार : मुखबिर योजना में ढाई लाख रुपए की इस राशि में से एक लाख रुपए गर्भवती महिला (डिकॉय), एक लाख रुपए मुखबिर और 50 हजार रुपए गर्भवती महिला के साथ जाने वाले व्यक्ति को दी जाएगी।
दहेज़ व्यवस्था की पुरानी प्रथा भारत में अभिवावकों के सामने एक बड़ी चुनौती है जो लड़कियां पैदा होने से बचने का मुख्य कारण है।
• पुरुषवादी भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति निम्न है।
• अभिवावक मानते हैं कि पुत्र समाज में उनके नाम को आगे बढ़ायेंगे जबकि लड़कियां केवल घर संभालने के लिये होती हैं।
• गैर-कानूनी लिंग परीक्षण और बालिका शिशु की समाप्ति के लिये भारत में दूसरा बड़ा कारण गर्भपात की कानूनी मान्यता है।
• तकनीकी उन्नति ने भी कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा दिया है।
कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ और परिभाषा:
कन्या भ्रूण हत्या का मतलब है माँ की कोख से मादा भ्रूण को निकल फेंकना। जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीक (दुरुपयोग के नियमन और बचाव) अधिनियम 2002 की धारा 4 (1) (b,c )के तहत के अनुसार भ्रूण को परिभाषित किया गया है- “निषेचन या निर्माण के सत्तानवे दिन से शुरू होकर अपने जन्म के विकास की अवधि के दौरान एक मानवीय जीव।”
अपराध से जुड़े क़ानूनी प्रावधान
भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत प्रावधान : भारतीय दंड संहिता की धारा 312 कहती है: ‘जो कोई भी जानबूझकर किसी महिला का गर्भपात करता है जब तक कि कोई इसे सदिच्छा से नहीं करता है और गर्भावस्था का जारी रहना महिला के जीवन के लिए खतरनाक न हो, उसे सात साल की कैद की सजा दी जाएगी’।
महिला की सहमति के बिना गर्भपात (धारा 313) और गर्भपात की कोशिश के कारण महिला की मृत्यु (धारा 314) इसे एक दंडनीय अपराध बनाता है।
धारा 315 के अनुसार मां के जीवन की रक्षा के प्रयास को छोड़कर अगर कोई बच्चे के जन्म से पहले ऐसा काम करता है जिससे जीवित बच्चे के जन्म को रोका जा सके या पैदा होने का बाद उसकी मृत्यु हो जाए, उसे दस साल की कैद होगी धारा 312 से 318 गर्भपात के अपराध पर सरलता से विचार करती है जिसमें गर्भपात करना, बच्चे के जन्म को रोकना, अजन्मे बच्चे की हत्या करना (धारा 316), नवजात शिशु को त्याग देना (धारा 317), बच्चे के मृत शरीर को छुपाना या इसे चुपचाप नष्ट करना (धारा 318)।
1964 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक समिति का गठन किया ।
शांतिलाल शाह नाम से गठित इस समिति को महिलाओं द्वारा की जा रही गर्भपात की कानूनी वैधता की मांग के मद्देनजर महिला के प्रजनन अधिकार के मानवाधिकार के मुद्दों पर विचार करने का काम सौंपा गया।
1971 में संसद में गर्भ की चिकित्सकीय समाप्ति अधिनियम, 1971 (एमटीपी एक्ट) पारित हुआ जो 1 अप्रैल 1972 को लागू हुआ और इसे उक्त अधिनियम के दुरुपयोग की संभावनाओं को को ख़त्म करने के उद्देश्य से गर्भ की चिकित्सकीय समाप्ति संशोधन अधिनियम (2002 का न।64) के द्वारा 1975 और 2002 में संशोधित किया गया।
गर्भ की चिकित्सकीय समाप्ति अधिनियम केवल आठ धाराओं वाला छोटा अधिनियम है। यह अधिनियम महिला की निजता के अधिकार, उसके सीमित प्रजनन के अधिकार , उसके स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के अधिकार, उसका अपने शरीर के सम्बन्ध में निर्णय लेने के अधिकार की स्वतंत्रता की बात करता है लेकिन कुछ बेईमान लोग केवल कन्या भ्रूण को गिराकर इसका बेजा फायदा उठा रहे हैं।
