• December 16, 2017

सुराज के 4 सालःसंस्कृत के विकास में समर्पित सुराज की सरकार

सुराज के 4 सालःसंस्कृत के विकास में समर्पित सुराज की सरकार

जयपुर (-शास्त्री कोसलेन्द्र दास /महेश शर्मा)———विश्व की प्राचीनतम भाषा संस्कृत के लिए राजस्थान प्रदेश सर्वाधिक उर्वरा भूमि के रूप में विख्यात है। प्रदेश के पश्चिमी भाग में कभी बहने वाली सरस्वती नदी के किनारे ऋषियों ने वैदिक मंत्रों का दर्शन-प्रणयन किया था। इसी पुण्यभूमि पर भीनमाल में आठवीं शताब्दी में जन्मे महाकवि माघ ने ‘शिशुपालवध’ जैसे अमर महाकाव्य की रचना कर संस्कृत साहित्य को अभूतपूर्व गति प्रदान की।

पंडित मधुसूदन ओझा, पंडित अंबिकादत्त व्यास, पंडित शिवदत्त दाधिमथ, पंडित गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी, पंडित पट्टाभिराम शास्त्री, भट्ट मथुरानाथ शास्त्री एवं पद्मश्री डॉ. मंडन मिश्र समेत अनेक विद्वानों ने संस्कृत भाषा में नई रचनाओं तथा संस्कृत के प्रचार-प्रसार में अनुपम भूमिका का निर्वहण किया है।

हमारे गौरवशाली स्वतंत्रता आंदोलन के बाद आजाद भारत में राजस्थान ऎसा सर्वप्रथम प्रदेश था, जहां संस्कृत शिक्षा के उत्तम संचालन हेतु सामान्य शिक्षा से भिन्न निदेशालय की स्थापना के लिए गंभीर प्रयास पहली बार हुए। प्रदेश में 1958 में संस्कृत शिक्षा निदेशालय बनाया गया। सुख्यात विद्वान् के. माधवकृष्ण शर्मा इस निदेशालय के प्रथम निदेशक बने।

निदेशालय तब से अद्यावधि संस्कृत भाषा के प्रोन्नयन, प्रसार एवं इस भाषा के विद्वानों के सम्मान के लिए विगत 60 वर्षों से निरंतर कार्य कर रहा है। निदेशालय ने प्रदेश में संस्कृत भाषा के अध्ययन-अध्यापन तथा आम लोगों को संस्कृत से जोडने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहण किया है। अनेक भारत प्रसिद्ध विद्वानों ने इस निदेशालय के अंतर्गत संचालित संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालयों में अध्ययन कर राजस्थान प्रदेश की यशोगाथा को चहूं ओर फैलाया है।

संस्कृत शिक्षा के इस गंगा प्रवाह को राजस्थान सरकार ने पिछले चार वर्षों में समुद्र के समान विस्तार दिया है। अनेक नई योजनाओं, नीतियों तथा नवाचारों से संस्कृत शिक्षा ने नई ऊंचाइयों को छुआ है, जिससे प्रदेश में संस्कृत शिक्षा का व्यापक स्तर पर प्रसार हुआ है। अनेक ऎसी योजनाएं संस्कृत शिक्षा में लागू की गई है, जो भविष्य में संस्कृत को बचाने तथा बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होंगी।

संस्कृत में रोजगार की खुली राह-

संस्कृत शिक्षा विभाग के विद्यालयों में प्रथम श्रेणी अध्यापकों के 1 हजार 829 पदों पर नियुक्ति के लिए अभ्यर्थियों से ऑनलाइन आवेदन पत्र आमंत्रित किए जा चुके हैं। जहां द्वितीय श्रेणी शिक्षकों के 571 पदों पर भर्ती प्रक्रिया जारी है। वहीं तृतीय श्रेणी के 56 पदों पर शिक्षकों को नियुक्ति दी जा चुकी है। महाविद्यालय स्तर पर 1 व्याख्याता को नियमित नियुक्ति दी जा चुकी है।

