- January 17, 2015
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों में कामकाज की भाषा को हिंदी करना संभव नहीं है – केंद्र सरकार
नई दिल्ली , जनवरी १७ : केंद्र सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों में कामकाज की भाषा को हिंदी करना संभव नहीं है। केंद्र ने यह बात शपथपत्र के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका के जवाब में कही है।
याचिका में अधिवक्ता शिवसागर तिवारी ने कहा था कि अनुछेच्द 348 जो सुप्रीम कोर्ट तथा देश के 24 हाईकोर्टों में अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा बनाने का निर्देश देती है, असंवैधानिक है। उन्होंने कहा था कि अंग्रेजी गुलामी की भाषा है, जिसे वादी समझ नहीं पाते।
गृह मंत्रालय के शासकीय भाषा विभाग ने याचिका के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया कि उच्च न्याय पालिका में कामकाज की भाषा हिंदी हो सकती। विभाग ने राष्ट्रीय विधि आयोग की 2008 में दी गई 216वीं रिपोर्ट को आधार बनाते हुए कहा है कि इस रिपोर्ट में उच्च न्यायपालिका में हिंदी लागू करने के मुद्दे को अच्छी तरह से विश्लेषित किया गया था। साथ ही विभाग ने उच्च न्यायपालिका की राय का भी उल्लेख किया है, जिसमें अंग्रेजी को ही कार्यवाही की भाषा बने रहने की बात कही गई थी।
आयोग ने कहा था कि उच्च न्यायपालिका में बहस अंग्रेजी में ही होती है। केस लॉ और अमेरिका व ब्रिटेन का विधिक साहित्य भी अंग्रेजी भाषा में ही है। अंग्रेजी भाषा के कारण जजों को देश में कही भी स्थानांतरण संभव है। अंग्रेजी की वजह से हाईकोर्ट के जजों को प्रोन्नत कर सुप्रीम कोर्ट का जज बनाना भी आसान हो जाता है।
हालांकि, केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 348 के उपअनुच्छेद 2 का हवाला देते हुए कहा है कि राज्य के राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से हाईकोर्ट में हिंदी को कार्यवाही की भाषा बना सकते हैं।