एमटीपी एक्ट में गर्भ को समाप्त करने की दशाएं (धारा 3), और ऐसा करने के लिए व्यक्ति (धारा 2 d) और स्थान (धारा 4) को निर्धारित किया गया है। इस अधिनियम के अनुसार निम्न दशाओं में गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी जाती है-
(1) जिसमें गर्भ को जारी रखने की सलाह नहीं दी गयी हो और गर्भ महिला के जीवन के लिए खतरा बन सकता है और यह बतौर गर्भवती उसे कुछ गंभीर रोगों से पीड़ित बना सकता है-
मानसिक बीमारी
(2) जहाँ पर गर्भावस्था के जारी रहने पर नवजात शिशु के लिए काफी जोखिम हो सकता है और इससे गंभीर तौर पर मानसिक/ बौद्धिक विकलांगता उत्पन्न हो सकती है। जैसे-
(3) जहाँ पर बलात्कार के कारण गर्भ ठहरा हो (1 से धारा 3 में व्याख्यायित)
किसी भी गर्भपात से पहले स्त्री रोग विशेषज्ञ की पूर्व सलाह लेना आवश्यक है। और अगर 12 हफ़्तों से अधिक और 20 हफ़्तों से कम दिनों का है तो दो डॉक्टरों की सलाह लेना जरूरी है (धारा 2(क) और (ख))।
गर्भ गिराने के लिए निश्चित प्रपत्र पर महिला की लिखित सहमति लेना आवश्यक है। महिला की सहमति स्वतंत्र होनी चाहिए और उक्त दशाओं पर ही आधारित होनी चाहिए। पति की सहमति की आवश्यकता नहीं है।18 साल से कम उम्र की लड़कियों, और मानसिक रूप से अस्थिर महिलाओं के सम्बन्ध में उनके अभिभावकों की सहमति लेना आवश्यक है (धारा 3)।
यह अधिनियम गर्भपात करने वाले चिकित्सकों की योग्यता का भी निर्धारण करता है और केवल सरकारी लाइसेंस प्राप्त केन्द्रों पर ही गर्भपात कराया जा सकता है।
आज गर्भ में बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद लापरवाही बरतने के कारण विकृति के साथ पैदा हुए एक बच्चे की वजह से लॉ ऑफ़ टोर्ट्स के तहत मुकदमा दायर किया जा सकता है। 18 दिसम्बर 1979 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभावों के उन्मूलन की वियना घोषणा (सीडॉ) को मंजूर किया ।
19 जून 1993 को भारतीय सरकार ने इसी घोषणा को यथावत मंजूर कर लिया।
सीडॉ की प्रस्तावना में कहा गया है – महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव समानता के सिद्धांत और मानवीय गरिमा के आदर का घोर उल्लंघन है। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह कानूनों में बदलाव या मौजूदा कानूनों, नियमों, परिपाटियों और प्रथाओं में से जेंडर आधारित भेदभाव को ख़त्म करने के लिए उचित कदम उठाए।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 “जीवन के अधिकार” की घोषणा करता है। अनुच्छेद 51A (e) महिलाओं के प्रति अपमानजनक प्रथाओं के त्याग की व्यवस्था भी करता है।
उपरोक्त दोनों घोषणाओं के आलोक में भारतीय संसद ने लिंग तय करने वाली तकनीक के दुरुपयोग और इस्तेमाल से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीक (दुरुपयोग का नियमन और बचाव ) अधिनियम, 1994 पारित किया।
इस अधिनियम के प्रमुख लक्ष्य हैं—–
गर्भाधान पूर्व लिंग चयन तकनीक को प्रतिबंधित करना
लिंग-चयन संबंधी गर्भपात के लिए जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीकों के दुरूपयोग को रोकना
जिस उद्देश्य से जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीकों को विकसित किया है, उसी दिशा में उनके समुचित वैज्ञानिक उपयोग को नियमित करना
इस अधिनियम को बड़े जोर-शोर से पारित किया गया —
राज्य इसे समुचित तरीके से लागू करने के लिए माकूल व्यवस्था करने में नाकामयाब रहा। क्लीनिकों में अधूरे अभिलेखों अथवा अभिलेखों के देख-रेख के अभाव में यह पता करना मुश्किल हो जाता है कि कौन-से अल्ट्रा-साउंड का परीक्षण किया गया था।
यहाँ तक कि पुलिस महकमा भी सामाजिक स्वीकृति के अभाव में इस अधिनियम के तहत कोई मामला दर्ज करने में असफल रहा है।