मृतक राज्य कर्मचारियों के 37 आश्रितों को कनिष्ठ लिपिक एवं 14 आश्रितों को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर नियुक्त किया गया है। विभाग में शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए वरिष्ठ अध्यापक द्वितीय श्रेणी के 690 तथा प्राध्यापक विद्यालय में विभिन्न विषयों के 134 पदों पर भर्ती हेतु अर्थना राजस्थान लोकसेवा आयोग को भिजवाई जा चुकी है।

जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर में पहली बार योग अध्ययन केंद्र खोला गया है। योग शिक्षा ग्रहण करने वाले युवाओं में कौशल विकास को बढ़ाने के लिए सरकारी स्तर पर यह प्रथम केंद्र है। साथ ही, विश्वविद्यालय के योग विभाग में सहायक आचार्य के 2 पदों पर नियमित नियुक्ति भी दी गई है। विश्वविद्यालय के अनुसंधान केंद्र में संस्कृत शास्त्रों के गहन अनुसंधान हेतु स्थापित पीठों पर तीन सुख्यात संस्कृत विद्वानों को पीठाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है।

पदोन्नत हुए कई कर्मचारी-

संस्कृत शिक्षा विभाग में कार्यरत वरिष्ठ उपाध्याय-प्रधानाचार्य के 131, वरिष्ठ अध्यापक प्रथम श्रेणी के 206, प्रवेशिका-प्रधानाध्यापक के 102 एवं वरिष्ठ अध्यापक द्वितीय श्रेणी के 265 पदों पर पदोन्नत किया गया है।

इसके अतिरिक्त मंत्रालयिक संवर्ग में प्रशासनिक अधिकारी के 1 पद, कार्यालय अधीक्षक के 4 पद, कार्यालय सहायक के 78 पद, वरिष्ठ लिपिक के 43 एवं कनिष्ठ लिपिक के 38 पदों पर पदोन्नति की गई है।

किया क्रमोन्नत, दी मान्यता-

अराजकीय क्षेत्र में 6 शिक्षाशास्त्री महाविद्यालयों को एनओसी जारी की गई है। इसके अतिरिक्त 2 शिक्षाशास्त्री महाविद्यालयों में शास्त्री शिक्षाशास्त्री 4 वर्षीय एकीकृत पाठ्यक्रम संचालन किए जाने की स्वीकृति दी गई है।

संस्कृत शिक्षण प्रकोष्ठ का गठन-

संस्कृत शिक्षा मंत्री महोदय के निर्देशानुसार संस्कृत माध्यम से पठन-पाठन में गुणवत्ता बढ़ाने के लिए संस्कृत-प्रशिक्षण-प्रकोष्ठ का गठन सत्र 2014-15 में किया गया। प्रकोष्ठ द्वारा 2 प्रशिक्षण-कार्यशालाओं को आयोजन किया गया है।

प्रकोष्ठ के अब तक हुए मुख्य आयोजन निम्न हैं-

1. सत्र 2015-16 में हुए राज्य स्तरीय शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में 100 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
2. शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम सत्र 2014-15, 2015-16 एवं 2016-17 में 7 आवासीय कार्यक्रमों में 299 प्रतिभागियों ने तथा 22 दिवसात्मक शिविरों में 465 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
3. शैक्षणिक सत्र 2014-15 एवं 2015-16 के अंतर्गत कंप्यूटर, वैदिक गणित और ज्योतिष के प्रति रुचि उत्पन्न करने के लिए 85 ग्रीष्मकालीन संस्कृत अभिरुचि वर्ग प्रदेश भर में आयोजित किए गए।
4. शैक्षणिक सत्र 2014-15 से जुलाई मास में समस्त विद्यालय-महाविद्यालयों में संस्कृत-संभाषण-कौशल बढ़ाने हेतु शिविरों का आयोजन किया गया।
विभाग के प्रयास से वर्ष 2017-18 के लिए एस.एस.ए तथा रमसा के माध्यम से विभागीय शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु 15 लाख 3 हजार रुपए प्राप्त हुए हैं।

‘श्रावणी’ लोकार्पण, स्टीकर विमोचन-

विभाग प्रतिवर्ष राज्य स्तरीय संस्कृत दिवस समारोह के अवसर पर ‘श्रावणी’ नामक संस्कृत पत्रिका का प्रकाशन नियमित रूप से कर रहा है। यह पत्रिका पूरे प्रदेश में संस्कृत साहित्य पर लिखे शोधपरक लेख, तथा विभाग की अनेक जानकारियों से युक्त है।

पत्रिका को दिए संदेश में मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे एवं संस्कृत शिक्षा मंत्री श्रीमती किरण माहेश्वरी ने विभाग के माध्यम से संस्कृत के विकास के लिए सरकार के दृढ़ संकल्प को दोहराया है। विभाग द्वारा संस्कृत सूक्तियों में छपे स्टीकर तथा कैलेंडर का प्रकाशन कर वितरण किया गया है।

पाठ्यक्रम निर्माण, पुस्तक निःशुल्क वितरण-

विभाग द्वारा संस्कृत भाषा की कक्षा 1 के लिए नवीन पाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तक का निर्माण किया गया है। कक्षा 2 से 8 तक की पाठ्यपुस्तकों की समीक्षा एवं पुनर्लेखन किया गया है। समस्त पुस्तकें राजस्थान राज्य पाठ्यपुस्तक मंडल, जयपुर द्वारा मुद्रित करवाकर संस्कृत विद्यालयों में अध्ययनरत छात्रों को निःशुल्क वितरित की गई है।

विद्यालय एकीकरण-

राज्य सरकार के शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों के क्रम में संस्कृत शिक्षा विभाग के अधीन संचालित राजकीय संस्कृत विद्यालयों का एकीकरण कर कुल एकीकृत विद्यालय 330, जिनमें 338 विद्यालय समाहित किए गए हैं।

संस्कृत दिवस समारोह-विद्वत्सम्मान –

राजस्थान सरकार के निर्देशानुसार विभाग द्वारा प्रतिवर्ष श्रावणी पूर्णिमा के अवसर पर राज्य स्तरीय संस्कृत दिवस समारोह भव्य स्वरूप में मनाया जा रहा है। समारोह मेें प्रदेश भर के संस्कृत विद्वानों को भिन्न-भिन्न श्रेणियों में सम्मानित किया जा रहा है। 1 लाख रुपए के सर्वोच्च ‘संस्कृत साधना शिखर सम्मान’ के अतिरिक्त 51 हजार रुपए के ‘संस्कृत साधना सम्मान’, 31 हजार रुपए के ‘विद्वत्सम्मान’ एवं 21 हजार रुपए के ‘संस्कृत युवा-प्रतिभा पुरस्कार’ विद्वानों को दिए गए हैं। सरकार द्वारा चार वर्षों में 60 से अधिक विद्वानों का योग्यता के आधार पर उच्च स्तरीय समिति द्वारा चयन कर उन्हें राज्य स्तर पर सम्मानित किया गया है।

जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर की शास्त्री-आचार्य परीक्षाओं में सर्वप्रथम रहे विद्यार्थियों के साथ ही विभिन्न विश्वविद्यालयों के संस्कृत विषय में सर्वप्रथम रहे विद्यार्थियों को विभाग संस्कृत दिवस समारोह के अवसर पर सम्मानित कर रहा है। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर की प्रवेशिका तथा वरिष्ठ उपाध्याय परीक्षा में प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले मेधावी छात्रों को विभाग सम्मानित कर रहा है।

2 छात्रों को आचार्य, 1 विद्यार्थी को शास्त्री, 1 छात्र को संयुक्ताचार्य, 7 छात्रों को एम.ए. संस्कृत, 3 छात्रों को वरिष्ठ उपाध्याय एवं 3 छात्रों को प्रवेशिका में सर्वोच्च अंक लाने पर विभाग ने सम्मानित किया है। पिछले 4 वर्षों में 68 विद्यार्थियों को विभाग द्वारा सम्मानित किया गया है।