डॉक्टरों द्वारा कानून का धड़ल्ले से उल्लंघन जारी है जो अपने फायदे के लिए लोगों का शोषण करते हैं।
गर्भाधान के चरण के दौरान X और Y गुणसूत्रों को अलग करना, पीसीजी इत्यादि नयी तकनीकों के दुरुपयोगों ने इस अधिनियम को नयी स्थितियों में बेअसर बना दिया है।
पीएनडीटी अधिनियम 2002 दिसम्बर में अस्तित्व में आया।बाद में इस अधिनियम को गर्भाधान पूर्व-प्रसव पूर्व परीक्षण तकनीक (लिंग चयन प्रतिबन्ध) अधिनियम कहा गया।
स्वास्थ्य एवम परिवार कल्याण मंत्रालय ने प्रसव-पूर्व परीक्षण (दुरुपयोग का नियम एवम बचाव) अधिनियम 2003 ने 14 फरवरी को 1996 के नियम को विस्थापित कर दिया।
पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट की प्रमुख विशेषताएं
• सभी परीक्षण प्रयोगशालाओं के पंजीकरण को अनिवार्य बना दिया है।
• अल्ट्रा साउंड के उपकरणों के निर्माता को अपने उपकरणों को पंजीकृत प्रयोगशालाओं को बेचने के निर्देश दिए हैं।
• (पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम के नियम 3 A के साथ धारा 3 B)
• फॉर्म-बी में पंजीकरण प्रमाणपत्र को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना चाहिए यानि कि जहाँ से यह सबको दिखाई दे। ( पीएनडीटी नियमों के नियम 4 (i) (ii), नियम 6 (2), 6 (5) एवं 8 (2))।
• पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम की धारा 4 के तहत केवल निम्न परिस्थितियों में प्रसव-पूर्व परीक्षण तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जब:
• महिला की आयु 35 वर्ष से अधिक हो।
• गर्भवती 2 या 2 से अधिक गर्भपात या भ्रूण की हानि को झेल चुकी हो।
• गर्भवती संभावित रूप से हानिप्रद अभिकर्म्कों जैसे मादक पदार्थ, विकिरणों, संक्रमण या रसायनों के संपर्क में आ चुकी हो।
• गर्भवती या उसके पति के परिवार में किसी को मानसिक विकार या शारीरिक विकृति रही हो जैसे अन्य अनुवांशिक रोग; या मंडल द्वारा तय की गयी कोई अन्य दशा।
• सभी जानकारियां फॉर्म ‘ऍफ़’ में दर्ज होना चाहिए। (पीएनडीटी अधिनियम का नियम 9 (4))
• जब भी कोई गर्भवती महिला अनुमति प्राप्त उद्देश्यों के अतिरिक्त प्रसव पूर्व परीक्षण तकनीक से जाँच कराती है तो यह माना जाएगा की उस पर उसके पति या अन्य रिश्तेदारों ने परीक्षण करने का दबाव बनाया है और उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएया।( पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम की धारा 24)।
पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के तहत प्रतिबंधित कृत्य
(क) लिंग चयन या लिंग का पूर्व-निर्धारण की सेवा देने वाले विज्ञापनों का प्रकाशन;
(ख) गर्भाधान-पूर्व या जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीकों वाले क्लीनिकों का पंजीकृत नहीं होना या क्लिनिक या संस्थान के भीतर सबको दिखाई देने वाले पंजीकरण प्रमाणपत्र को प्रदर्शित नहीं करना;
शिकायत —- कोई भी शिकायतकर्ता अपनी शिकायत को राज्य स्तरीय प्राधिकरण में नियुक्त प्राधिकृत अधिकारी के सामने दर्ज करा सकता है। इस अधिकारी का दर्जा स्वास्थ्य विभाग में संयुक्त निदेशक, स्वास्थ्य एवम परिवार कल्याण विभाग के पद से ऊपर होगा।
जिला स्तर पर सिविल सर्जन या मुख्य चिकित्सा अधिकारी और नगर में मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी या वार्ड स्वास्थ्य अधिकारी या चिकित्सा अधीक्षक को प्राधिकृत किया जाएगा।
शिकायत लिखित में दर्ज की जाएगी और उसके प्राधिकारी को भी पावती देनी होगी। अगर नियुक्त प्राधिकरण 15 दिन के अन्दर कार्रवाई करने में विफल रहता है तो शिकायतकर्ता उपयुक्त न्यायक्षेत्र वाली अदालत में पावती के साथ जा सकता है।