संस्कृत महाविद्यालयों के लिए नवीन भवन निर्माण-

राज्य सरकार ने संस्कृत शिक्षा के प्रति पूर्ण गंभीरता दर्शाते हुए विभाग के प्राचीन महाविद्यालयों के जीर्णोद्धार समेत नए भवनों का निर्माण करवाया है।

1. राजकीय दरबार आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, जोधपुर के नवीन भवन के निर्माण हेतु 1378.00 लाख रुपए का बजट सरकार द्वारा स्वीकृत किया गया है। यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि यह निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे, द्वारा इस भवन का लोकार्पण हो चुका है तथा महाविद्यालय नवीन भवन में सुचारु रूप से संचालित हो रहा है।

2. राजकीय दरबार आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, जोधपुर के नवीन भवन परिसर में पानी की निकासी एवं पाकिर्ंग के निर्माण हेतु 106.00 लाख रुपए का बजट राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत किया गया है, जिसका कार्य आरंभ हो चुका है।

3. राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, अजमेर के नवीन भवन के निर्माण हेतु 654.60 लाख रुपए का बजट सरकार द्वारा स्वीकृत किया गया है।

4. मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने अक्टूबर, 2015 में जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर का विशेष निरीक्षण किया। विश्वविद्यालय के शिक्षकों तथा कर्मचारियों की मांग पर मुख्यमंत्री ने संस्कृत विश्वविद्यालय के भवन जीर्णोद्धार एवं नवीन भवन निर्माण हेतु 23 करोड़ रुपए से अधिक की राशि प्रदान की। इस राशि से विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन, संकाय भवनों, छात्रावासों तथा आवासीय भवनों की मरम्मत, ओपन थियेटर एवं राजस्थान मंत्र प्रतिष्ठान के भवन का निर्माण का काम चल रहा है।

5. मुख्यमंत्री द्वारा बजट घोषणा 2016-17 में की गई घोषणाओं की बिंदु संख्या 164 के क्रम में राजकीय संस्कृत शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय, महापुरा (जयपुर) को राज्य स्तरीय संस्कृत प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान के रूप में विकसित किए जाने की अनुपालना में स्वीकृति जारी की जा चुकी है।

यह भी गौरव की बात है कि प्रदेश के अनेक संस्कृत महाविद्यालयों को पहली बार ‘नेक’ द्वारा श्रेणी प्रदान की गई है। राजकीय महाराज आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, जयपुर एवं राजकीय शास्त्री संस्कृत महाविद्यालय, महापुरा, जयपुर को ‘बी’ ग्रेड प्रदान की गई है। साथ ही, राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के तहत विभाग के चार महाविद्यालयों को 2-2 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत किया गया है। इनमें जयपुर, मनोहरपुर (जयपुर), दौसा एवं नीम का थाना (सीकर) में स्थित महाविद्यालय शामिल हैं।

प्रदेश सरकार ने संस्कृत शिक्षकों की बरसों पुरानी मांग पर गंभीरता से विचार करते हुए संस्कृत शिक्षा सेवा नियमों में संशोधन की अधिसूचना 2015 में ही जारी कर दी है। शिक्षा क्षेत्र में प्रवेश से परिणाम तक पारदर्शिता लाने के सरकार के संकल्प को सार्थक करने के लिए शैक्षणिक सत्र 2017-18 से समस्त राजकीय विद्यालयों में छात्रों की प्रवेश प्रक्रिया ऑनलाइन शुरू कर दी गई है। साथ ही निदेशालय, महाविद्यालयों में बायोमैट्रिक मशीन से कर्मचारियों एवं शिक्षकों की उपस्थिति ली जा रही है। संभागीय कार्यालयों, वरिष्ठ उपाध्याय एवं प्रवेशिका विद्यालयों में बायोमैट्रिक मशीन से उपस्थिति लिया जाना शुरू किया गया है।