लिंग चयन में लिप्त पाए गए दोषियों की जुर्माना राशी पचास हज़ार से बढ़ाकर एक लाख की गयी है जिसमें चिकित्सक का पंजीकरण रद्द करने, निलंबन का अतिरिक्त प्रावधान है।
कन्या भ्रूण हत्या के प्रतिरोध के लिए सुझाव
राज्यों ने कन्याओं के लिए योजनाएं जारी की हैं जैसे कि कन्या के जन्म पर माता-पिता को नकदी देना, स्नातक स्तर तक मुफ्त शिक्षा, कुछ पॉलिसी में किश्तों में भुगतान किया जाता है जो कन्या के विवाह के समय परिपक्व होती हैं, इत्यादि।
सूचना देने वालों को पुरस्कार देना चाहिए।
भारतीय चिकित्सा परिषद् अधिनियम , 1956, चिकित्सा परिषद् की नैतिक आचार संहिता, 1970 वर्तमान कानूनों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए संशोधित किया जाना चाहिए और सबसे बड़ी बात महिलाएं जो जननी हैं उन्हें बेटा पैदा करने की थोपी हुई जिम्मेदारी से स्वयं को मुक्त करना चाहिए।
भारतीय समाज में कन्या भ्रूण हत्या की गंभीर चुनौती को रोकने के लिए हमें महिलाओं को सशक्त बनाना होगा। दहेज़ प्रथा जैसी कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाकर और मौजूदा कानूनों को सख्ती से लागू कर महिला अधिकारों को मजबूती देनी होगी।
भारत सरकार और अनेक राज्य सरकारों ने समाज में लड़कियों और महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए विशेष योजनाएं लागू की गई हैं। इसमें धनलक्ष्मी जैसी योजना शामिल है।
सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ रिसर्च के साथ किए गए इस शोध में वर्ष 1991 से 2011 तक के जनगणना आंकड़ों को नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों के साथ जोड़कर ये निष्कर्ष निकाले गए हैं.
शोध में ये पाया गया है कि जिन परिवारों में पहली सन्तान लड़की होती है उनमें से ज़्यादातर परिवार पैदा होने से पहले दूसरे बच्चे की लिंग जांच करवा लेते हैं और लड़की होने पर उसे मरवा देते हैं. लेकिन अगर पहली सन्तान बेटा है तो दूसरी सन्तान के लिंग अनुपात में गिरावट नहीं देखी गई.
शिक्षित और समृद्ध परिवारों में कन्या भ्रूण हत्या: इस अनुसंधान में भारत में पिछले तीन दशकों में हुए ढाई लाख जन्मों के बारे में जानकारी जुटाई गई.
शोध में मांओं की शिक्षा दर और परिवार के आर्थिक स्तर की जानकारी का अध्ययन भी किया गया जिसके मुताबिक शिक्षित और समृद्ध परिवारों में लड़कों के मुकाबले लड़कियों के अनुपात में ज़्यादा गिरावट देखी गई.
“कानून को लागू करने वाले ज़िला स्वास्थ्य अफसर के लिए लिंग जांच करने वाले डॉक्टर पर नकेल कसना बहुत मुश्किल है क्योंकि डॉक्टरों के पास नवीनतम तकनीक उपल्ब्ध है.”
बिहार मे भ्रूण हत्या की स्थिति
भारत में पांच वर्ष से कम आयु में मृत्युदर लड़कों की तुलना में लड़कियों में 8.3 प्रतिशत अधिक है | वैश्विक स्तर पर यह लड़कों में 14 प्रतिशत अधिक है. UNIGME चाइल्ड सर्वाइवल रिपोर्ट 2019)|
लगभग 46 प्रतिशत मातृत्व मृत्यु और 40 प्रतिशत नवजात मृत्यु प्रसव के दौरान या जन्म के पहले २४ घंटों के दौरान होती हैं | नवजात शिशुओं की मृत्यु के प्रमुख कारण समय पूर्व प्रसव (35 प्रतिशत) नवजात संक्रमण (33 प्रतिशत) जन्म के दौरान दम घुटना (20 प्रतिशत) और जन्मजात विकृतियां (9 प्रतिशत) हैं |
बिहार मे देश के कुल आवादी का 11 प्रतिशत बच्चे हैं। बिहार में लगभग 88.7 प्रतिशत लोग गाँवों में रहते हैं और 33.74 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं।
हर साल लगभग 2.8 मिलियन बच्चे बिहार में पैदा होते हैं, लेकिन इनमें से लगभग 75,000 बच्चे पहले महीने के भीतर मर जाते हैं।
कुपोषण एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है, पाँच वर्ष से कम आयु के प्रत्येक दूसरे बच्चे (48.3 प्रतिशत) कुपोषण के शिकार हैं।
15-19 वर्ष की आयु की दो लड़कियों में से एक कुपोषित है और प्रजनन आयु की एक तिहाई महिलाएँ अल्पपोषित हैं।
18 वर्ष की उम्र से पहले करीब तीन मिलियन लड़कियों की शादी की जाती है और 370,000 लड़कियां किशोरावस्था (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -4) के दौरान गर्भवती होती हैं।
बिहार में नवजात मृत्यु दर 28 से घटकर 25 हुई
2018 में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में 4 अंकों की कमी आई है। यह 2017 में 41 थी जो 2018 में घटकर 37 हो गई है। वही, पेरिनेटल आईएमआर जो कि 2017 में 24 थी वह कम होकर 22 हो गई है।
महिलाओं की सुरक्षा मेँ बिहार की झलक
2018 मेँ 1145 मामले दर्ज हुए जो 2019 मेँ 20 केस ज्यादा हैं । जनवरी और सितम्बर , केवल पटना के विभिन्न थाना मे 85 केस दर्ज हुआ। कटिहार -79, पुरनियाँ -74 , अररिया -67 गया-56। 1145 मे नवालीग लड़कियाँ रहीं ।
2018 मेँ पटना सुरक्षा की दृष्टिकोण से महिला के लिए असुरक्षित रही। इस वर्ष 123 रेप हुए ।
7 दिसम्बर 2019 : प्रत्येक 6 घंटे मे 1 बलात्कार : – प्रारम्भ के 9 महिने मेँ 1,165 मामले दर्ज हुए । इसी वर्ष जून के महीने मे 146 केस रेकॉर्ड किया गया ।
25% रेप पीड़ित की उम्र 20 वर्ष से कम थीं 40-45 % अपराध 18 से 30 वर्ष के युवाओं द्वारा परिणत किया गया है
— स्टेट क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो।
2019 — मधुबनी मेँ कुल दुर्घटना — 5393
2019 — महिला पर हमले का प्रयास :
पटना जॉन – 131 मगध रेंज — 30 शहवाद रेंज – 38, मुजफरपुर रेंज – 34, सारण रेंज – 18, बेतिया रेंज – 43, दरभंगा रेज़ एंड जॉन — 45,पूर्णियाँ रेंज – 34,कोशी रेंज -11, भागलपुर रेंज – 46, मुंगेर रेज़ – 59, पारिवारिक विवाद — 1574, महिलाओं का अनादर-13, दहेज विरोधी कानून –एफआईआर -3289 पीड़ित-3329, महिला से संबन्धित अपराध — पीड़ित-3382, सेक्स के शिकार बच्चे – 1605, दहेज से मृत्यु सिर्फ मधुबनी मेँ 26, रेप से मृत्यु – सिर्फ मधुबनी मेँ – 19
राष्ट्रिय अपराध शाखा के नजर मे बिहार : 2019
महिला के विरुद्ध : अपराध — 2017 मे 14,711 ,2018 मे 16,920, 2019 मे 18,587, महिलाओं के साथ औसतन अपराध की दर 32.3%
दहेज से मौत – 1127, संबधियों और पतियों की क्रूरता का शिकार — 2641, अपहरण की कुल घटनाएँ — 9036, अपहरण कर जबर्दस्ती विवाह –7115 , जिसमे 18 वर्ष ऊपर की महिलाएं – 2,632, 18 वर्ष से नीचे की महिलाओं को अपहरण और विवाह की घटनाएँ — 4,483 ।
अपहरण 1037। 18 वर्ष और उससे ऊपर महिलाओं के साथ रेप 739। रेप करने के प्रयास – 110। महिलाओं के साथ अभद्रता – 316 वारदात । धारा 509 के तहत कुल अपराध – 14005। दहेज विरोध कानून के तहत कुल अपराध – 3329। सेक्सुयल हरासमेंट – 1590 , पोस्को एक्ट – सेक्सन 8,9 और 354 के तहत 515 केस और धारा 12 के तहत 190 मामले दर्ज ।
सेकसन 14,15 के तहत 165 दर्ज ।
आई पी सी और एस एल एल के तहत कुल अपराध – 18,982
राज्य अपराध शाखा और राष्ट्रिय अपराध शाखा मे थाना में दर्ज रिकॉर्डवद्ध होता हैं लेकिन अधिकांश मामले जो दबंग द्वारा अंजाम दिया जाता है तथा प्रतिपक्ष कमजोर होता है तो वैसे घटना का उल्लेख नहीं होता हैं इसलिए राज्य अपराध शाखा और राष्ट्रिय अपराध शाखा की रिपोर्ट सामाजिक घटना कि आंकड़े लगभग समीप होता हैं।
दोनों संस्थाओं के रिकोर्ड अपडेट नही रहता है अर्थात अद्यतिकरण के मामले मेँ 3 – 4 वर्ष पीछे चलता रहता हैं।