संस्कृत शिक्षा विभाग के संयुक्त निदेशक प्रो. भास्कर शर्मा का कहना है कि माननीया मुख्यमंत्री एवं संस्कृत शिक्षा मंत्री के निर्देशानुसार विभाग संस्कृत शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु दिन-रात मेहनत कर रहा है। संस्कृत विद्यालयों- महाविद्यालयों में अध्ययनरत छात्रों में कौशल विकास के लिए नवाचारों का सहारा लिया जा रहा है। प्रदेश भर में योजनाबद्ध तरीके से संस्कृत संभाषण शिविर लगाए जा रहे हैं। विभाग संस्कृत भाषा में लिखने एवं बोलने के लिए छात्रों को कड़ी मेहनत करवा रहा है। आने वाले दिनों में प्रदेश संस्कृत शिखा के क्षेत्र में निश्चित ही नई ऊंचाइयाँ छू लेगा।

प्रदेश में राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर ने भी ‘माघ महोत्सव’ के माध्यम से विभिन्न कार्यक्रम आयेाजित कर प्रदेश में एक नए युग का सूत्रपात किया है। 2017 में पहली बार हुए इस समारोह में संस्कृत शोभायात्रा, सारस्वत यज्ञ, राष्ट्रीय विद्वत्संगोष्ठी, संस्कृत-युवा-सम्मेलन, दानशील सम्मान, संस्कृत-कवि-सम्मेलन समेत अनेक कार्यक्रम आयोजित हुए।

इस महोत्सव के उद्घाटन में संस्कृत शिक्षा मंत्री, श्रीमती किरण माहेश्वरी ने इस कार्यक्रम को प्रदेश भर में व्यापक स्तर पर आयोजित करने की जरूरत बताई। श्रीमती माहेश्वरी ने इस दौरान यह भी कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रमों से आम लोगों को जोडना बेहद जरूरी है, जिससे संस्कृत समाज के हर तबके में पहुंचे क्योंकि संस्कृत किसी वर्ग की भाषा नहीं बल्कि समाज के हर व्यक्ति की भाषा है।

संस्कृत अकादमी की अध्यक्ष डॉ. जया दवे का कहना है कि माननीया मुख्यमंत्री महोदया की प्रेरणा से अकादमी विभिन्न संगोष्ठियों तथा सभाओं के माध्यम से संस्कृत में रचनात्मक कायोर्ं को प्रोत्साहित कर रही है। ‘माघ महोत्सव’ का आयोजन इस दिशा में मील का पत्थर है। मुख्यमंत्री ने इसे प्रतिवर्ष बड़े स्तर पर संभागीय मुख्यालयों में आयोजित करने के निर्देश दिए हैं।

अकादमी ने 13 अक्टूबर को हरिद्वार में राष्ट्रीय एवं प्रांतीय स्तर के 21 विद्वानों को विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया है। इसमें 1 लाख रुपए के 2 ‘माघ पुरस्कार’ भी है, जो प्रो. रमेशकुमार पांडेय, कुलपति, श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली एवं प्रो. शिवजी उपाध्याय, वाराणसी को दिए गए हैं। अकादमी के निदेशक डॉ. जगदीशनारायण विजय का कहना है कि 2018 में ‘माघ महोत्सव’ प्रदेश के सातों संभागों में आयोजित करने की योजना पर अकादमी काम कर रही है।

प्रदेश संस्कृत शिक्षा के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित कर रहा है। पिछले चार वर्षों में सरकार ने संस्कृत को जो प्रोत्साहन दिया है, उससे संस्कृत निर्बाध गति से आगे बढ़ रही है। प्रदेश में संस्कृत शिक्षा को लेकर अनुकूल वातावरण बना है, जो इस सर्वप्राचीन भाषा को बचाने और बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो रहा है।

राजस्थानधरित्रीयं राजविद्यासमुज्ज्वला। अम्लानश्रीभारतीभ्यां भद्रशक्तिरू विजित्वरी॥

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